पहलगाम पर क्रूर आतंकी हमले के लगभग 3 महीने बाद आतंकवादी संगठन The Resistance Front (TRF) को अमेरिका ने ग्लोबल आतंकी संगठनों की लिस्ट में डाल दिया है. 22 अप्रैल 2025 को हुए इस हमले में द रेजिस्टेंस फ्रंट के आतंकियों ने धर्म पूछकर 27 लोगों की निर्ममता से हत्या कर दी थी. टीआरएफ पाकिस्तान के कुख्यात आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का नया अवतार है. इसी संगठन ने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ली थी.
अब अमेरिका के गृह विभाग ने टीआरएफ को विदेशी आतंकी संगठन (FTO) और विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी (SDGT) की सूची में शामिल कर दिया है. अमेरिका का यह कदम भारत की कूटनीतिक जीत है. इसमें विदेश मंत्री एस. जयशंकर और भारत की ओर से आउटरिच मिशन पर अमेरिका गए कांग्रेस नेता शशि थरूर की भूमिका अहम रही. गौरतलब है कि पहलगाम हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च किया और पाकिस्तान पर भयंकर टारगेटेड जवाबी हमले किए.
इसके बाद पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने पाकिस्तान में खूब लॉबिंग की. वे लगातार इस हमले से पाकिस्तान को अलग करते रहे थे कथित स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच का झुनझुना बजाते रहे. पाकिस्तानी ऑडियंस को रिझाने के लिए आसिम मुनीर ने ट्रंप के साथ खाना भी खाया. भले ही इस भोज के लिए उन्हें अमेरिका में एक सप्ताह इंतजार करना पड़ा हो, कई बार अमेरिकी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़े हों.
लेकिन भारत की डिप्लोमेसी ने अमेरिका को ये मानने पर मजूबर किया कि TRF आतंकी संगठन है. पहलगाम हमले के बाद भारत ने वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति अपनाई. इसके लिए भारत ने पश्चिम-एशिया, अमेरिका, रूस और यूरोप में अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे और पाकिस्तान की करतूतों का पर्दाफाश किया.
UNSC और अमेरिका में जयशंकर की लॉबिंग
भारत पहलगाम हमले के बाद इस मसले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले गया. यहां भारत ने पहलगाम हमले में TRF की भागीदारी के सबूत, TRF के लीडर्स, फंडिंग सोर्स और नेटवर्क से जुड़े दस्तावेज मुहैया कराए. तब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था, "इस मामले पर वास्तव में भारत को अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिल रहा है. संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने साफ तौर पर कहा है पहलगाम हमले के दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले."
जयशंकर ने पाकिस्तान पर आतंकवाद को स्टेट पॉलिसी का हिस्सा बनाने का आरोप लगाया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इसे गंभीरता से लेने की अपील की. उनकी कूटनीति का असर यह हुआ कि संयुक्त राष्ट्र के कई सदस्य देशों ने पहलगाम हमले के दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग का समर्थन किया.
विदेश मंत्री ने यूरोपीय देशों को आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख से अवगत कराया और स्पष्ट किया कि भारत-पाकिस्तान तनाव केवल द्विपक्षीय मसला नहीं, बल्कि वैश्विक सुरक्षा का सवाल है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका के विदेश मंत्री और अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट के साथ द्विपक्षीय वार्ताएं कीं और TRF को आतंकी संगठन सूचीबद्ध कराने के लिए भारत का पक्ष मजबूती से रखा.
अमेरिका में शशि थरूर का रोल
पहलगाम हमले के बाद जब शशि थरूर भारत का आउटरिच मिशन लेकर अमेरिका पहुंचे तो इस मिशन का उद्देश्य था पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खतरे और TRF की गतिविधियों की ओर अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित कराना. थरूर ने अमेरिका में विशेष रूप से चीन-पाकिस्तान गठजोड़ पर निशाना साधा.
