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पवन हंस के बिकने पर क्यों हो रहा है विवाद? 211.14 करोड़ रुपये में हुई है डील

सरकार ने पवन हंस में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच दी है. इसमें सरकार की 51 फीसदी हिस्सेदारी थी, जिसे स्टार 9 मोबिलिटी को 211.14 करोड़ रुपये में बेच दिया गया है. हालांकि, इस बिक्री पर कांग्रेस ने सवाल उठाया है.

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पवन हंस के बेड़े में 43 हेलिकॉप्टर हैं. (फाइल फोटो)
पवन हंस के बेड़े में 43 हेलिकॉप्टर हैं. (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अक्टूबर 1985 में रजिस्टर हुई थी पवन हंस
  • सरकार के पास इसकी 51% हिस्सेदारी थी
  • स्टार 9 मोबिलिटी ने खरीदी 51% हिस्सेदारी

हेलिकॉप्टर सेवा मुहैया कराने वाली सरकारी कंपनी अब बिक गई है. इस कंपनी में सरकार की 51 फीसदी हिस्सेदारी थी, जिसे सरकार ने स्टार 9 मोबिलिटी ग्रुप को बेच दिया है. ये डील 211.14 करोड़ रुपये में हुई है. अब इस कंपनी का नया मालिक स्टार 9 मोबिलिटी ग्रुप होगा. हालांकि, इस सौदे पर कांग्रेस ने सवाल खड़े किए हैं. कांग्रेस का आरोप है कि पवन हंस को जिस कंपनी को बेचा गया है, वो 6 महीने ही पुराना है. 

कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ का कहना है कि स्टार 9 मोबिलिटी एक ग्रुप है, जिसमें बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड, महाराजा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड और अल्मास ग्लोबल अपॉर्च्युनिटी फंड एसपीसी शामिल है. गौरव वल्लभ का दावा है कि ये कंसोर्शियम केवल 6 महीने पहले 29 अक्टूबर 2021 को गठित हुआ था. 

सरकारी से निजी हुई पवन हंस

- पवन हंस सरकारी कंपनी थी. इसमें सरकार की हिस्सेदारी 51% थी. इसके साथ ही सरकारी कंपनी ऑयल एंड नैचुरल गैस (ONGC) की 49% हिस्सेदारी थी. सरकार ने अपनी पूरी 51% हिस्सेदारी बेच दी है. 

- पवन हंस में अपनी 51% की हिस्सेदारी बेचने के लिए 199.92 करोड़ रुपये की बेस प्राइस रखी थी. इसके लिए तीन कंपनियों ने बोली लगाई थी. स्टार 9 मोबिलिटी ग्रुप ने 211.14 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी.

- स्टार 9 मोबिलिटी ग्रुप के अलावा एक कंपनी ने 181.05 करोड़ रुपये और एक ने 153.15 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी. स्टार 9 मोबिलिटी ग्रुप ने सबसे बड़ी बोली लगाई और पवन हंस की 51 फीसदी हिस्सेदारी उसके पास चली गई.

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लेकिन पवन हंस है क्या?

पवन हंस को 15 अक्टूबर 1985 को रजिस्टर किया गया था. इस कंपनी को सरकार और उसकी ही एक कंपनी ONGC ने मिलकर शुरू किया था. शुरुआत में इसमें 78% से ज्यादा हिस्सेदारी सरकार के पास थी. कुछ साल पहले ही सरकार ने अपनी हिस्सेदारी घटाकर 51% की थी, जिसके बाद इसमें ONGC की हिस्सेदारी बढ़कर 49% पर पहुंच गई. 

नागरिक उड्डयन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 तक पवन हंस के बेड़े में 43 हेलीकॉप्टर थे. ये कंपनी हेलीकॉप्टर सर्विस मुहैया कराने का काम करती है. ये कंपनी अक्सर फायदे में रहती थी, लेकिन 2018-19 में इसे 72.42 करोड़ रुपये का घाटा हुआ.

