लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की ख्वाहिश है कि पार्टी सुप्रीमो चिराग पासवान बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव लड़े और वह भी किसी आरक्षित सीट से नहीं बल्कि सामान्य सीट से. अब ऐसे में अंदेशा है कि चिराग पासवान बिहार के मुख्यमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी सरकार से इस्तीफा देने को तैयार हैं.
चिराग पासवान के बहनोई और सांसद अरुण भारती ने रविवार को सिलसिलेवार सोशल मीडिया पोस्ट कर हलचल मचा दी कि पार्टी कार्यकर्ता चाहते हैं कि चिराग आगामी बिहार चुनाव में आरक्षित सीट से नहीं बल्कि सामान्य सीट से चुनाव लड़े ताकि सशक्त संदेश दिया जा सके कि वह सिर्फ दलित समुदाय के नेता नहीं है बल्कि पूरे बिहार का नेतृत्व करने को तैयार है.
रोचक है कि चिराग पासवान के बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने पर चर्चा उस समय शुरू हुई, जब चिराग ने ये कहा था कि वह स्टेट पॉलिटिक्स पर फोकस करने के लिए केंद्र में काम करने की बजाए बिहार लौटना चाहते हैं.
बिहार CM की रेस में चिराग?
चिराग पासवान तीन बार के सांसद हैं और मौजूदा समय में नरेंद्र मोदी सरकार में खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हैं. वह 2014 और 2019 में जमुई (अनुसूचित जाति) से चुने गए थे जबकि 2024 में हाजीपुर (अनुसूचित जाति) से सांसद चुने गए.
चिराग के 2024 में केंद्रीय कैबिनेट में शामिल किया गया था. चिराग की पार्टी की ओर से यह नैरेटिव स्थापित करने की कोशिश की जा रही है कि चिराग को विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए और बिहार की अगुवाई करनी चाहिए.
ये भी शायद उल्लेखित है कि एनडीए ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि आगामी चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. उनकी लगातार घटती लोकप्रियता के बावजूद चुनाव उन्हें की अगुवाई में लड़ा जाएगा. लेकिन स्टेट पॉलिटिक्स में चिराग की संभावित वापसी अलग ही कहानी बयां कर रही है.
ऐसा लग रहा है कि चिराग दरअसल नीतीश कुमार के बिगड़ते स्वास्थ्य से वाकिफ हैं और वह ऐसे में बिहार की मौजूदा राजनीतिक स्थिति का लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं.
बीजेपी पर दबाव की राजनीति
बिहार की राजनीति में चिराग की वापसी के संदर्भ में एक और थ्योरी जिस पर राजनीतिक गलियारों में चर्चा की जा रही है, वह ये है कि चिराग पासवान बिहार चुनाव लड़ने की अटकलों से एनडीए में सीट शेयरिंग एग्रीमेंट को लेकर बीजेपी पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
चिराग ने 2024 लोकसभा चुनाव में उस समय अपनी राजनीतिक शक्ति का प्रदर्शन किया जब उनकी पार्टी ने राज्य की सभी पांचों सीट पर जीत दर्ज की. वह पिछले कुछ साल से 'बिहार पहले, बिहारी पहले' के एजेंडे के साथ राज्य में जनसभाएं कर रहे हैं.
वह ये दिखाना चाहते हैं कि चिराग राज्य में इस समय सबसे बड़े दलित चेहरे हैं और दलित समुदाय में उनका 6 फीसदी वोट बेस है, विशेष रूप से पासवान समुदाय में. शायद सीट शेयरिंग एग्रीमेंट के पीछे चिराग का यही मुख्य कारण है, जहां वह बड़ी भागीदारी चाहते हैं.
लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) का बीजेपी पर बढ़ता दबाव बेशक एनडीए को सही ना लगे क्योंकि एनडीए नीतीश कुमार को पहले ही मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर चुकी है. ऐसे में चिराग की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की वजह से इसे चुनौती मिल सकती है.
याद रखें कि बिहार में एनडीए के सीट शेयरिंग फॉर्मूले को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है. इसे लेकर लगाातर गठबंधन साझेदारों के बीच चर्चा चल रही है.
क्या नीतीश का विकल्प हैं चिराग?
बिहार की राजनीति में एक और नैरेटिव जिस पर चर्चा की जा रही है, वह ये है कि अगर चुनाव में एनडीए जीतती है तो क्या बीजेपी चिराग को नीतीश कुमार के विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रही है.
नीतीश कुमार के खराब स्वास्थ्य, घटते प्रभाव और लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए क्या बीजेपी नीतीश कुमार का विकल्प तलाश रही है? 2020 बिहार चुनाव में सीट शेयरिंग एग्रीमेंट में एलजेपी (आर) को उम्मीद के अनुरूप सीटें नहीं मिलने की वजह से पार्टी ने एनडीए का दामन छोड़ दिया था और खुद के दम पर चुनाव लड़ते हुए 130 से ज्यादा उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा था.
इस दौरान ये कहा गया कि ये चिराग के एनडीए से निकलने और जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर नीतीश की पार्टी को नुकसान पहुंचाने का मास्टरस्ट्रोक बीजेपी का ही था, जो सफल रहा.
अब जब चिराग ने बिहार की राजनीति में लौटने की अपनी मंशा साफ कर दी है तो उनके इस कदम को फिर से उसी प्रिज्म से देखा जा रहा है कि क्या उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार के विकल्प के तौर पर स्ट्र्रैटेजी के तहत स्टेट पॉलिटिक्स में भेजा जा रहा है? अगर एनडीए बिहार चुनाव जीत लेती है और नीतीश कुमार दोबारा मुख्यमंत्री बन जाते हैं लेकिन नीतीश के खराब स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अगर वह अपने कर्तव्य का सही से निर्वहन नहीं कर पाते तो चिराग उनका विकल्प बन सकते हैं.