scorecardresearch
 

हिंदू कर्मचारी बोले- कश्मीर में लौट रहा 1990 का दौर, पता नहीं कौन कब कहां मार दे गोली

Target Killings in Kashmir: कश्मीर घाटी में आतंकवाद एक बार फिर से पैर पसार रहा है. दहशत फैलाने के लिए आतंकी टारगेट किलिंग कर रहे हैं. कश्मीर घाटी में आतंकी 1990 जैसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

Advertisement
X
कश्मीर घाटी में टारगेट किलिंग्स की घटनाएं बढ़ती जा रहीं हैं.
कश्मीर घाटी में टारगेट किलिंग्स की घटनाएं बढ़ती जा रहीं हैं.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कश्मीर में आम लोगों को निशाना बना रहे आतंकी
  • आतंकियों के डर से घाटी से पलायन भी शुरू हुआ
  • लोगों को डर, पता नहीं कब गोली आकर लग जाए

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में आज एक और नया दिन और एक और हिंदू कर्मचारी की हत्या. ये तब हुआ जब परसों ही यहां के एक स्कूल की टीचर को आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया था. लोग लेडी टीचर की हत्या से आक्रोशित थे. न्याय के लिए सड़कों पर थे कि आज बैंक मैनेजर विजय की हत्या की खबर आ गई. 

घाटी में टारगेट किलिंग का ये नया दौर है. इसने एक बार फिर से 1990 जैसे माहौल की याद दिला दी है. निशाने पर कश्मीर में बसने आ रहे कश्मीरी पंडित तो हैं ही, बाहरी मजदूर और वो सब हैं जिन्हें आतंकी अपने दहशत भरे राज के लिए खतरा मानते हैं. यही वजह है कि 7 दिन पहले 25 मई को कश्मीरी एक्ट्रेस अमरीन भट्ट और 24 मई को पुलिसकर्मी सैफ कादरी की हत्या हो गई. 

कश्मीर में पिछले साल 8 जून को सरपंच अजय पंडित की हत्या से टारगेट किलिंग का सिलसिला शुरू हुआ था. इसके बाद 5 अक्टूबर को श्रीनगर के केमिस्ट एमएल बिंद्रू की हत्या कर दहशत फैला दी गई. दो दिन के बाद ही यानी 7 अक्टूबर को आतंकियों ने एक स्कूल की प्रिंसिपल सतिंदर कौर और टीचर दीपक चंद की हत्या कर दी. मई में टारगेट किलिंग की 8 घटनाएं सामने आईं. रजनी बाला की हत्या से पहले 12 मई को आतंकियों ने बड़गाम में दफ्तर में घुसकर राजस्व अधिकारी राहुल भट्ट की हत्या कर दी थी. जाहिर है इससे सरकारी कर्मचारी डरे-सहमे हुए हैं.

Advertisement
राहुल भट्ट के पिता के आंसू पोंछती छोटी बच्ची. (फाइल फोटो-PTI)

डोडा जिले के रहने वाले एक टीचर बताते हैं, 'मेरे दो छोटे बच्चे हैं. टारगेट किलिंग का ये दौर देख वो भी सहम गए हैं. मैं ज्यादा कुछ नहीं बताता, लेकिन टीवी देखकर बच्चों को भी अंदाजा हो गया कि कश्मीर अब उनके माकूल नहीं रहा. साल 2009 में मेरी नौकरी बतौर शिक्षक बारामुला में लगी, तब से जम्मू डिवीजन में ट्रांसफर की आस है. लेकिन अब नाउम्मीदी हावी हो रही है.' 

