दिल्ली हाईकोर्ट ने 2017 के उन्नाव रेप केस में दोषी ठहराए गए और उम्रकैद की सजा काट रहे कुलदीप सिंह सेंगर की जेल की सजा को उनकी अपील लंबित रहने तक सस्पेंड कर दिया है. कोर्ट ने माना कि सेंगर सात साल पांच महीने से ज्यादा समय जेल में बिता चुके हैं. हालांकि पीड़िता के पिता की कस्टोडियल डेथ के मामले में सजा के चलते सेंगर फिलहाल जेल में ही रहेंगे.
पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर की ओर से पेश हुए वकील एसपीएम त्रिपाठी ने कहा कि जिस रेप केस में उन्हें उम्रकैद की सजा दी गई थी, उस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने जमानत दे दी है और सजा को सस्पेंड किया है. त्रिपाठी का कहना था कि अदालत में उनकी प्रमुख दलील यह थी कि सेंगर को एक लोक सेवक मानते हुए सजा दी गई थी, जबकि वह लोक सेवक नहीं थे. इसी आधार पर उन्हें उम्रकैद की सजा दी गई, जो कानूनन गलत है.
जानिए क्यों कुलदीप सेंगर को मिली जमानत?
कोर्ट ने यह राहत इस आधार पर दी कि प्रथम दृष्टया यह मामला पॉक्सो एक्ट के तहत 'एग्रेवेटेड पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट' यानी गंभीर यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आता है. हाईकोर्ट ने माना कि कुलदीप सेंगर के खिलाफ पॉक्सो एक्ट की धारा 5 के तहत गंभीर अपराध बनता हुआ नहीं दिखता, क्योंकि वो कानून की नजर में 'पब्लिक सर्वेंट' नहीं हैं. इसी आधार पर उनकी सजा को अपील लंबित रहने तक सस्पेंड किया गया है.
दरअसल, वकील एसपीएम त्रिपाठी ने दलील दी कि पीड़िता की उम्र को लेकर रिकॉर्ड में तीन अलग-अलग जगहों पर तीन अलग-अलग उम्र दर्ज हैं. इस तरह की विसंगतियों के कारण मामले में ठोस सबूत नहीं बनता. उन्होंने यह भी कहा कि मेडिकल रिपोर्ट पर समुचित तरीके से विचार नहीं किया गया.
क्या कहता है कानून?
पॉक्सो एक्ट की धारा 5 उन परिस्थितियों को परिभाषित करती है, जिनमें किसी बच्चे के साथ किया गया यौन उत्पीड़न 'एग्रेवेटेड पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट' माना जाता है. इस धारा के मुताबिक, यदि यह अपराध किसी पब्लिक सर्वेंट, पुलिस अधिकारी, सशस्त्र बल या सुरक्षा बल के सदस्य, जेल या अस्पताल के कर्मचारी द्वारा किया जाए तो उसे गंभीर श्रेणी का अपराध माना जाता है. ऐसे मामलों में न्यूनतम 20 साल की सजा का प्रावधान है, जो आजीवन कारावास तक जा सकती है.
ट्रायल कोर्ट ने क्यों दी सजा?
ट्रायल कोर्ट ने कुलदीप सेंगर को इस आधार पर उम्रकैद की सजा दी थी कि वो एक ‘पब्लिक सर्वेंट’ की श्रेणी में आते हैं. अदालत ने कहा था कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक जनप्रतिनिधि को जनता का विश्वास प्राप्त होता है और उस विश्वास का उल्लंघन करना गंभीर अपराध है. इसी आधार पर ट्रायल कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट की धारा 5 और 6 के तहत सेंगर को दोषी ठहराया और उम्रकैद की सजा सुनाई.
हाईकोर्ट ने क्यों जताई असहमति?
दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में शामिल जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और जस्टिस हरिश वैद्यनाथन शंकर ने कहा कि कुलदीप सेंगर को ना तो पॉक्सो एक्ट की धारा 5(c) के तहत पब्लिक सर्वेंट माना जा सकता है और ना ही आईपीसी की धारा 376(2)(b) के तहत. कोर्ट ने यह भी कहा कि सेंगर को पॉक्सो एक्ट की धारा 5(p) के तहत 'पोजिशन ऑफ ट्रस्ट या अथॉरिटी' यानी विश्वास या अधिकार की स्थिति में रखा गया व्यक्ति भी नहीं माना जा सकता.
दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश में क्या कहा?
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा, इस स्तर पर सजा सस्पेंड करने के उद्देश्य से अदालत की प्रथम दृष्टया राय है कि अपीलकर्ता को पॉक्सो एक्ट की धारा 5 के तहत एग्रेवेटेड पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट के दायरे में नहीं लाया जा सकता, जिसकी सजा धारा 6 के तहत आजीवन कारावास तक हो सकती है, न ही आईपीसी की धारा 376(2) के तहत. कोर्ट ने आगे कहा कि यदि एग्रेवेटेड यौन उत्पीड़न नहीं बनता तो पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत न्यूनतम सजा सात साल है, जो कुलदीप सेंगर पहले ही पूरी कर चुके हैं.
कितनी सजा काट चुके हैं कुलदीप सेंगर?
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने 53 पन्नों के फैसले में कहा कि सेंगर पहले ही सात साल पांच महीने जेल में बिता चुके हैं. कोर्ट ने कहा कि इतनी लंबी अवधि तक किसी व्यक्ति को जेल में रखना, जबकि उसकी अपील लंबित हो, संविधान के अनुच्छेद 21 यानी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है. सेंगर करीब 7 साल 5 महीने जेल में रह चुके हैं, जो पॉक्सो एक्ट में 2019 के संशोधन से पहले निर्धारित न्यूनतम सजा से भी ज्यादा है. इन तथ्यों को देखते हुए अदालत ने उनकी सजा सस्पेंड करने का फैसला किया.
दिल्ली हाईकोर्ट ने ये टिप्पणियां कुलदीप सेंगर की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए कीं, जिसमें उन्होंने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा को चुनौती दी थी और सजा सस्पेंड करने की मांग की थी.
कुलदीप सेंगर पर क्या आरोप?
आरोप है कि उन्नाव रेप केस की नाबालिग पीड़िता को 11 से 20 जून 2017 के बीच कुलदीप सेंगर ने अगवा कर रेप किया. इसके बाद उसे 60 हजार रुपये में बेच दिया गया. बाद में पीड़िता को माखी थाना क्षेत्र से बरामद किया गया. आरोप यह भी है कि पीड़िता को पुलिस अधिकारियों की ओर से लगातार धमकाया गया और सेंगर के निर्देश पर चुप रहने का दबाव बनाया गया. इसके बाद रेप, अपहरण और आपराधिक धमकी सहित पॉक्सो एक्ट की धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई. इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद कुलदीप सेंगर को गिरफ्तार किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों ट्रांसफर किया था ट्रायल?
अगस्त 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्नाव रेप केस से जुड़े चार मामलों का ट्रायल उत्तर प्रदेश से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया था. कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि सुनवाई रोजाना के आधार पर हो और 45 दिनों के भीतर पूरी की जाए. दिसंबर 2019 में ट्रायल कोर्ट ने कुलदीप सेंगर को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी. पीड़िता के पिता की पुलिस हिरासत में मौत के मामले में सेंगर को 10 साल की सजा हुई है.
सजा सस्पेंड होने का क्या मतलब है?
अदालत द्वारा सजा सस्पेंड किए जाने का मतलब यह नहीं होता कि आरोपी को बरी कर दिया गया है या उसकी सजा खत्म हो गई है. इसका अर्थ यह है कि जब तक दोषसिद्धि के खिलाफ दायर अपील पर अंतिम फैसला नहीं हो जाता, तब तक दी गई सजा को अस्थायी रूप से लागू नहीं किया जाएगा. इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 389 के तहत कुलदीप सेंगर की सजा सस्पेंड की है. कोर्ट ने साफ कहा कि अगर अपील खारिज होती है तो सेंगर को बाकी सजा पूरी करनी होगी.
कुलदीप सेंगर जेल से बाहर क्यों नहीं आएंगे?
हालांकि रेप केस में सजा सस्पेंड कर दी गई है, लेकिन कुलदीप सेंगर पीड़िता के पिता की कस्टोडियल डेथ मामले में 10 साल की सजा काट रहे हैं. इस केस में उन्हें अभी जमानत नहीं मिली है. इसी वजह से सेंगर फिलहाल जेल में ही रहेंगे.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कौन-कौन सी शर्तें लगाईं?
कोर्ट ने सजा सस्पेंड करते हुए कुलदीप सेंगर पर कई सख्त शर्तें लगाई हैं. इनमें...
- 15 लाख रुपये का निजी मुचलका और उतनी ही राशि की तीन जमानतें देनी होंगी.
- तीनों जमानती दिल्ली के निवासी होने चाहिए.
- पीड़िता के दिल्ली स्थित आवास से 5 किलोमीटर के दायरे में प्रवेश नहीं कर सकते.
- पीड़िता या उसकी मां को किसी भी तरह से धमकाने की मनाही.
- अपील लंबित रहने तक दिल्ली में ही रहना होगा.
- पासपोर्ट ट्रायल कोर्ट में जमा करना होगा.
- हर सोमवार सुबह 10 बजे स्थानीय पुलिस स्टेशन में हाजिरी लगानी होगी.
- किसी भी शर्त के उल्लंघन पर जमानत तत्काल रद्द कर दी जाएगी.
पीड़िता की सुरक्षा पर कोर्ट का रुख
कोर्ट ने कहा कि पीड़िता को पहले की तरह CRPF सुरक्षा मिलती रहेगी. साथ ही जिस इलाके में पीड़िता रह रही हैं, वहां के डीसीपी को व्यक्तिगत रूप से सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी करने का निर्देश दिया गया है. दिल्ली हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सिर्फ सुरक्षा को लेकर आशंका के आधार पर किसी व्यक्ति को लगातार हिरासत में नहीं रखा जा सकता. कोर्ट ने कहा कि ऐसा मानना सुरक्षा एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने जैसा होगा.
फैसले से संतुष्ट नहीं पीड़िता
उन्नाव रेप केस की पीड़िता ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर असंतोष जताया है. उन्होंने कहा कि उनके छोटे बच्चे हैं, घर में बुजुर्ग और दिव्यांग सास हैं और बच्चों की सुरक्षा उनकी सबसे बड़ी चिंता है. पीड़िता ने आरोप लगाया कि ट्रायल के दौरान उनके परिवार, वकीलों और गवाहों को दी गई सुरक्षा भी वापस ले ली गई. उन्होंने सवाल उठाया कि इतने गंभीर अपराध में आरोपी को कुछ साल जेल में रहने के बाद राहत कैसे मिल सकती है.
अब आगे क्या होगा?
दिल्ली हाईकोर्ट ने कुलदीप सेंगर की अपील को 16 जनवरी 2026 को रोस्टर बेंच के सामने सूचीबद्ध करने का आदेश दिया है. इस अपील में तय होगा कि सेंगर की दोषसिद्धि और सजा बरकरार रहेगी या नहीं.