बीते हफ्ते प्रयागराज से एक ऐसी घटना सामने आई जो जेंडर पहचान और मानसिक उलझनों को हर किसी को समझने की जरूरत बताती है. घटना के अनुसार एक 22 वर्षीय UPSC एस्पिरेंट ने खुद को लड़की मानते हुए यूट्यूब पर वीडियो देखा और फिर अपना प्राइवेट पार्ट काट दिया. उसकी जान पर बन आई तब जाकर डॉक्टरों की हेल्प ली. इस घटना के बाद कुछ सवाल जैसे जेंडर क्या है, अपनी पहचान को अपनाने का सही तरीका क्या है, टीनएज में कई बच्चों को जेंडर कन्फ्यूजन क्यों होता है, इसकी सर्जरी कितनी मुश्किल है और इसके लिए क्या कानूनी प्रक्रिया है, हर किसी को पता होने चाहिए. आइए- यहां इसे समझते हैं.
क्या है प्रयागराज की चौंकाने वाली घटना
13 सितंबर 2025 को प्रयागराज के स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में एक UPSC स्टूडेंट भर्ती हुआ. अमेठी के रहने वाला 22 साल का ये लड़का 14 साल की उम्र से ही खुद को लड़की मानता था. अपनी इस पहचान को लेकर वो मानसिक उलझन में रहता था. तभी उसने यूट्यूब वीडियो देखकर और एक डॉक्टर की गलत सलाह पर खुद सर्जरी करने की कोशिश की. इससे बहुत खून बहा और उसकी हालत गंभीर हो गई. अस्पताल में प्लास्टिक सर्जरी हुई. असल में ये लड़का जेंडर आइडेंटिटी डिसऑर्डर से जूझ रहा है. ये घटना बताती है कि बिना गाइडेंस के ऐसे कदम कितने खतरनाक हैं.
जेंडर और सेक्शुअलिटी में अंतर समझिए
मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं कि असल में जेंडर आइडेंटिटी वो है जो आप अपने बारे में सोचते हैं. आपको अपने बारे में क्या लगता है कि आप लड़का हैं लड़की हैं या कुछ और. वहीं, सेक्शुअलिटी ये तय करती है कि आपका अट्रैक्शन किसकी तरफ होता है. आपका समान जेंडर की तरफ आकर्षण है या दूसरे किसी अन्य की तरफ ये सेक्शुअलिटी कही जाती है. वहीं अगर किसी व्यक्ति को अपना जेंडर उसके जन्म के समय दिए गए सेक्स (लड़का/लड़की) से अलग महसूस होता है, तो इस अवस्था को जेंडर डिस्फोरिया कहते हैं. इससे कई बार व्यक्ति को अपने शरीर से नफरत या परेशानी हो सकती है.
डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. इसमें दिमाग का स्ट्रक्चर या हार्मोन्स का असर से लेकर बचपन में मिला माहौल या समाज के नियम भी होते हैं. ये उलझन टीनएज में कुछ ज्यादा होती है. इसके पीछे की वजह ये है कि प्यूबर्टी के समय हमारे हार्मोन्स बदलते हैं. लड़कों में टेस्टोस्टेरोन से आवाज भारी होती है, वहीं लड़कियों में ब्रेस्ट का विकास होता है.
आसान भाषा में कहें तो इस समय अगर आपकी शरीर की पहचान आपके मन की पहचान से मेल नहीं खाती तो ऐसे में डिप्रेशन या तनाव हो सकता है. अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन के अनुसार टीनएजर्स में डिस्फोरिया के लक्षणों में उन्हें अपने शरीर से नफरत या दूसरा जेंडर बनने की इच्छा होती है. भारत में समाज का दबाव और जानकारी की कमी इसे और मुश्किल बना देती है. इंडियास्पेंड (2023) की रिपोर्ट कहती है कि 80% ट्रांसजेंडर युवाओं को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है
टीनएज में ही कन्फ्यूजन क्यों?
टीनएज में शरीर और दिमाग तेजी से बदलता है. हार्मोन्स के कारण नई फीलिंग्स आती हैं. अगर कोई लड़का गुड़िया से खेलना पसंद करता है या लड़की मूंछ चाहती है तो समाज इसे गलत मानता है. जर्नल ऑफ सेक्शुअल रिसर्च (2017) के अनुसार जेंडर-नॉनकन्फॉर्मिंग बच्चों में 2 से 3% बाद में ट्रांसजेंडर आइडेंटिटी अपनाते हैं बाकी का कन्फ्यूजन हार्मोन्स या सोशल प्रेशर की वजह से हो सकता है. NHS UK के अनुसार काउंसिलिंग से टीनएजर्स अपनी फीलिंग्स समझ सकते हैं. वहीं, अगर सपोर्ट न मिले तो जैसे प्रयागराज में हुआ, तो गलत कदम उठा सकते हैं.
