सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित जिले गढ़चिरौली में आगजनी मामले में एक्टिविस्ट सुरेंद्र गाडलिंग की जमानत याचिका पर महाराष्ट्र सरकार से कई तीखे सवाल पूछे. जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ ने राज्य से पूछा कि क्या किसी व्यक्ति को कई सालों तक विचाराधीन कैदी के तौर पर हिरासत में रखा जा सकता है.
जस्टिस माहेश्वरी ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) एसवी राजू से पूछा कि ट्रायल आगे क्यों नहीं बढ़ रहा है और आरोपी को बिना ट्रायल कितने सालों तक हिरासत में रखा जाएगा. ASG राजू ने कहा कि देरी के लिए अभियोजन पक्ष जिम्मेदार नहीं है, बल्कि आरोपी खुद जिम्मेदार है. गाडलिंग ने कई कानूनी नुक्तों के आधार पर सुनवाई टलवाई और व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं होने की अनुमति नहीं मिलने पर बहस करने से मना किया.
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पीठ ने सवाल किया कि अगर आवेदक सहयोग नहीं करता तो आरोपमुक्त करने का आवेदन खारिज क्यों नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने राज्य को निर्देश दिया कि वे देरी के कारणों का स्पष्टीकरण प्रस्तुत करें और ट्रायल को आगे बढ़ाने की योजना बताएं.
गाडलिंग के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा कि राज्य फरार आरोपियों के मामले में ट्रायल को अलग नहीं कर रहा है. कोर्ट ने इस पर भी स्पष्टीकरण मांगा.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछे कई सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य से पूछा कि ट्रायल में देरी का कारण क्या है, गाडलिंग का डिस्चार्ज आवेदन लंबित क्यों है और अन्य गिरफ्तार नहीं किए गए सह-आरोपियों के साथ ट्रायल कैसे होगा. कोर्ट ने राज्य से अभियोजन ट्रायल के पूरा होने का समय भी मांग लिया.
भीमा कोरेगांव मामले में भी हिरासत में रखा गया
गाडलिंग 2016 के गढ़चिरौली सूरजगढ़ आगजनी मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा उन्हें जमानत न देने के आदेश को चुनौती दे रहे हैं. उन्हें 2018 से भीमा कोरेगांव मामले में भी हिरासत में रखा गया है. अभियोजन का आरोप है कि गाडलिंग ने अन्य आरोपियों को वाहनों में आग लगाने और घटना में संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के निर्देश दिए थे. अगली सुनवाई 28-29 अक्टूबर को होगी.