वो बताते हैं, जिस वक्त 2009 में नौकरी लगी, हालात उस समय भी ठीक नहीं थे. आतंकी हमले होते रहते थे. अक्सर भीड़ भरे बाजार में ग्रेनेड फेंक दिया जाता था तो कभी सुरक्षाबलों पर फायरिंग हो जाती थी. लेकिन अब 'टारगेट किलिंग' हो रही है. चुन-चुन कर कश्मीर में हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है. कभी कश्मीरी पंडित तो कभी सुरक्षाबलों के जवान तो कभी यूपी-बिहार से आने वाले कामगारों को मारा जा रहा है. अब तो बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते वक्त भी डर लगता है कि कहीं से कोई गोली आकर न लग जाए.

उन्होंने बताया कि तबादले का इंतजार है. अपनी अर्जी अफसरों को दी, जो सुनी नहीं गई. फरवरी 2021 में ट्रांसफर लिस्ट आई, लेकिन बाद में उनसे कहा गया कि आदेश निरस्त हो गया है. इंतजार करते-करते 13 साल बीत गए हैं. उप राज्यपाल मनोज सिन्हा से बहुत उम्मीद है. शायद अब 'घर वापसी' हो जाए. सभी हिंदू मुलाजिमों का जिला मुख्यालयों में ट्रांसफर करने संबंधी आदेश को नाकाफी बताते हुए वो कहते हैं कि जम्मू डिवीजन में ट्रांसफर करना ही अब अंतिम उपाय है.

Advertisement

ये भी पढ़ें-- आतंकी ने दायें-बायें देखा और दाग दी गोली... कश्मीर में हिंदू बैंक मैनेजर की हत्या का CCTV फुटेज 

बाकी टीचरों ने भी ऐसा ही खौफ जताया. सांबा के एक स्कूल में पढ़ा रहीं एक टीचर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि दो महीने से कश्मीर में बाहरी लोगों के लिए सोशल मीडिया पर धमकियां सर्कुलेट हो रही हैं. धमकाया जा रहा है कि कश्मीरी पंडित और कश्मीर में काम कर रहे जम्मू डिविजन के लोग जितनी जल्दी हो सके घाटी छोड़ दें, वर्ना नतीजे भुगतने को तैयार रहें.

रजनी बाला के परिजन. (फाइल फोटो-PTI)

कश्मीर में तैनात जम्मू के एक अन्य शिक्षक का कहना है कि आतंकी गुट घाटी में बाहरी वर्सेस कश्मीरी का माहौल तैयार कर रहे हैं. इसी वजह से घटनाओं में तेज़ी आई है. आर्मी से तो वो लड़ नहीं सकते. ऐसे में उनके सबसे आसान टारगेट हम ही हैं.

यहां काम कर रहे लोगों का कहना है कि हम उम्मीद खो चुके हैं. हमें ये ही नहीं पता कि कब हमारी जान चली जाएगी. पुलिस और सुरक्षाबलों के पास तो हथियार हैं लड़ने को, लेकिन हम तो निहत्थे हैं और इसी वजह से उनके आसान शिकार भी.

कश्मीर में काम कर रहे गैर-मुस्लिम कर्मचारी और कश्मीरी पंडित सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं. सरकार ने इन कर्मचारियों को सुरक्षित जगह भेजने का फैसला लिया है, लेकिन लोगों को गुस्सा फूट पड़ा है. 350 कश्मीरी पंडितों ने सामूहिक इस्तीफा तक दे दिया था.

Advertisement

रजनी बाला जिस कुलगाम जिले में शिक्षक थीं, उस जिले के चौगाम गांव के सरपंच विजय रैना गुस्से में हैं. वो कहते हैं कि इन दहशतगर्दों से क्यों डरें, जो पीछे से गोली चला रहे हैं. ऐसी बुजदिली से तो किसी को भी मारा जा सकता है. वो कहते हैं कि हिंदुओं को सुरक्षित जगह भेजकर आतंकियों को उनके असल ठिकाने यानी जहन्नुम भेजना चाहिए.

