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स्वराज भवन से इंदिरा भवन तक... कांग्रेस का पता बदलने की पूरी कहानी

कांग्रेस पार्टी की ओर से दफ्तर के कामकाज के लिए 1978 में किया गया एक अस्थायी इंतजाम 47 सालों तक चलता रहा. अब 2025 में कांग्रेस को स्थायी पता मिला है. कांग्रेस ने कोटला रोड पर स्थित इमारत 9-A को अपना आधिकारिक आवास बनाया है. 1885 में पार्टी की स्थापना के बाद कांग्रेस का पता लगातार बदला है, लेकिन 24 अकबर रोड स्थित कार्यालय से पार्टी ने अपने उभार को देखा है.

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बदल गया है कांग्रेस दफ्तर का पता (फोटो- पीटीआई)
बदल गया है कांग्रेस दफ्तर का पता (फोटो- पीटीआई)

वो पता जो दशकों तक भारत की सत्ता का केंद्र था अब बदल गया है. कांग्रेस के उदासियों और जश्न का खामोश गवाह 24 अकबर रोड अब कांग्रेस का मुख्यालय नहीं रह गया है. कांग्रेस अपने हेडक्वार्टर को नए स्थान पर ले गई है. ये नया पता है कोटला रोड पर स्थित इमारत 9-A. इसी इमारत का नाम है इंदिरा भवन. इसी के साथ ही आधी सदी तक दिल्ली की धुरी रही इस स्थान का इतिहास अब बदल गया है. 

1885 में कांग्रेस की स्थापना के बाद पार्टी का मुख्यालय कई स्थानों में बदलता रहा. कांग्रेस की स्थापना यूं तो 28 दिसंबर 1885 को बंबई के गोकुलदास, तेजपाल संस्कृत कॉलेज के सभागार में हुई. आजादी आंदोलन के शुरुआती दिनों में कांग्रस का कोई स्थायी दफ्तर नहीं था. तब कांग्रेस पार्टी का कामकाज बड़े नेताओं के आवास से ही होता था. 

कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन 27 दिसंबर 1886 को कलकत्ता में हुआ. इस अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहे थे दादाभाई नरौजी. इसी अधिवेशन में कांग्रेस ने राजस्तरीय कांग्रेस कमेटियां गठन की. इसी के साथ ही कद्दावर नेताओं के घर में कांग्रेस नेतृत्व फलने-फूलने लगा. पार्टी नेता यहीं से गतिविधियां संचालित करने लगे. 

बंबई में स्थापना, स्वराज भवन, साबरमती आश्रम और सदाकत आश्रम में फली फूली कांग्रेस 

1899 में कांग्रेस का अधिवेशन लखनऊ में हुआ, 1901 में कलकत्ता और 1905 में बनारस में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ. इसके साथ ही इन शहरों के कांग्रेस नेताओं के घर पर कांग्रेस का काम-काज होता रहा. 

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1919 में मोतीलाल नेहरू पहली बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने. वे इलाहाबाद के नामी वकील थे. इलाहाबाद में उनके पास आलीशान घर था. इस घर का नाम था स्वराज भवन. 1920 के दशक में मोतीलाल नेहरू ने इस घर को कांग्रेस को दान कर दिया. इसके साथ ही कांग्रेस को अपनी गतिविधियां संचालित करने के लिए एक स्थायी और पक्का भवन मिल गया. 

इलाहाबाद स्थित ये घर स्वतंत्रता आंदोलन का लॉन्च पैड बना और यहां से कई आंदोलन शुरू हुए. 1970 में देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस पूरे परिसर को देश को दान कर दिया. 

स्वराज भवन लंबे समय तक कांग्रेस की गतिविधियों का केंद्र बना रहा. मोतीलाल नेहरू और जवाहर लाल नेहरू ने इस इमारत से कांग्रेस की कमान संभाली. सविनय अवज्ञा आंदोलन और गांधीजी के दांडी मार्च के दौरान ये स्थान कांग्रेस की गतिविधियों का केंद्र रहा. महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल, डॉ राजेंद्र प्रसाद और अन्य नेता स्वतंत्रता गतिविधियों पर चर्चा और समन्वय के लिए आनंद भवन आते रहे थे.

1940 के दशक में जब देश की आजादी के संकेत मिलने लगे तो राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र दिल्ली हो गया. आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू दिल्ली के तीनमूर्ति भवन में शिफ्ट हो गये. और कांग्रेस के काम यहीं से संचालित होने लगे. 

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हालांकि जब आजादी के आंदोलन की डोर महात्मा गांधी के हाथों में आई तो कांग्रेस की गतिविधियां कुछ समय के लिए साबरमती आश्रम से भी संचालित होती रहीं.

पटना स्थित सदाकत आश्रम भी कुछ समय तक कांग्रेस की गतिविधियों का केंद्र रहा. 20 एकड़ में फैले इस भवन की स्थापना मौलाना मजरूल हक ने 1921 में की थी. 

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यहां ब्रजकिशोर प्रसाद, मौलाना मजहरुल हक, डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा और राजेंद्र प्रसाद जैसे प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानियों के बीच महत्वपूर्ण बैठकें हुईं. इस तरह कांग्रेस का कारवां आगे बढ़ता रहा. 

