
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने सोमवार को कहा कि राज्य में घटती प्रजनन दर का मुकाबला करने की रणनीति के तहत सरकार वित्तीय प्रोत्साहन शुरू करने की योजना बना रही है. यह पहली बार नहीं है जब नेताओं ने लोगों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की है. मार्च 2025 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने संसद में राज्य का प्रतिनिधित्व बचाने के लिए दंपतियों से तुरंत बच्चे पैदा करने की गुजारिश की थी. मार्च में आंध्र प्रदेश के एक अन्य सांसद ने तीसरे बच्चे वाले परिवारों के लिए प्रोत्साहन का ऐलान किया, जिसमें लड़की पैदा होने पर 50 हजार रुपये और लड़के के लिए एक गाय देने का ऑफर था.
राज्यों को परिसीमन की चिंता
लेकिन क्यों? नई जनगणना की तैयारी चल रही है और कुछ राज्यों के नेता चिंतित हैं कि कम जनसंख्या के कारण परिसीमन की प्रक्रिया के बाद संसद में प्रतिनिधित्व कम हो सकता है. क्या यह चिंता जायज़ है? इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट ने 2022 सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम रिपोर्ट के आधार पर भारत की ताजा सांख्यिकी की जांच की और पाया कि तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में जनसंख्या वृद्धि धीमी हो गई है.
ये भी पढ़ें: 'तीसरा बच्चा पैदा करो और इनाम पाओ', महिलाओं के लिए TDP सांसद का अनोखा ऐलान
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2022 में करीब 2.5 करोड़ बच्चों का जन्म हुआ. उत्तर प्रदेश में रजिस्टर्ड जन्मों की संख्या सबसे अधिक 54.4 लाख थी, इसके बाद बिहार में 30.7 लाख और महाराष्ट्र में 19.2 लाख थी. राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे अन्य उत्तरी राज्यों में भी बर्थ रजिस्ट्रेशन हाई रहा. इसके उलट, 2022 में दक्षिणी राज्यों ने तुलनात्मक रूप से कम बर्थ रजिस्ट्रेशन दर्ज किए. तमिलनाडु ने 9.4 लाख, कर्नाटक ने 10.4 लाख, आंध्र प्रदेश ने 7.5 लाख, तेलंगाना ने 7 लाख और केरल ने सिर्फ 4.4 लाख बर्थ रजिस्ट्रेशन हुए.
क्या ये नया ट्रेंड है?
हमने 2013 से 2022 तक राज्यवार बर्थ रजिस्ट्रेशन डेटा का विश्लेषण किया. 2022 के आंकड़ों के आधार पर, राज्यों को तीन कैटेगरी में बांटा गया है: 15 लाख से ज्यादा रजिस्ट्रेशन वाले, 7-15 लाख वाले और 4-7 लाख से कम रजिस्ट्रेशन वाले.
पहली कैटेगरी में उत्तर प्रदेश शामिल है, जिसने 2013 से अब तक लगभग 40 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है. बिहार में भी 2013 में 16 लाख से तेज़ बढ़ोतरी देखी गई, जो दशक में लगभग दोगुनी हो गई. राजस्थान और मध्य प्रदेश में धीरे-धीरे वृद्धि देखी गई, जबकि महाराष्ट्र मामूली उतार-चढ़ाव के साथ अपेक्षाकृत स्थिर रहा. ये राज्य, जो ज़्यादातर उत्तर और मध्य क्षेत्रों से हैं, ने उच्च प्रजनन दर बनाए रखी है.
ये भी पढ़ें: 'जल्द बच्चे पैदा करें...', परिसीमन विवाद के बीच तमिलनाडु के CM स्टालिन ने लोगों से की अपील
कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के तीन दक्षिणी राज्य गुजरात, असम और पश्चिम बंगाल के साथ दूसरी श्रेणी में आते हैं. 2013 में कर्नाटक में 10.4 लाख जन्म दर्ज किए गए, जो 2017 तक बढ़कर 11 लाख हो गए लेकिन फिर 2022 तक घटकर 10.4 लाख हो गए.