दिल्ली से करीब 700 किलोमीटर दूर कश्मीर में हत्याएं नई नहीं हैं. न ही दिल्ली इससे बेख़बर है. लेकिन स्कूल में पढ़ाने वाले जब एक टीचर को ये कहना पड़े कि उनके स्कूल में पढ़ने वाला , उनकी कॉलोनी में रहने वाला कोई भी उन्हें मार सकता है...वो भी सिर्फ इसलिए कि वो कश्मीर के नहीं हैं...तो समझिये स्थिति कितनी गम्भीर हो चली है. 

कश्मीर को दशकों से कवर कर रहे आजतक के पत्रकार अशरफ़ वानी खूनी खेल के इस पैटर्न को समझाते हुए कहते हैं - ' कश्मीर में टारगेट किलिंग को अंजाम देने वाले चाहते हैं कि बाहरी लोग कश्मीर में न रहें और न तैनात किए जाएं. नतीजतन वो ऐसे ही लोगों को चुन कर मार रहे हैं. सरकार की मजबूरी है कि वो यहां से नॉन-कश्मीरी लोगों को वापस भी नहीं बुला सकती क्योंकि अगर वो ऐसा करेगी तो ये उसके लिए बड़ा झटका होगा.'

Advertisement

ये भी पढ़ें-- पलायन के 27 साल बाद कश्मीर लौटी थीं रजनी बाला, आतंकी आए-नाम पूछा और गोलियां बरसाकर ले ली जान

अमित शाह कल सुरक्षा पर करेंगे बैठक

कश्मीर के मौजूदा हालात साफ इशारा करते हैं कि जो दिख रहा है, वैसा है नहीं. आतंकियों ने इन दिनों दहशतगर्दी के लिए जो पैंतरा अपना लिया है, वो बेहद चिंताजनक है. सख्ती के बाद भी टारगेट किलिंग रुक नहीं रही. इन्हीं सब का असर है कि कल 3 जून को जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा के मुद्दे पर गृह मंत्री अमित शाह एक हाई लेवल मीटिंग करने जा रहे हैं. परिस्थितियां कितनी संवेदनशील हो गईं हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ऐसी हाई लेवल मीटिंग 15 दिन के भीतर दूसरी बार हो रही है. कश्मीर के आईजी विजय कुमार ने दावा किया था कि अप्रैल के आखिर तक 150 से भी कम सक्रिय आतंकी जिंदा बचे हैं. साल के अंत तक ये संख्या 100 तक लाने का लक्ष्य है.

जारी करना पड़ा हेल्पलाइन नंबर

घाटी में हालात बिगड़ते देख प्रशासन ने भी अल्पसंख्यकों के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं जो हैं -0194-2506111, 2506112. इसके अलावा jk.minoritycell@gmail.com पर शिकायत करने की सुविधा दी गई है. सरकार लोगों में भरोसा बनाए रखने के लिए भले हर संभव उपाय कर रही हो लेकिन जो डर कश्मीर में मौजूद हिंदुओं के दिल में बैठा है, उसे निकालने में ये काफी साबित नहीं हो रहे. 

Advertisement

कुछ समाचार एजेंसियों ने दावा किया है कि कई कश्मीरी पंडित पलायन भी कर चुके हैं. परिवार समेत वे सुरक्षित स्थानों की ओर रवाना हो गए हैं. गुरुवार को एक और राजस्थान के रहने वाले हिंदू बैंककर्मी की हत्या से लोग और डर गए हैं. आलम ये है कि इस समय श्रीनगर एयरपोर्ट पर कश्मीर से जाने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी है. इससे पहले 1990 में जब पलायन हुआ तो लाखों कश्मीरी पंडित अपना सब कुछ छोड़ रातो-रात कश्मीर छोड़ने को मजबूर हो गए थे. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1990 में 44 हजार से भी ज्यादा परिवारों के 1 लाख 54 हजार 712 लोग पलायन कर जम्मू पहुंचे थे. गृह मंत्रालय के मुताबिक, 1989 के बाद घाटी में शुरू हुए आतंकवाद में 219 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई थी.