क्यों जरूरी है काउंसिलिंग?
मनोचिकित्सक जेंडर डिस्फोरिया को समझने और उसका इलाज करना जरूरी मानते हैं. दिल्ली के डॉ. समीर पारिख कहते हैं कि टीनएज में जेंडर कन्फ्यूजन आम बात है. बच्चे अपने शरीर और समाज के रोल्स को समझने की कोशिश करते हैं. मनोरोग विशेषज्ञ डॉ विधि एम पिलनिया कहती हैं कि जेंडर डिस्फोरिया कोई बीमारी नहीं, बल्कि पहचान का मिसमैच है. काउंसिलिंग से टीनएजर्स अपनी भावनाओं को समझ सकते हैं.
कैसे तय होता है जेंडर, अपनी पहचान कैसे अपनाएं
स्टेप 1: मनोचिकित्सक सबसे पहले डीएसएम-5 से देखते हैं कि डिस्फोरिया है या नहीं. इसके लिए 6 महीने से ज्यादा परेशानी की हिस्ट्री चेक होती है.
स्टेप 2: डॉक्टर्स बातचीत से बच्चे की भावनाएं, परिवार और समाज का दबाव समझने की कोशिश करते हैं.
स्टेप 3: दूसरा जेंडर बनकर कुछ समय बिताने की सलाह दी जाती है, जैसे कपड़े या नाम बदलना.
स्टेप 4: अगर जरूरी हो तो हार्मोन थेरेपी के लिए डॉक्टर के पास भेजा जाता है.
जेंडर चेंज सर्जरी कितनी मुश्किल?
जेंडर चेंज सर्जरी (जीआरएस) बहुत जटिल है. इसमें साइकियाट्रिस्ट, हार्मोन विशेषज्ञ और सर्जन की टीम काम करती है. मेल टू फीमेल सर्जरी में पेनिस की स्किन से वैजाइना बनाई जाती है. यह 4-8 घंटे की सर्जरी है. भारत में प्राइवेट अस्पतालों में सर्जरी की लागत 5-10 लाख तक हो सकती है, जबकि सरकारी अस्पतालों में सीमित सुविधाएं हैं.
इंडियास्पेंड की रिपोर्ट कहती है कि ट्रांसजेंडरों को पैसों और मेडिकल सुविधाओं की कमी से जूझना पड़ता है. चेन्नई की एक स्टडी में 20 ट्रांस वुमन ने बताया कि सर्जरी के बाद दर्द, इंफेक्शन और मानसिक बदलाव मुश्किल थे. एक ट्रांस वुमन ने कहा कि सर्जरी ने मुझे मेरे शरीर से जोड़ा, लेकिन परिवार का साथ जरूरी था.
मैंने भी सहा है ये दर्द
नोएडा की ट्रांस वुमन माही ने बताया कि मैंने जब से होश संभाला, तब से मैं खुद को सिर्फ एक लड़की की ही तरह महसूस करती थी. लेकिन पुरुष के शरीर में खुद को कैद मानती थी. मैंने सर्जरी के जरिये अपनी असली पहचान हासिल की है. हार्मोंस के इलाज से लेकर काउंसिलिंग और sex reassignment surgery की ये पूरी जर्नी होती है. इन सबमें भले ही मैंने काफी कष्ट सहे, लेकिन आज अपनी पहचान को लेकर खुश हूं.
सर्जरी से पहले क्या है काउंसिलिंग और कानूनी प्रक्रिया
ट्रांसजेंडर पर्सन्स एक्ट, 2019 के तहत सर्जरी से पहले सर्टिफिकेट जरूरी है. इसके लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (डीएम) से ट्रांसजेंडर सर्टिफिकेट लेना होता है. इसके अलावा नेशनल पोर्टल (transgender.dosje.gov.in) पर फॉर्म भरना होता है. इस नेशनल पोर्टल पर आधार कार्ड, फोटो, और सेल्फ-डिक्लेरेशन के साथ फॉर्म भरना होता है. फिर काउंसिलिंग के बाद साइकियाट्रिस्ट से सर्टिफिकेट मिलता है कि व्यक्ति को जेंडर डिस्फोरिया है या नहीं. इसके बाद दूसरा सर्टिफिकेट सर्जन या एंडोक्राइनोलॉजिस्ट से, जो सर्जरी की मेडिकल जरूरत कन्फर्म करता है.