तमिलनाडु में गिरावट का रुख देखा गया, जहां 2013 में बर्थ रजिस्ट्रेशन 11.9 लाख था, जो 2022 में घटकर 9.4 लाख रह गया. आंध्र प्रदेश में भी उतार-चढ़ाव देखा गया, जहां 2013 में 7.2 लाख बर्थ रजिस्टर्ड हुए, जो 2022 तक मामूली वृद्धि के साथ 7.5 लाख हो गए.
अंतिम कैटेगरी में ओडिशा, छत्तीसगढ़, हरियाणा, केरल और पंजाब जैसे राज्य शामिल हैं. केरल की संख्या 2013 में 5.4 लाख से लगातार गिरकर 2022 में 4.4 लाख हो गई. पंजाब में भी इसी तरह की गिरावट आई और दशक में यह 4.5 लाख से घटकर 4 लाख रह गई. छत्तीसगढ़ और हरियाणा में कुछ उतार-चढ़ाव देखने को मिले, लेकिन कोई खास वृद्धि नहीं हुई.
लिंगानुपात में कौन आगे?
दुर्भाग्य से ज्यादा बर्थ रजिस्ट्रेशन वाले इनमें से कई राज्य खराब लिंग संतुलन से जूझ रहे हैं. बिहार, अपनी बड़ी जन्म संख्या के बावजूद, प्रति हजार पुरुषों पर 891 महिलाओं के साथ देश में सबसे कम लिंगानुपात में से एक दर्ज करता है. यह विषम अनुपात लगातार तीन वर्षों से खराब होता जा रहा है. 2020 में 964 से गिरकर 2021 में 908 और 2022 में और भी कम होकर 891 हो गया. इसी तरह महाराष्ट्र में लिंगानुपात 906, तेलंगाना 907, गुजरात 908 और हरियाणा 916 है.
ये भी पढ़ें: 'नए कपल 16-16 बच्चे पैदा करें...' CM चंद्रबाबू नायडू के बाद अब स्टालिन ने जनसंख्या बढ़ाने पर दिया जोर
दूसरी ओर नगालैंड में 1068 लिंगानुपात है जो भारत में सबसे अधिक है. अन्य पूर्वोत्तर राज्यों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है, जैसे अरुणाचल प्रदेश में 1036 और मेघालय में 972. केरल जैसे दक्षिणी राज्य, जहां लिंगानुपात 971 और छत्तीसगढ़ में 965 है, जो बेहतर सोशल इंडिकेटर्स के लिए जाने जाते हैं, वे भी मॉडरेट बर्थ रजिस्ट्रेशन के साथ-साथ अधिक बैलेंस लिंगानुपात बनाए रखते हैं.
हालांकि, कई राज्यों में जन्म के समय लिंगानुपात का विश्लेषण करने के लिए पर्याप्त डेटा का अभाव है. उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के पास सिर्फ दो वर्षों- 2021 और 2022 के लिए डेटा उपलब्ध है. इसी तरह बिहार और झारखंड 2020 से शुरू होने वाले सिर्फ तीन वर्षों के आंकड़े मुहैया कराते हैं.
कुछ राज्यों में भी असामान्य उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं. उदाहरण के लिए, मणिपुर में 2018 में लिंगानुपात सिर्फ़ 757 था, जो 2019 में बढ़कर 934 हो गया, 2020 में फिर गिरकर 880 हो गया, 2021 में 94 अंकों की तेज़ी से बढ़ा और फिर 2022 में एक बार फिर गिरावट आई. लद्दाख में भी इसी तरह का अनियमित पैटर्न देखा गया, जहां 2020 में अनुपात असामान्य रूप से बढ़कर 1104 था, 2021 में गिरकर 949 हो गया और 2022 में फिर से 78 अंकों की बढ़ोतरी के साथ 1027 पर पहुंच गया.
नगालैंड भी अलग ट्रेंड की इस कैटेगरी में आता है. 2017 में, लिंगानुपात 948 था, जो धीरे-धीरे बढ़कर 2018 में 965 और 2019 में 1001 हो गया. हालांकि, अगले दो वर्षों में इसमें गिरावट आई और 2022 में यह फिर से तेजी से बढ़कर 1068 हो गया, जो उस वर्ष सभी राज्यों में सबसे ज्यादा था.