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G-20 अतिथियों की थाली में कोदों-सांवा और कुटकी, जानिए क्यों कहलाते हैं ऋषि अन्न

जी-20 में आए देश-विदेश के अतिथि जो भोजन यहां करने वाले हैं, वह भारत की बिल्कुल प्राचीन आदिवासी खाद्य परंपरा और खाद्य संस्कृति का हिस्सा है. इसे वैश्विक पटल पर पहचान दिलाए जाने की कोशिशें तेज हो रही हैं और साल 2023 को 'अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष' घोषित किया गया है.

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G20 के अतिथियों को परोसा जा रहा है मोटा अनाज
G20 के अतिथियों को परोसा जा रहा है मोटा अनाज

हिंदी साहित्य में कविता की कृष्णमार्गी धारा में सूरदास के ही बराबर प्रसिद्ध कवि हुए हैं, नरोत्तम दास. उन्होंने अपनी रचना सुदामा चरित में एक जगह लिखा है- 

'कै वह टूटि सि छानि हती कहांए कंचन के सब धाम सुहावत,
कै पग में पनही न हती कहँए लै गजराजहु ठाढ़े महावत.
भूमि कठोर पै रात कटै कहाँए कोमल सेज पै नींद न आवत,
कैं जुरतो नहिं कोदो सवां प्रभु के परताप तै दाख न भावत.'

कवि नरोत्तम दास ने इस प्रसंग में तब का वर्णन किया है, जब सुदामा, द्वारिका से लौट आते हैं और इस बीच श्रीकृष्ण की कृपा से उनकी जिंदगी बदल जाती है. इसी प्रसंग में सुदामा कहते हैं कि एक समय था कि जब खाने के लिए 'कोदो-सवां' जैसा भी अनाज नहीं जुटता था और अब अनाज-पकवान से भंडार भरे हैं.

मोटे अनाज को किया जा रहा प्रचारित
कवि ने अपनी ईशभक्ति और कल्पना में जो भी लिखा वह अलग बात है, लेकिन इन सबके बीच जिस शब्द को बोल्ड और अंडरलाइन करने की जरूरत है, वह है कोदों और सवां और कुटकी. जाहिर तौर पर यह खाद्यन्न हैं. इसकी चर्चा शनिवार को ऐसे समय में और भी तेज हो गई, जब देश की राजधानी में आयोजित जी-20 सम्मेलन के अतिथियों को भोजन और नाश्ते में ये परोसे गए. इन्हें मिलेट्स कहा जा रहा है और पूरी दुनिया में यह चर्चा में हैं. इसे सम्मान दिलाने के लिए श्रीअन्न नाम दिया गया है.

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अतिथियों की थाली में मोटा अनाज
जी-20 में आए देश-विदेश के अतिथि जो भोजन यहां करने वाले हैं, वह भारत की बिल्कुल प्राचीन आदिवासी खाद्य परंपरा और खाद्य संस्कृति का हिस्सा है. इसे वैश्विक पटल पर पहचान दिलाए जाने की कोशिशें तेज हो रही हैं और साल 2023 को 'अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष' घोषित किया गया है. अतिथियों के भोजन के मेन्यू में जो सामने आया है कि उनकी थाली में रागी, बाजरा और ज्वार जैसे मोटे अनाजों को प्रमोट करने के लिए इन दो दिनों की समिट में विदेशी मेहमानों को मिलेट्स कुकीज, केक, खीर, इडली, सूप, नरगिसी कोफ्ता जैसी डिशेज परोसी जा रही हैं.

2023 है इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट
मिलेट के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट घोषित किया गया है. भारत की तरफ से की गई इस पहल के कारण दुनिया का ध्‍यान इस अनाज की ओर गया है. मिलेट्स में मोटे और छोटे दानों वाले अनाज शामिल होते हैं. प्रमुख मोटे अनाजों में ज्वार, बाजरा और रागी का नाम आता है, तो वहीं छोटे अनाजों में कुटकी, कांगनी, कोदो और सांवा शामिल हैं. ये सभी कैल्शियम, आयरन, फाइबर समेत ढेरों पोषक तत्वों के बढ़िया सोर्स हैं.

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कोदों-सावां को दी गई है ऋषि अन्न की संज्ञा 
कोंदो, को प्राचीन काल से ऋषि अन्न की संज्ञा दी गई है. व्रत-उपवास और कठिन साधना करने वाले ऋषि-मुनि कोदों के भात को अपनी आहार परंपरा में शामिल करते आए हैं. असल में कोदों ऐसा अनाज है, जो कम वर्षा में भी उपज जाता है. हालांकि यह कभी भी कृषि की मुख्य धारा में शामिल नहीं रहा है और इसकी खेती को लेकर भी पहले खास प्रयास नहीं किए गए हैं. ऋषि-मुनियों द्वारा अपने भोजन में शामिल करने की वजह भी इसकी पौराणिक मान्यता रही है. असल में कोदों को उपजाने के लिए खेत नहीं जोते जाते, इससे बैल को श्रम के लिए कष्ट नहीं देना होता था, तो वहीं सिंचाई पर भी निर्भर नहीं होना पड़ता था. खेत न जोते जाने से भूमि के छोटे से छोटे कीड़े-मकौड़ों के लिए जीवन हानि नहीं होती थी. 

कई मिथकों-दंतकथाओं में शामिल है कोदों
कोदों को लेकर कई मिथकों में यह भी कहा जाता है कि इसे वनवास के समय श्रीराम ने भी खाया था. एक जनजातीय कहानी में इसे प्रभु की इच्छा से उत्पन्न अनाज बताया गया है. कहते हैं कि एक भगत चरवाहे को झूठे आरोप में किसी गांव से निकाल दिया गया. इससे भगवान नाराज हो गए. उधर, भगत का हुक्का-पानी बंद होने से उसे कुछ भी खाने को नहीं मिला. वह सिर्फ भगवान भरोसे था. उधर गांव में भी अकाल पड़ गया. भगत को बचाने के लिए भगवान ने खेत के बिखरे अनाजों को मिलाकर बोया और उससे जो बीज मिले उसे पकाकर भगत को खिलाया. ये अनाज कोंदो ही था. कहते भी हैं कोंदो में सात तरह के अनाज की शक्ति होती है.

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आदिवासी परंपरा में आज भी शामिल है कोदों
आधुनिक शैली में भले ही कोंदो एक भुला दिया गया अनाज है, लेकिन आदिवासी परंपरा ने इसे अभी भी अपनी आहार शैली में खास तौर पर शामिल कर रखा है. शरीर को मजबूती और स्फूर्ति देने वाला यह अनाज अब शहरी लोगों के बीच भी आकर्षण बढ़ा रहा है, क्योंकि खान-पान की शैली में इसका शामिल होना ही कई बीमारियों का खुद में निदान है. कोदों के लाभकारी प्रभाव को ऐसे जान सकते हैं कि, इसके दाने में 8.3 प्रतिशत प्रोटीन, 1.4 प्रतिशत वसा और 65.9 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट शामिल है. इसकी ऊपरी परत में फाइबर काफी अधिक मात्रा में है, लिहाजा यह मोटापे से भी बचाता है. 

बहुत लाभकारी है कोदों
कोदों मधुमेह नियंत्रण, गुर्दो और मूत्राशय के रोग के लिए लाभकारी है. यह रासायनिक खाद और कीटनाशक के बुरे असर से भी दूर है. इसमें चावल के मुकाबले कैल्शियम भी 12 गुना अधिक होता है इसके साथ ही शरीर में आयरन की कमी को भी यह पूरा करता है. 

 

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