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1974 में इंदिरा ने आंखें बनवाने का प्रस्ताव दिया था, मैंने कहा- दुनिया देखने लायक नहीं रह गई... रामभद्राचार्य ने बताई कहानी

1974 में इंदिरा गांधी ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य को आंखें बनवाने (आंखों का ऑपरेशन कराने) का प्रस्ताव दिया था, लेकिन जगद्गुरु ने तत्कालीन प्रधानमंत्री के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. उन्होंने कहा था कि ये संसार अब देखने योग्य नहीं रह गया है.

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rambhadracharya
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अयोध्या राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की तारीख बेहद नजदीक आ गई है. ऐसे में आज तक ने श्रीतुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज से राम मंदिर के मुद्दे पर एक्सक्लूसिव बातचीत की. इस दौरान उन्होंने बताया कि कैसे 1974 में इंदिरा गांधी ने उन्हें आंखें बनवाने (आंखों का ऑपरेशन कराने) का प्रस्ताव दिया था, लेकिन जगद्गुरु ने तत्कालीन प्रधानमंत्री के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया.

जब जगद्गुरु रामभद्राचार्य से पूछा गया कि वे राम मंदिर के उद्घाटन कि किस तरह प्रतीक्षा कर रहे हैं तो उन्होंने कहा,'जैसी प्रतिक्षा एक माली को अपने आरोपित वृक्ष में पुष्प लगते और फल लगते देखकर होती है, उसी प्रकार की प्रतिक्षा मैं भी कर रहा हूं.'

गांव-गांव प्रचारित किया आंदोलन

उन्होंने आगे कहा,'75 आंदोलन विफल हुए, तब कहीं जाकर 76वां आंदोलन सफल हुआ. 6 अक्टूबर 1984 को, उस समय अशोक सिंघल, अवैद्यनाथ, रामचंद्र दास परमहंस, गिरिराज, नृत्यगोपाल दास के साथ मैं भी था. हम लोगों ने मिलकर यह आंदोलन प्रारंभ किया. गांव-गांव तक हमने इसे प्रचारित और प्रसारित किया. उस समय कांग्रेस शासन था, पुलिस की कठोर यातनाएं सहीं. जेल गए. पुलिस के डंडे सहे. पुलिस का एक डंडा ऐसा लगा कि मेरी दाहिनी कलाई टेड़ी हो गई. लेकिन भगवान की कृपा से राघवेन्द्र (भगवान राम) सरकार ने अपने अपमान का बदला ले लिया.'

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कभी नहीं भूल पाएंगे नरसंहार

उन्होंने आगे कहा,'मुलायम सिंह ने कहा था कि एक परिंदा भी यहां पर नहीं मार सकेगा. उस समय मुलायम सिंह और विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जो नरसंहार करवाया, वो हम भूल नहीं पाएंगे. कोठारी बंधुओं का तो सर्वनाश हो गया. हमारे सामने उनके दो बच्चे एक 18 साल का और एक 20 साल का, दोनों को कमरे से निकालकर मैदान में लाकर गोली मारी गई. हम लोगों ने वह सब सहा और 6 दिसंबर 1992 को हमने 5 घंटे के अंदर उस ढांचे को ढहाकर भारत माता को निष्कलंक किया.'

कोर्ट के सवाल का दिया ये जवाब

जगद्गुरु ने आगे कहा,'मुकदमे चले, जब शास्त्र का पक्ष आया. सभी शंकाराचार्यों ने इनकार कर दिया. अंत में मेरे पास आए. ऐसा होता आया है कि जब वादी नाबालिग होता है तो उसके पक्ष में माता-पिता या गुरु पक्ष लेते हैं. इस मुकदमे में राम लला नाबालिग थे. मैंने उनके गुरुगोत्र का होने के कारण उनका पक्ष लिया. कोर्ट ने पूछा आप तो दृष्टिबाधित हैं, कैसे साक्ष्य प्रस्तुत करेंगे. मैंने शपथपत्र प्रस्तुत किया और कोर्ट से पूछा आप किस विषय में साक्ष्य लेना चाहते हैं. कोर्ट ने कहा शास्त्र के विषय में. मैंने कहा कि उसके लिए आंखों की जरूरत नहीं होती. शास्त्र ही सबका नेत्र होता है.'

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इस तरह ठुकरा दिया प्रस्ताव

स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि मुझे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1974 में प्रस्ताव दिया कि वो मेरी आंखें बनवा सकती हैं. मैंने कहा कि ये संसार देखने योग्य नहीं रह गया है. अगर देखने योग्य कोई है तो वह नील-कमल-श्याम-भगवान राम ही देखने लायक हैं. 

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