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दिल्ली दंगा मामला: उमर खालिद और अन्य को जमानत से इनकार पर कपिल सिब्बल ने उठाए सवाल

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने उमर खालिद और अन्य को जमानत से इनकार किए जाने के बाद न्यायिक प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा का सुनवाई से अलग होना और जमानत ना देना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है.

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अधिवक्ता कपिल सिब्बल. (Photo: ITG)
अधिवक्ता कपिल सिब्बल. (Photo: ITG)

दिल्ली में 2020 के उत्तर-पूर्वी दंगों के मामले में आरोपी उमर खालिद और अन्य लोगों को जमानत से इनकार किए जाने के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई से जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा के अलग होने और न्यायिक प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं.

कपिल सिब्बल ने कहा कि जस्टिस मिश्रा ने स्पष्ट रूप से कहा, 'मैं यह मामला नहीं सुनूंगा', और वैसे भी जो वहां गया है उसको पता है कि जज उनकी बात सुन ही नहीं रहे. इस मामले में कई बार सुनवाई टल चुकी है.'

वरिष्ठ अधिवक्ता के अनुसार, पिछले महीने जुलाई 2025 में एक बार स्वास्थ्य कारणों से और दूसरी बार अन्य कारणों से स्थगन मांगा गया, लेकिन उन्हें गलत तरीके से आरोपित किया जा रहा है कि उन्होंने सात बार स्थगन की मांगा है.

जमानत ना देना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन

उन्होंने इस बात पर नाराजगी जताई कि उमर खालिद को जमानत न मिलने का ठीकरा केवल उनके वकील पर फोड़ा जा रहा है जो सही नहीं है. सिब्बल ने सवाल उठाया, 'अगर जमानत नहीं देनी है तो मामले को खारिज कर दें. जमानत न देने का ये रवैया संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) के खिलाफ है. ऐसा नहीं होना चाहिए.'

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सिब्बल ने बताया कि उमर खालिद पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत मामला दर्ज है और इस कानून को असंवैधानिक घोषित करने के लिए एक रिट याचिका भी दायर की गई है.

'दंगे के वक्त दिल्ली में नहीं था उमर'

उन्होंने दलील दी कि उमर खालिद उस वक्त भिवंडी, मुंबई में भाषण दे रहे थे, जब दिल्ली में दंगे हो रहे थे, यानी वे घटनास्थल पर मौजूद भी नहीं थे. इसके बावजूद उन्हें जमानत नहीं मिल रही, जबकि अन्य मामलों में इसी तरह के आरोपों में शामिल लोगों को समय पर जमानत दी गई है. सिब्बल ने कई ऐसे मामलों की सूची भी पेश की, जहां UAPA के तहत आरोप तय होने के बावजूद आरोपियों को जमानत मिली.

सिब्बल ने अदालत के रुख पर भी आपत्ति जताई, जहां जजों का कहना है कि जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं होना चाहिए. उन्होंने भरोसा जताया कि ट्रायल में सभी आरोपी बेकसूर साबित होंगे और रिहा होंगे. साथ ही उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि जिन मंत्रियों ने घृणा और वैमनस्य फैलाने वाले भाषण दिए, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, जबकि निर्दोषों को सलाखों के पीछे रखा जा रहा है.

राजनीतिक दलों की चुप पर उठाए सवाल

उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल भी चुप हैं! वे डरते हैं कि अगर शरजील और उमर मामले पर न्याय की आवाज उठाई तो उनके वोटबैंक से उन्हें विरोध का सामना करना पड़ेगा.

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सिब्बल ने कहा कि दिल्ली पुलिस के पास उत्तर-पूर्व दंगों की सारी वीडियोग्राफी मौजूद है और इसे कोर्ट में पेश किया जाए, लेकिन अभियोजन एजेंसी कोर्ट को वीडियो नहीं दिखाना चाहती. जो इस मामले की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है.

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