scorecardresearch
 

कलाम का कमाल है ब्रह्मोस मिसाइल! देश को दिया पूर्व राष्ट्रपति का वो तोहफा जो ऑपरेशन सिंदूर में बना सेना की ताकत

भारत के पूर्व राष्ट्रपति और 'मिसाइल मैन' के रूप में प्रसिद्ध डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने ब्रह्मोस मिसाइल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के प्रमुख रहते हुए उन्होंने भारत और रूस के बीच सरकारी स्तर की साझेदारी का नेतृत्व किया. यह ऐतिहासिक समझौता 1998 में मॉस्को में डॉ. कलाम और रूस के उप रक्षा मंत्री एनवी मिखाइलोव के बीच हुआ, जिसके बाद ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना हुई.

Advertisement
X
देश को ब्रह्मोस मिसाइल का तोहफा देकर गए थे डॉ. कलाम
देश को ब्रह्मोस मिसाइल का तोहफा देकर गए थे डॉ. कलाम

ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने पाकिस्तान के भीतर कई अहम ठिकानों पर देश में विकसित हथियारों का इस्तेमाल किया. इनमें सबसे ज्यादा ध्यान ब्रह्मोस मिसाइल पर गया है, जो अपनी मल्टी-प्लेटफॉर्म क्षमता और सुपरसोनिक सटीकता के लिए जानी जाती है.

जल, थल और वायु से हमला करने के लिए डिजाइन की गई ब्रह्मोस मिसाइलों ने रफीकी, मुरीदके, नूर खान, रहीम यार खान, सुक्कुर और चूनियां जैसे प्रमुख सैन्य ठिकानों को सफलतापूर्वक निशाना बनाया.

डॉ. कलाम का योगदान

भारत के पूर्व राष्ट्रपति और 'मिसाइल मैन' के रूप में प्रसिद्ध डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने ब्रह्मोस मिसाइल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के प्रमुख रहते हुए उन्होंने भारत और रूस के बीच सरकारी स्तर की साझेदारी का नेतृत्व किया.

यह ऐतिहासिक समझौता 1998 में मॉस्को में डॉ. कलाम और रूस के उप रक्षा मंत्री एनवी मिखाइलोव के बीच हुआ, जिसके बाद ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना हुई. इसमें भारत की हिस्सेदारी 50.5% और रूस की 49.5% रखी गई.

'पार्टनरशिप मैनेजमेंट' से सफल हुआ प्रोजेक्ट

Advertisement

इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य साफ था, एक हाई स्पीड, सटीकता से गाइडेड मिसाइल का निर्माण, जिसे थल, जल और वायु- तीनों माध्यमों से दागा जा सके. डॉ. कलाम ने अपने 'पार्टनरशिप मैनेजमेंट' के सिद्धांत को अपनाकर इस महत्वाकांक्षी योजना को साकार किया.

डॉ. कलाम सिर्फ एक वैज्ञानिक नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी थे, जिन्होंने आत्मनिर्भरता की सोच और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को जोड़कर ब्रह्मोस जैसी परियोजना को जन्म दिया. आज ब्रह्मोस भारत की रक्षा क्षमता का स्थायी प्रतीक है और डॉ. कलाम की दूरदृष्टि को साकार करता है.

मिसाइल आत्मनिर्भरता की शुरुआत

भारत में मिसाइल आत्मनिर्भरता की शुरुआत 1983 में इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) से हुई. लेकिन 1990 के दशक में खाड़ी युद्ध ने एक अत्याधुनिक क्रूज मिसाइल की तत्काल जरूरत को उजागर किया. इसी के बाद रूस के साथ गहरे सहयोग की दिशा में कदम बढ़े और ब्रह्मोस का जन्म हुआ.

इस मिसाइल का नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदियों से लिया गया है. 12 जून 2001 को इसका पहला सफल परीक्षण हुआ. यह मिसाइल DRDO और रूस की NPOM कंपनी के संयुक्त प्रयास का नतीजा है और आज दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइलों में से एक मानी जाती है.

मिसाइल की ताकत

ब्रह्मोस एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जो ध्वनि की गति से तीन गुना तेज (मैक 3) उड़ती है. इसे भारत और रूस ने मिलकर बनाया है. यह जमीन, समुद्र और हवा से लॉन्च की जा सकती है. इसकी रेंज 290-450 किलोमीटर है. इसमें 200-300 किलोग्राम विस्फोटक होता है, जो इसे बड़े सैन्य ठिकानों को नष्ट करने में सक्षम बनाता है.

Advertisement

ब्रह्मोस का तकनीकी ब्यौरा

ब्रह्मोस एक सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल है, जिसकी गति लगभग 2,800-3,000 किलोमीटर प्रति घंटा है. इसे भारत और रूस के सहयोग से विकसित किया गया है. इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी से लिया गया है. 

-लॉन्च प्लेटफॉर्म: जमीन, समुद्र (जहाज और पनडुब्बी) और हवा (विमान, जैसे सुखोई-30MKI) से लॉन्च की जा सकती है.
-सटीकता: उन्नत नेविगेशन और गाइडेंस सिस्टम के साथ, यह सटीक तरीके से टारगेट पर गिरती है.  
-ऑल-वेदर कैपेबिलिटी: दिन-रात और किसी भी मौसम में काम कर सकती है.
-फायर एंड फॉरगेट: एक बार लॉन्च होने के बाद इसे ऑपरेटर की निरंतर निगरानी की आवश्यकता नहीं होती.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement