भारतीय राजनीति में परिवारवाद, भाई-भतीजावाद लंबे अरसे से विमर्श का हिस्सा रहे हैं. यूपी-बिहार जैसे हिंदी पट्टी के राज्य हों या तमिलनाडु और कर्नाटक, उत्तर से दक्षिण तक परिवारवाद और राजनीतिक की जड़े गहरी रही हैं. उत्तर से दक्षिण भारत तक कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जब पिता ने अपने पुत्र को सत्ता और अपनी सियासी विरासत सौंप दी हो. कुछ उदाहरण ऐसे भी मिलते हैं जब एक पिता ने अपने ही पुत्र को अपनी ही बनाई पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया हो. ताजा उदाहरण बिहार से सामने आया है.
बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी और महागठबंधन की अगुवा राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया है. लालू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर तेज प्रताप यादव को गैर जिम्मेदाराना, पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों के खिलाफ आचरण के लिए यह कार्रवाई करने की बात कही. तेज प्रताप के खिलाफ पार्टी निकाला की यह कार्रवाई उनके सोशल मीडिया हैंडल्स से हुई उस पोस्ट को लेकर हुई, जिसमें उनके 12 साल से अनुष्का यादव के साथ 12 साल से रिलेशनशिप में होने की बात कही गई थी.
तेज प्रताप यादव ने बाद में यह पोस्ट डिलीट कर एक अन्य पोस्ट में अकाउंट हैक किए जाने की बात कही थी. तेज प्रताप ने यह भी कहा था कि उन्हें और परिवार को बदनाम करने के लिए तस्वीरें एडिट कर पोस्ट की गई थीं. तेज प्रताप की सफाई काम न आई और लालू यादव ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निकालने का ऐलान कर दिया. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने कहा कि निजी जीवन में नैतिक ईमानदारी की कमी सामाजिक न्याय के लिए पार्टी की व्यापक लड़ाई को कमजोर करती है. तेज प्रताप का व्यवहार उनके पारिवारिक मूल्यों या परंपराओं को नहीं दर्शाता है.
मुलायम ने भी अखिलेश को निकाला था
लालू यादव के तेज प्रताप को अपनी पार्टी से निष्कासित करने का ऐलान करने के बाद अतीत के पन्ने भी पलटे जाने लगे हैं. ऐसे सियासी घटनाक्रमों को लेकर भी चर्चा हो रही है, जब किसी पिता ने अपने ही बेटे को अपनी ही बनाई पार्टी से निकाल दिया हो. बिहार के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी करीब नौ साल पहले इसी तरह का घटनाक्रम देखने को मिला था. 30 दिसंबर 2016 को सपा के तत्कालीन प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपने ही बेटे अखिलेश यादव को छह साल के लिए पार्टी से निकालने का ऐलान कर दिया था.
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सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि हमने पार्टी को बचाने के लिए अखिलेश यादव को छह साल के लिए निष्कासित करने का फैसला किया है. हमारे लिए पार्टी सबसे महत्वपूर्ण है. अखिलेश तब यूपी के मुख्यमंत्री थे, जब उनको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. मुलायम ने उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी कहा था कि अखिलेश अब सीएम नहीं हैं. सीएम कौन होगा, यह पार्टी तय करेगी. उन्हें सीएम मैंने ही बनाया था और वह अब मेरी सलाह भी नहीं लेते.
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मुलायम सिंह यादव के इस ऐलान के बाद अखिलेश ने अगले ही दिन सपा विधायक दल की बैठक बुला ली थी. अखिलेश की बैठक में तब सपा के 229 में से 200 से ज्यादा विधायक पहुंचे थे और मुख्यमंत्री के लिए उनके समर्थन की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी. विधायक दल की बैठक में बहुमत को लेकर आश्वस्त हो जाने के बाद अखिलेश ने 1 जनवरी 2017 को सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुला ली थी. इस कार्यकारिणी के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से मुलायम सिंह यादव को हटाकर अखिलेश की ताजपोशी का ऐलान कर दिया गया. मामला कोर्ट भी गया लेकिन पार्टी का निशान और कमान अखिलेश के ही पास रहे.