दुर्घटनाएं भी कम नहीं

अपने 37 साल की सर्विस के दौरान पवन हंस हेलिकॉप्टर दुर्घटनाओं को लेकर भी चर्चा में रही है. कंपनी अपनी वेबसाइट पर सुरक्षा को एक फ्लाइट ऑपरेशन का अहम हिस्सा बताती है, लेकिन इसका रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है.

जुलाई 1988 में पहली बार पवन हंस का हेलिकॉप्टर दुर्घटना का शिकार हुआ था. वैष्णो देवी में हुए उस हादसे में दो पायलट समेत 7 लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद पवन हंस से जुड़ी 20 हेलिकॉप्टर दुर्घटनाओं में 91 लोगों की मौत हो चुकी है. 

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2011 में पवन हंस की हेलिकॉप्टर दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा 31 लोगों की मौत हुई थी. इसमें अरुणाचल प्रदेश के तब के मुख्यमंत्री दोरजी खांडू की मौत भी शामिल है. 30 अप्रैल 2011 को दोरजी खांडू समेत 5 लोग दुर्घटना का शिकार हो गए थे. 

पवन हंस की हेलिकॉप्टर दुर्घटनाओं को लेकर डीजीसीए ने 2018 में एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें बताया गया था कि दुर्घटनाओं के पीछे जरूरी मेंटेनेंस का न होना और सुरक्षा मानकों को फॉलो नहीं करना जैसे कारण शामिल हैं.

चौथी कोशिश में बिकी पवन हंस

पवन हंस में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचने के लिए सरकार ने विनिवेश को अक्टूबर 2016 में मंजूरी दी थी. पहली बार 13 अक्टूबर 2017 को सरकार ने बोलियां बुलाई थीं, जिसमें 4 कंपनियों ने बोली लगाई. इसमें एक ही कंपनी इसके लिए एलिजिबल रही, जिस कारण इसे कैंसिल कर दिया गया.

दूसरी बार 14 अप्रैल 2018 को बोली बुलाई गई, लेकिन इसमें भी बात नहीं बनी. तीसरी बार 11 जुलाई 2019 को बोली बुलाई गई और इस बार भी एक ही कंपनी एलिजिबिल रही, जिस कारण ये भी कैंसिल हो गई.

आखिरी बार दिसंबर 2020 में बोली बुलाई गई. इसमें तीन कंपनियों ने बोली लगाई. ज्यादा बोली लगाने पर स्टार 9 मोबिलिटी को हिस्सेदारी बेच दी गई. पवन हंस में सरकारी हिस्सेदारी बेचने को आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने मंजूरी दे दी. 

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कंपनी बिकी तो विवाद क्यों हो रहा है?

पवन हंस में सरकारी हिस्सेदारी स्टार 9 मोबिलिटी ग्रुप को बेचने पर विवाद शुरू हो गया है. कांग्रेस ने इस पर सवाल उठाए हैं. कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ का कहना है कि जो कंसोर्शियम 6 महीने पहले बना था, उसे कंपनी की हिस्सेदारी बेच दी गई.

गौरव वल्लभ ने ये भी सवाल उठाया कि जब हिस्सेदारी बेचने के लिए बेस प्राइस 199.92 करोड़ रुपये रखी गई थी तो फिर 181.05 करोड़ और 153.15 करोड़ रुपये की बोली क्यों लगाई? 

गौरव वल्लभ का कहना है कि स्टार 9 मोबिलिटी के पास अपना एक भी हेलिकॉप्टर नहीं है, जबकि अल्मास ग्लोबल अपॉर्च्युनिटी फंड एसपीसी के पास भी इस क्षेत्र का कोई अनुभव नहीं है. बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड के बेड़े में 3 हेलिकॉप्टर हैं. 

कांग्रेस प्रवक्ता का ये भी आरोप है कि पवन हंस के कर्मचारी संघ ने विनिवेश में रुचि दिखाई थी और कहा था कि इसका विलय ONGC में कर दिया जाए या फिर इसे एक सहायक कंपनी बना दी जाए, लेकिन सरकार ने इसे दरकिनार कर दिया. 

 

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