संसद के मानसून सत्र के पहले दिन सोमवार को जगदीप धनखड़ ने देर शाम उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को भेजे इस्तीफे में जगदीप धनखड़ ने कहा कि मैं तुरंत प्रभाव से उपराष्ट्रपति का पद छोड़ रहा हूं. उन्होंने इसकी वजह अपनी 'सेहत को प्राथमिकता देना और चिकित्सीय सलाह का पालन करना' बताया है. धनखड़ का कार्यकाल अगस्त 2027 में पूरा होना था और लगभग 2 साल पहले ही उनके अपने पद से अचानक इस्तीफा देने से तमाम तरह से सियासी कयास लगाए जाने लगे हैं.
जगदीप धनखड़ को लेकर यह किसी को अंदाजा ही नहीं था कि वह अचानक अपने पद से इस्तीफा दे देंगे, क्योंकि 11 दिन पहले उन्होंने एक कार्यक्रम में ऐलान किया था कि वो सही समय पर 2027 में रिटायर हो जाउंगा.
इस तरह से धनखड़ ने उपराष्ट्रपति के पांच साल के कार्यकाल पूरा करने की बात करते रहे थे, लेकिन सोमवार शाम साढ़े नौ बजे अपनी सेहत का हवाला देते हुए इस्तीफे की घोषणा कर दी. उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफा दिए जाने के कई तरह से कयास लगाए जाने लगे थे.
धनखड़ ने बीच कार्यकाल में छोड़ा पद
पीएम मोदी के अगुवाई वाले एनडीए ने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल रहे जगदीप धनखड़ को साल 2022 में उपराष्ट्रपति चुनाव में उतारा था. 6 अगस्त 2022 को हुए उपराष्ट्रपति के चुनाव में जगदीप धनखड़ ने विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को हराया था. धनखड़ को कुल 725 में से 528 वोट मिले थे, जबकि अल्वा को 182 वोट मिले थे. जगदीप धनखड़ देश के 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में 10 अगस्त को शपथ ली थी.
उपराष्ट्रपति के तौर पर धनखड़ का कार्यकाल 10 अगस्त 2027 तक था. इस तरह से धनखड़ का कार्यकाल अभी भी दो साल का बाकी था. इसके बावजूद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. राष्ट्रपति को पत्र में उन्होंने लिखा, स्वास्थ्य की प्राथमिकता और चिकित्सकीय सलाह का पालन करते हुए मैं भारत के उपराष्ट्रपति पद से तत्काल प्रभाव से त्यागपत्र दे रहा हूं. उन्होंने राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल को सहयोग के लिए आभार जताया.
11 दिन में कैसे बदला धनखड़ का मिजाज
जगदीप धनखड़ 11 दिन पहले तक पांच साल के कार्यकाल को पूरा करने की बात रहे थे. 10 जुलाई को ही जगदीप धनखड़ दिल्ली में जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे. इस दौरान उन्होंने कहा था कि, मैं सही समय पर अगस्त 2027 में भगवान की कृपा रही तो सेवानिवृत्त हो जाऊंगा.' उनका कार्यकाल 10 अगस्त 2027 तक था. इस लिहाज से उपराष्ट्रपति के तौर पर धनखड़ पांच साल के कार्यकाल को पूरा करने की बात कर रहे थे, लेकिन सोमवार को उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने वाले धनखड़ का आखिर 11 दिन में मिजाज कैसे बदल गया. धनखड़ ने अपने इस्तीफा की वजह अपनी सेहत को बताया है, लेकिन उनकी तबियत पहले मार्च में खराब हुई. 9 मार्च को अचानक सीने में दर्द की शिकायत के बाद उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था. तीन दिन के बाद 12 मार्च को उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया था. इसके बाद 25 जून को उत्तराखंड में एक कार्यक्रम में दौरान फिर बिगड़ी, जिसके बाद धनखड़ पूर्व सांसद महेंद्र सिंह पाल के कंधे पर हाथ रखकर बाहर निकले. इसके बाद महेंद्र पाल से गले लगकर रोने लगे. धनखड़ के सीने में अचानक दर्द उठा था, जिसके बाद राजभवन में डॉक्टरों ने चेकअप किया.
