पहलगाम आतंकी हमले की जवाबी कार्रवाई करते हुए भारतीय सेना ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमला किया. इससे बौखलाया पाकिस्तान सारे कायदे तोड़ने लगा. अब दोनों देशों में लगभग युद्ध की स्थिति बनी हुई है. सैन्य से लेकर आर्थिक मामले में भी ये देश हमारे आसपास नहीं. लेकिन फिर भी वो आंखें दिखा रहा है. इस बीच यूक्रेन से भी उसकी तुलना होने लगी जो तीन साल बाद भी रूस से जंग में मुब्तिला है.
जब रूस ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमला किया, तब दुनिया भर के रक्षा विशेषज्ञों का मानना था कि यूक्रेन कुछ दिन भी नहीं टिक पाएगा. लेकिन वो न केवल टिका, बल्कि कई मोर्चों पर रूस को कमजोर करने की भी कोशिश की. जैसे, मॉस्को पर कई सारी पाबंदियां लग गईं, वो भी ग्लोबल स्तर पर. हालांकि यूक्रेन के इतना लंबा चलने के पीछे अलग ताकतें और वजहें रहीं.
इस छोटे देश को लगभग पूरे पश्चिम का सपोर्ट मिला. अमेरिका में तब जो बाइडेन की सरकार थी, जिसने यूक्रेन को आर्थिक और सैन्य सहायता लगातार दी. यही हाल जर्मनी समेत पूरे यूरोपियन यूनियन का था. नाटो ने उसे मॉडर्न हथियार और सैटेलाइट इंटेलिजेंस दिया. सारे ही वेस्ट ने उसे डिप्लोमेटिक राहतें दीं ताकि वो आराम से जंग पर फोकस कर सके.
नैरेटिव वॉर भी जमकर चला. यूक्रेन ने लगातार ऐसी खबरें, तस्वीरें और वीडियो पेश कीं, जिससे रूस कटघरे में आ गया. यहां तक कि उसपर युद्ध के नियम तोड़ने और ह्यूमन राइट्स उल्लंघन के आरोप लग गए. सारी दुनिया की संवेदनाएं यूक्रेन के हिस्से आ गईं, जो छोटा देश होकर भी रूस जैसे सेकंड सुपर पावर से जूझ रहा था. मददें और बढ़ीं. जर्मन रिसर्च संस्थान कील इंस्टीट्यूट फॉर वर्ल्ड इकनॉमी (IfW) इसपर नजर रख रही है कि कौन सा देश यूक्रेन को कितनी सहायता दे रहा है. इसके मुताबिक करीब 30 देशों ने उसे हथियारों की मदद दी. इसमें सबसे बड़ा योगदान अमेरिका का रहा.
यूक्रेन के इस उदाहरण को देखकर यह सवाल उठ सकता है कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच फुल स्केल युद्ध शुरू हो जाए तो क्या पाकिस्तान के पैर भी जमे रहेंगे. पहली नजर में ये तुलना भले ही सही लगे लेकिन हकीकत में यूक्रेन और पाकिस्तान के हालात काफी अलग हैं.
पाकिस्तान लंबे समय से आर्थिक संकट से जूझ रहा है. आतंकवाद को स्पॉन्सर करने के आरोपों के चलते उसके पास इंटरनेशनल संस्थाओं की आर्थिक मदद कम ही मिल रही है. उस मुल्क में, जहां महंगाई एक्सट्रीम पर है, वो लंबे समय तक चलने वाली लड़ाई नहीं झेल सकता. सैनिकों के लिए रसद, हथियार, दवाएं सब कुछ चाहिए होंगी, जो मौजूदा हालात में मुमकिन नहीं.
दूसरी बात, पाकिस्तान को जितने सपोर्ट की शायद उम्मीद थी, वो गायब है. लगभग सारे ही इस्लामिक देशों ने सीधी सहायता से दूरी रखी है. तुर्की, अजरबैजान और मलेशिया साथ हैं लेकिन उनके खुद के पास ताकत नहीं. चीन इकलौता मजबूत देश है लेकिन वो भी छिपकर ही सीमित मदद कर पाएगा. दरअसल लंबे समय से चीन खुद ग्लोबल पावर बनने की कोशिश में है, ऐसे में पाकिस्तान जैसे देश के साथ दिखना उसकी इमेज के लिए भी ठीक नहीं. रही बात खाड़ी देशों की, तो सऊदी और यूएई के साथ हाल में भारत की करीबी दिख रही है. ऐसे में वे भी अपने डिप्लोमेटिक हित देखेंगे.
एक और मसला है. वैश्विक नैरेटिव सपोर्ट की कमी. यूक्रेन को दुनिया ने पीड़ित माना था, लेकिन पाकिस्तान को आतंक बढ़ाने वाले देश की तरह देखा जाता है. ऐसे में पश्चिम पाकिस्तान को खुला समर्थन कतई नहीं देगा, खासकर जब भारत डिप्लोमेटिक ताकत दिख रहा है.
पाकिस्तान अंदरुनी तौर पर स्थिर देश नहीं. वहां सेना और सरकार के बीच तनातनी रहती है, जबकि युद्ध के समय तो दोनों एक लाइन पर रहने चाहिए. लब्बोलुआब ये कि इस्लामाबाद को दुश्मन का दुश्मन दोस्त की तर्ज पर चीन या एकाध देश हथियारों की या आर्थिक मदद भले कर दें लेकिन वो भी ज्यादा दिन नहीं.