रजनी बाला की हत्या के बाद सड़क पर बैठे कश्मीरी पंडित. (फाइल फोटो)

मनमोहन सरकार ने 2008 में दिया राहत पैकेज

कश्मीर और कश्मीरी पंडितों को सभी सरकारें तवज्जो देती रही हैं. कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए मनमोहन सरकार ने साल 2008 में राहत पैकेज का ऐलान किया था. इसके तहत केंद्र सरकार घर की मरम्मत के लिए साढ़े 7 लाख रुपये मदद देती है. घर के अलावा विस्थापितों को बसाने के लिए 3000 लोगों को नौकरी और प्रति परिवार 13000 रुपये तक पैसा देने का भी प्रावधान था.

Advertisement

मोदी सरकार ने 2015 में दीं नौकरियां

मोदी सरकार ने भी कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के लिए और 3000 सरकारी नौकरियों का ऐलान किया. संसद में बीते 6 अप्रैल को देश के गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद से प्रधानमंत्री विकास पैकेज के तहत 2105 कश्मीरी पंडितों को नौकरी दी गई है.

खीर भवानी मेले में न आने की अपील

पलायन की ये परिस्थिति ऐसे वक्त उपजी है जब माता खीरभवानी का मेला बस चंद दिनों बाद है. माता खीर भवानी के मेले में हर साल काफी रौनक रहती है. श्रीनगर से सटे गांदरबल जिले के तुलमुला गांव में मौजूद ये मंदिर कश्मीरी पंडितों के लिए तीर्थ की तरह है. इसकी महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि 1990 में पलायन के बाद देश-दुनिया में फैले कश्मीरी पंडित सिर्फ इस दिन मां की पूजा करने और मेले में शिरकत करने एक दिन के लिए ही सही, पर कश्मीर जरूर आते हैं. लेकिन इस बार माता खीर भवानी ट्रस्ट ने भी एक चिट्ठी जारी कर कश्मीरी पंडितों से 'टारगेट किलिंग' के विरोध में एकजुट रहने और 7 जून को होने वाले मेले में न आने की अपील कर दी है.

लगातार हमलों के बीच सैलानियों से गुलजार डल झील

कश्मीर में मार्च से ही अधिकांश होटल फुल हैं. सैलानियों से घाटी गुलजार है. कारोबारियों को उम्मीद है कि कोरोना काल में हुए नुकसान की भरपाई इस बार हो जाएगी. अमरनाथ यात्रा उनके लिए सोने पर सुहागा जैसा साबित हो सकती है. लगभग 45 दिनों की अमरनाथ यात्रा के दौरान भी पूरे जम्मू-कश्मीर का पर्यटन उद्योग खूब फलता-फूलता है.

अमरनाथ यात्रा में इस बार बार कोड सिस्टम

इस बार अमरनाथ यात्रा 30 जून से शुरू हो रही है जो 11 अगस्त को संपन्न होगी. 43 दिन तक चलने वाली यात्रा के दौरान सुरक्षा के भरपूर इंतजाम किए जा रहे हैं. चंदनबाड़ी के अलावा इस बार रामबन में भी बड़ा कैंप बनाया जा रहा. यात्रियों के वाहनों की निगरानी के लिए बार कोड सिस्टम के साथ RFID टैग तक लगाए जाएंगे. अमरनाथ यात्रियों पर 1993 से अब तक कुल 14 हमले हो चुके हैं, जिसमें 68 श्रद्धालुओं की जान चली गई. साल 2000 में सबसे बड़ा हमला हुआ था जिसमें 32 श्रद्धालुओं की मौत हो गई. इसके बाद 2017 में बड़ा हमला हुआ. आतंकियों ने श्रद्धालुओं की बस पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं जिसमें कुल 7 यात्रियों ने दम तोड़ दिया था.