धनखड़ ठीक होने के बाद 10 जुलाई को कहा था कि अपने कार्यकाल को पूरा करेंगे. मॉनसून सत्र के पहले दिन उन्होंने राज्यसभा को संबोधित किया. वो महाअभियोग के मुद्दे पर बोलने के साथ-साथ सियासी दलों से राजनीतिक तनाव और टकराव को कम करने की अपील की थी. उपराष्ट्रपति होने के नाते से राज्यसभा की कार्यवाही चलाने का जिम्मा भी उन्हीं पर था. सोमवार को उन्होंने पूरा दिन उच्चसदन की कार्यवाई का संचालन किया, लेकिन देर रात उन्होंने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देकर सभी को आश्चर्य में डाल दिया.
तीसरे उपराष्ट्रपति पूरा नहीं कर सके कार्यकाल
जगदीप धनखड़ से पहले दो और उपराष्ट्रपति हुए जो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके है. कृष्ण कांत ने 21 अगस्त 1997 को उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली थी, लेकिन 27 जुलाई 2002 को कार्यकाल के दौरान ही उनका निधन हो गया. इस कारण वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थ. इसके अलावा वीवी गिरि ने भी 1969 में उप राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान इस्तीफा दे दिया था, ताकि राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ सकें. जगदीप धनखड़ का कार्यकाल दो साल से ज्यादा का बचा था, ऐसे में उनका इस्तीफा बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम बन गया. सवाल उठे कि क्या इस्तीफा देने का मन उन्होंने बहुत जल्दी में बनाया?
धनखड़ ने क्यों छोड़ा उपराष्ट्रपति का पद
मूल रूप से राजस्थान से आने वाले जगदीप धनखड़ को लेकर यह किसी को अंदाजा ही नहीं था कि वह अचानक इस्तीफा दे देंगे. उन्होंने अपने इस्तीफे की वजह स्वास्थ्य कारणों को बताया है और कहा है कि डॉक्टर्स की सलाह पर उन्होंने ऐसा किया है, लेकिन राजनीति को समझने वाले लोगों के लिए इस बात को हजम कर पाना आसान नहीं है. मानसून सत्र के पहले ही दिन जगदीप धनखड़ का उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा कई सवाल खड़े कर रहे हैं, क्योंकि 11 दिन पहले तक वो पांच साल का कार्यकाल करने की बात कर रहे थे.
दरअसल, मॉनसून सत्र के पहले दिन न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने का प्रस्ताव लाया गया है. राज्यसभा में यशवंत वर्मा को हटाने का प्रस्ताव विपक्ष के द्वारा लगाया गया है जबकि लोकसभा में मोदी सरकार प्रस्ताव लाने की तैयारी में थी. लोकसभा में प्रस्ताव आने से पहले ही धनखड़ ने विपक्ष के प्रस्ताव को राज्यसभा में स्वीकार कर लिया. राज्यसभा के 50 से अधिक सदस्यों के हस्ताक्षर हैं और यह उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया शुरू का हिस्सा था. माना जा रहा है कि धनखड़ के इस कदम से सरकार नाराज थी.
क्या जेपी नड्डा से नाराज थे धनखड़
सूत्रों की मानें तो राज्यसभा में यशवंत वर्मा के हटाने के प्रस्ताव को स्वीकार करने की बात सरकार को हजम नहीं नहीं, जिसके बाद सदन में जेपी नड्डा ने कहा था कि मेरे शब्द रिकॉर्ड में दर्ज होंगे, यह सीधे तौ पर चेयर का अपमान था. हालांकि, जेपी नड्डा ने कहा कि उन्होंने यह बात चेयर का अपमान करने का नहीं है बल्कि विपक्ष के द्वारा शोर-गुल करने की वजह से कही थी.
सदन की कार्यवाही के बीच में करीब 4.30 बजे बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की दूसरी मीटिंग हुई थी और इसमें सत्ता पक्ष के प्रतिनिधि के तौर पर सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री एल मुरुगन मौजूद रहे. मुरुगन ने सभापति जगदीप धनखड़ से मीटिंग को अगले दिन यानी मंगलवार को रिशेड्यूल करने का आग्रह किया था.
जगदीप धनखड़ BAC मीटिंग में राज्यसभा में नेता सदन जेपी नड्डा और संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू की गैरमौजूदगी से नाराज बताए जा रहे थे. बीते दिन दो बार बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की मीटिंग हुई थी, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकल पाया था.
कांग्रेस सांसद सुखदेव भगत ने भी बीएसी मीटिंग में जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू के न आने पर सवाल उठाए हैं. इस तरह से नड्डा ने अपनी नारजगी जाहिर करके जगदीप धनखड़ को राजनीतिक संदेश दे दिया था. माना जा रहा है कि धनखड़ ने इसी कारण से उपराष्ट्रपति से इस्तीफा दिया है.