1947 में स्वतंत्रता के बाद 1952 से 1958 तक कांग्रेस का संचालन दिल्ली से होता रहा और तीन मूर्ति भवन इसका केंद्र रहा. 

7 जंतर-मंतर रोड बना दफ्तर

जब सन 1959 में इंदिरा गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं तो 7 जंतर-मंतर रोड स्थित बंगले को कांग्रेस का मुख्यालय बनाया गया.

10 साल तक ये बंगला कांग्रेस का मुख्यालय रहा. 1969 में कांग्रेस का विभाजन हुआ तो इस बंगले पर मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाले गुट ने कब्जा कर लिया. इस समय इंदिरा ने पार्टी के विश्वस्त सहयोगी एमवी कृष्णप्पा के विंडसर पैलेस स्थित घर पर कांग्रेस का अस्थायी दफ्तर बनाया. 1971 में इंदिरा कांग्रेस का ऑफिस  5 राजेंद्र प्रसाद रोड पर चला गया.

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1975 की इमरजेंसी के बाद 1977 में फिर से चुनाव हुए. इंदिरा बुरी तरह हारीं. इसी दौर में 1978 में जनवरी की ठंड में इंदिरा गांधी ने 20 कार्यकर्ताओं के साथ 24  अकबर रोड में प्रवेश किया. इस समय इंदिरा कई परेशानियों से गुजर रही थीं. वो चुनाव तो हारी ही थीं 1978 में कांग्रेस का विभाजन भी हो गया. 

इस समय इंदिरा गांधी की अगुवाई वाले कांग्रेस के पास अपना दफ्तर नहीं था. इंदिरा कांग्रेस का कामकाज से चला रही थीं. वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई अपनी किताब '24, अकबर रोड' में लिखते हैं कि 12 विलिंगटन क्रीसेंट लोगों से खचाखच भरा रहता था.

ऐसे ही मौके पर इंदिरा की मदद करने आए आंध्र प्रदेश से कांग्रेस सांसद जी वेंकटस्वामी. जी वेंकटस्वामी को सांसद होने के नाते एक टाइप-7 बंगला सरकार की ओर से मिला था. इस बंगले का पता था- 24 अकबर रोड. 

सांसद जी वेंकटस्वामी ने ये बंगला कांग्रेस को दे दिया. इंदिरा गांधी ने इस मकान को कांग्रेस का दफ्तर बनाया. 

24 अकबर वाली इमारत ठीक-ठाक थी, इस बंगले के सामने वायुसेना चीफ का घर था और इसमें कुल मिलाकर पांच कमरे, एक ड्राइंग रूम और डायनिंग हॉल और एक गेस्ट रूम था.

राशिद किदवई आगे लिखते हैं, "इस घर की खास बात ये थी कि इसमें एक गेट था जो इसे 10, जनपथ से जोड़ता था. उस जमाने में वो युवा कांग्रेस का मुख्यालय हुआ करता था. बाद में ये घर पहले विपक्ष के नेता के तौर पर राजीव गांधी और फिर सोनिया गांधी को आवंटित हो गया था."

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जनवरी की सर्दी और 24 अकबर रोड में इंदिरा का प्रवेश

इन्हीं परिस्थितियों में इंदिरा गांधी ने 1978 में जनवरी की सर्दियों में कांग्रेस के 20 कार्यकर्ताओं के साथ इस भवन में प्रवेश किया. हालांकि कांग्रेस दफ्तर रूप में ये एक अस्थायी इंतजाम था लेकिन, 1978 में शुरू हुआ ये अस्थायी इंतजाम जनवरी 2025 तक चला. बीबीसी के अनुसार इंदिरा गांधी के निकट सहयोगियों बूटा सिंह और एआर अंतुले ने इस बंगले में प्रवेश किया तो यहां मामूली फर्नीचर तक भी नहीं था. बंगले के सबसे बड़े कमरे को कांग्रेस अध्यक्ष के दफ़्तर में बदल दिया गया.

इधर 1980 में इंदिरा दोबारा सत्ता में लौटीं, लेकिन इस बार उनका मन 7 जंतर-मंतर रोड स्थित बंगले से उचाट हो गया था.

बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के मुताबिक, "मैंने एक बार नहीं बल्कि दो बार पार्टी को शून्य से खड़ा किया है. मेरा मानना है कि कांग्रेस का नया मुख्यालय आने वाले दशकों में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में ऊर्जा और उत्साह का संचार करता रहेगा." इंदिरा ने 24 अकबर रोड को कांग्रेस का ऑफिस बनाये रखा. 

1985 में राजीव गांधी चाहते थे कि कांग्रेस का दफ्तर एक आधुनिक भवन हो. उन्होंने कई जगह से चंदा लिया और कांग्रेस के सांसदों से भी इसके लिए एक महीने का वेतन देने को कहा. ताकि राजेंद्र प्रसाद रोड में पर एक नई इमारत बनाई जा सके.

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लेकिन सन 1991 में राजीव गांधी की हत्या ने सबकुछ बदल दिया, और उस भवन में राजीव गांधी फाउंडेशन का दफ्तर खोल दिया गया.

राजीव गांधी के गुजरने के 34 साल बाद कांग्रेस ने अब अपना स्थायी पता ढूंढ़ लिया है.

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