जम्मू और कश्मीर डिवीजन में 10-10 जिले

जम्मू और कश्मीर दोनों ही डिवीजन में 10-10 जिले हैं. जम्मू रीजन में जम्मू, सांबा, कठुआ, उधमपुर, डोडा, पुंछ, राजौरी, रियासी, रामबन और किश्तवाड़ है. वहीं कश्मीर रीजन में श्रीनगर, बड़गाम, कुलगाम, पुलवामा, बारामुला, अनंतनाग, कुपवाड़ा, शोपियां, गांदरबल और बांदीपोरा है. जम्मू-कश्मीर में अब तक दरबार मूव की प्रथा रही थी. यानी राज्य में ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर और शीतकालीन राजधानी जम्मू रहती थी. 6-6 महीने के लिए राजधानी बदलती थी. इस दौरान पूरा दफ्तर भी जम्मू और श्रीनगर शिफ्ट होता था. इस प्रक्रिया को ही दरबार मूव कहते थे. 2021 में इसे बंद कर दिया गया, लेकिन दफ्तर दोनों ही जगहों पर चलते रहे. इसके चलते कश्मीर में भी काफी संख्या में सरकारी कर्मचारी काम करते हैं जो रहने वाले जम्मू डिवीजन के हैं. लेकिन मौजूदा हालात में वे भी ट्रांसफर की गुहार लगा रहे हैं.

परिसीमन में कश्मीरी पंडितों की भी नुमाइंदगी

5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 और 35 A खत्म करने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिए गए. ऐसे में फिर से परिसीमन के साथ जम्मू-कश्मीर का सियासी नक्शा बदलने की तैयारी हो चुकी है. परिसीमन आयोग ने अपनी रिपोर्ट भेज दी है. यदि ये रिपोर्ट लागू हुई तो अब तक विधानसभा में जो दबदबा कश्मीर खित्ते का रहता था, वो कुछ कम हो जाएगा. जम्मू रीजन की 37 सीटों को बढ़ाकर 43 सीटें करने की तैयारी है. वहीं कश्मीर में एक सीट बढ़ाकर उसे 47 करने की सिफारिश की गई है. कश्मीरी पंडित लंबे अरसे से अपने लिए विधानसभा में सीटें रिजर्व करने की मांग कर रहे थे. परिसीमन आयोग ने इस बार उनकी मांगों को सुनते हुए 2 सीटें 'कश्मीरी प्रवासियों' के लिए रिजर्व कर दी हैं.

कश्मीरी पंडितों के मुद्दे में केजरीवाल भी कूदे

टारगेट किलिंग पर सियासत भी तेज हो गई है. राहुल गांधी ने कश्मीर में लगातार हो रही हत्याओं पर केंद्र सरकार पर निशाना साधा तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी सरकार के खिलाफ मैदान पर उतर आए. केजरीवाल बीते कुछ दिनों से कश्मीरी पंडितों के लिए काफी दरियादिली दिखा रहे हैं. मुफ्त में बिजली का मीटर लगाने का वादा करने के बाद अब वे कह रहे हैं कि केंद्र कश्मीरी पंडितों को फिर से सुरक्षित बसाए. इसके लिए वे यथासंभव मदद करेंगे. 

चुनाव के लिए अभी इंतजार

राज्य में आखिरी बार 2014 में विधानसभा के चुनाव हुए थे. इसके बाद दो सियासी ध्रुव बीजेपी और पीडीपी ने एक प्रयोग के तौर पर मिलकर सरकार बनाई. उम्मीद के मुताबिक ही ये बेमेल गठबंधन 2018 में दम तोड़ गया. उसके बाद से ही राज्य में राज्यपाल शासन लागू है. मनोज सिन्हा को राज्य की जिम्मेदारी दी गई है. सरकार ने संकेत दिए थे कि राज्य में जल्द ही चुनाव कराए जाएंगे, लेकिन चुनाव कराने के मुफीद अभी माहौल लगता नहीं है.

 

Advertisement
Advertisement