बांग्लादेश एक तरफ हिंसा करवा रहा है, दूसरी तरफ पैंतरा खेल रहा है. ताजा घटनाक्रम इसी दोहरी रणनीति की ओर इशारा कर रहा है. गुरुवार को बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने भारत में अपने दूतावासों के बाहर हो रहे प्रदर्शनों का हवाला देते हुए भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा को तलब किया. प्रणय वर्मा सुबह करीब 9:55 बजे (बांग्लादेश समय) ढाका स्थित विदेश मंत्रालय पहुंचे.
ये पहला मौका नहीं है जब भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा को ढाका तलब किया गया हो. मौजूदा यूनुस सरकार के कार्यकाल में यह दूसरी बार है जब बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने उन्हें समन भेजा है. इससे पहले भी ढाका ने भारत में बांग्लादेशी मिशनों से जुड़े मुद्दों को लेकर आपत्ति जताई थी. लगातार दूसरी बार समन भेजे जाने को कूटनीतिक दबाव की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है, खासकर ऐसे समय में जब बांग्लादेश के भीतर हालात और हिंसा को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठ रहे हैं.
आज सुबह फिर ढाका ने नई दिल्ली और कोलकाता में बांग्लादेशी मिशनों के बाहर हुए प्रदर्शनों पर चिंता जताते हुए कहा कि उसके राजनयिक खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. बांग्लादेश ने भारत सरकार से अपने सभी कूटनीतिक मिशनों के लिए 'फुलप्रूफ सिक्योरिटी' की मांग की है.
हालांकि सवाल ये उठता है कि जब बांग्लादेश के भीतर भारत-विरोधी भावनाओं को हवा दी जा रही है, मंदिरों और अल्पसंख्यकों पर हमलों की खबरें सामने आ रही हैं, तब ढाका खुद को केवल पीड़ित के रूप में क्यों पेश कर रहा है. भारत में हुए प्रदर्शन लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर शांतिपूर्ण विरोध के रूप में सामने आए हैं, जबकि बांग्लादेश के अंदर हालात कहीं ज्यादा गंभीर बताए जा रहे हैं.
राजनयिक जानकारों का कहना है कि ये कदम अंतरराष्ट्रीय मंच पर नैरेटिव सेट करने की कोशिश भी हो सकता है जहां एक ओर घरेलू हिंसा और अस्थिरता से ध्यान हटाया जाए, वहीं दूसरी ओर भारत पर नैतिक दबाव बनाया जाए. भारत की ओर से अब तक आधिकारिक प्रतिक्रिया संयमित रही है, लेकिन ये स्पष्ट है कि भारत ने हमेशा वियना कन्वेंशन के तहत विदेशी मिशनों की सुरक्षा सुनिश्चित की है. ऐसे में सवाल ये नहीं है कि सुरक्षा दी जाएगी या नहीं, बल्कि ये है कि क्या बांग्लादेश अपने भीतर की जिम्मेदारियों से भी उतनी ही गंभीरता से निपटेगा.