थरूर ने अमेरिका में बताया कि चीन ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव से TRF का नाम हटवाने की कोशिश की थी, जो पहलगाम हमले में शामिल था. उन्होंने ब्राजील में भी यही मुद्दा उठाया और कहा कि चीन पाकिस्तान के आतंकवादियों को लगातार बचा रहा है. थरूर ने अमेरिका में ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में छुपे होने की याद दिलाई ताकि अमेरिकी प्रशासन और ट्रंप को भी पाकिस्तान की दोहरी नीति का अहसास कराया जा सके. उनकी प्रभावी पैरवी ने अमेरिकी नीति-निर्माताओं को भारत के आतंकवाद-विरोधी रुख का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया.
चीन कैसे TRF को पालता पोसता रहा
भारत जहां लश्कर के मुखौटे TRF को बेनकाब करने की कोशिश कर रहा था. वहीं चीन बार बार उस पर पर्दे डालने की कोशिश कर रहा था.
भारत जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में TRF को आतंकी संगठन घोषित करवाना चाह रहा था तो चीन इस पर लगातार तकनीकी रोक लगा रहा था.
चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 प्रतिबंध समिति में TRF को बचाने का काम किया. चीन सीधे वीटो नहीं लगाता बल्कि तकनीकी रोक लगाकर प्रस्तावों को ठंडे बस्ते में डाल देता है. इस प्रक्रिया में चीन बार-बार उस स्तर पर रोक बढ़ा देता है जिससे भारत का प्रस्ताव फंस जाता है और TRF का नाम UNSC की आतंकवादी सूची में शामिल नहीं हो पाता है.
भारत अगर TRF के खिलाफ किसी तरह का सबूत देता है तो चीन इस तरह के फैसलों को भारत की 'पूर्वाग्रहपूर्ण' रिपोर्ट और 'क्लासीफाइड' खुफिया सूचनाएं मानता है. ऐसी सूचनाओं को सार्वजनिक नहीं किया जाता है इसलिए वह इन सबूतों को स्वीकार नहीं करता और भारत के दावों पर राजनीतिक रूप से काम करता है. इस समर्थन के चलते TRF जैसे पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूहों को चीन की पृष्ठभूमि में राजनीतिक शरण मिलती है, जिससे वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित नहीं हो पाते है.
निश्चित रूप से चीन ऐसा अपने साझेदार पाकिस्तान की मदद करने के लिए करता है. इससे पाकिस्तान को TRF को जीवित रखने और सक्रिय रखने में मदद मिलती है जिससे कश्मीर घाटी में आतंकवादी गतिविधियां बरकरार रहती हैं. लेकिन अमेरिका के सामने इस बार चीन की चालबाजियां नहीं चली.
जब राजनाथ ने हस्ताक्षर करने से किया इनकार
TRF और भारत में आतंकवाद पर चीन की दोगली नीति हाल में एक बार तब और उजागर हो गई थी जब बीजिंग में शंघाई कॉर्पोरेशन ऑर्गेनाइजेशन-SCO की मीटिंग में भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह संयुक्त घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था.
तब राजनाथ सिंह का कहना था कि चीन के इशारे पर तैयार किया गया यह संयुक्त बयान आतंकवाद के खिलाफ भारत के मजबूत स्टैंड को नहीं दिखाता है. यहां हैरान करने वाला तथ्य यह था कि SCO का मौजूदा अध्यक्ष होने के नाते चीन ने इस संयुक्त घोषणा पत्र में पहलगाम हमले का जिक्र नहीं किया और गजब की बेशर्मी दिखाते हुए बलूचिस्तान की चर्चा की थी. और भारत की ओर इशारे किए गए थे.
भारत ने कहा कि ऐसा लगता है कि पहलगाम को इस बयान से बाहर करना पाकिस्तान के कहने पर किया गया है.
अगर चीन SCO के संयुक्त बयान में पहलगाम का जिक्र करता तो TRF की पोल खुल जाती. SCO की बैठक में राजनाथ सिंह ने TRF का नाम लेते हुए कहा था कि आतंकी समूह लश्कर-ए-तैयबा के एक प्रतिनिधि द रेजिस्टेंस फ्रंट ने हमले की जिम्मेदारी ली है.
TRF को अमेरिकी आतंकी सूची में शामिल करना भारत की कूटनीतिक जीत थी जिसमें जयशंकर की दृढ़ रणनीति और थरूर की अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रभावी पैरवी ने अहम भूमिका निभाई. यह कदम पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग करने में मददगार साबित हुआ.