कई देश नागरिकों की सुरक्षा के लिए चारों तरफ बंकर बनवा चुके. इजरायल इसमें सबसे ऊपर है. वो सीमा पर बसे अपने लोगों को सबसे ज्यादा सुरक्षा देता है. इसकी वजह भी है. ये देश चारों तरफ से दुश्मन मुल्कों से घिरा है और छुटपुट लड़ाइयां चलती ही रहती हैं. कम्युनिटी बंकर का कंसेप्ट हमारे यहां भी है, लेकिन जरा कम चलन में है. सबसे ज्यादा बंकर पाकिस्तान से सटे जम्मू -कश्मीर बॉर्डर पर बने हुए हैं, जिन्हें स्थानीय लोग मोदी बंकर भी कहते हैं.
पाकिस्तान का हाल 'एक तो चोरी, ऊपर से सीनाजोरी' वाला है. भारतीय सीमाओं पर वो लगातार फसाद खड़ा किए रहता है. इस बार मामला बेहद गंभीर है. 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के तार इसी देश से जुड़े माने जा रहे हैं. भारत के एक्शन पर उसने भी धमकियां देनी शुरू कर दीं. युद्ध के आसार देखते हुए सीमा पर बसे गांवों से बंकरों की साफ-सफाई की खबरें आ रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में बने इन बंकरों को मोदी बंकर भी कहा जा रहा है.
फिलहाल जारी एडवायजरी को देखते हुए बंकरों को लेकर कई संवेदनशील जानकारियां नहीं दी जा सकतीं लेकिन ऊपरी तौर समझते हैं.
LoC के पास रहने वालों की सुरक्षा के लिए जम्मू कश्मीर में काफी सारे छोटे-बड़े अंडर और ओवरग्राउंड स्ट्रक्चर बनाए गए. अधिकतर बंकर पीएम मोदी के दूसरे टर्म में बनाए गए. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2021 में जम्मू में LoC और इंटरनेशनल बॉर्डर के पास लगभग 8000 अंडरग्राउंड बंकर बनाए गए. शुरुआत में केंद्र ने जम्मू, कठुआ, सांबा, पुंछ और राजौरी जिलों में लगभग साढ़े 14000 बंकर बनाने की मंजूरी दी थी. बाद में इसमें कुछ हजार और बंकर जोड़े गए ताकि सीमा पर ज्यादा से ज्यादा आबादी को सुरक्षा दी जा सके.

पाकिस्तान से सटे जिलों में जहां काफी सारे कम्युनिटी बंकरों की रिपोर्ट आ रही है, वहीं देश के बाकी सीमावर्ती इलाकों के बारे में खास जानकारी नहीं मिलती. पंजाब, राजस्थान, गुजरात, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के बॉर्डर भी विदेशी मुल्कों से सटे हुए हैं. लेकिन वहां स्थाई बंकर नहीं, जैसा कि कश्मीर में दिखता है. तनाव के वक्त अक्सर सीमा से सटे गांवों को खाली करा दिया जाता है ताकि लोग सुरक्षित रह सकें. वहीं नॉर्थईस्टर्न बॉर्डर पर सैन्य गतिविधियां चलती रहती हैं और आम लोग काफी दूर रहते हैं. इन सारी ही सीमाओं पर अधिकतर डिफेंस बंकर बने हुए हैं.
हाल के सालों में नागरिकों के लिए बंकर बनना शुरू तो हुए लेकिन वे सुरक्षा के लिहाज से काफी नहीं. कई शेल्टर आबादी से कुछ दूर भी हो सकते हैं, जिससे खतरे की स्थिति में भागकर वहां तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जान बचाने के लिए लोग अपने इंतजाम भी रखते हैं, जैसे कुछ घरों में तहखाने होते हैं, जो थोड़ी-बहुत सुरक्षा देते हैं. लेकिन अक्सर जोखिम बढ़ने पर गांव खाली कराना ही ऑप्शन रहता है.
सीमा पर बसे नागरिकों की सुरक्षा को लेकर सबसे चौकन्ना इजरायल रहा.
इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि ये देश भौगोलिक तौर पर काफी छोटा है और चारों ओर उन देशों से घिरा है, जिससे उसके रिश्ते अच्छे नहीं. यहां तक कि लगभग सभी देशों में कोई न कोई चरमपंथी गुट है, जो इजरायल में अस्थिरता पर काम करता है, जैसे हमास और हिजबुल्लाह. लिहाजा अपने लोगों को बचाने के लिए तेल अवीव सारी तैयारियां रखता है. यहां गाजा पट्टी से लगे बॉर्डर पर लगभग हर घर के पास छोटा प्राइवेट बंकर बना हुआ है, जिसे सरकारी मदद मिली. इसके अलावा, स्कूलों, अस्पतालों और सार्वजनिक जगहों के नीचे भी अंडरग्राउंड कम्युनिटी शेल्टर्स हैं.

यहां सायरन सिस्टम है. हमला होने की भनक मिलते ही पूरे इलाके में में अलार्म बजने लगता है. लाउडस्पीकर और रेडियो के जरिए सूचना मिल जाती है. लोगों को बताया जाता है कि उनके पास बंकर तक पहुंचने के लिए कितना वक्त है, कुछ सेकंड्स या कुछ मिनट. इतने कम वक्त में भी लोग जरूरत की चीजें लेकर बंकर के भीतर जा सकें, इसके लिए लगातार ड्रिल होती रहती है. यहां तक कि बच्चों को भी सर्वाइवल की ट्रेनिंग मिलती है.
यूरोपीय देश स्विटजरलैंड भी बंकरों के मामले में काफी आगे रहा.
वैसे तो ये देश न्यूट्रैलिटी पॉलिसी रखता है, यानी किसी लड़ाई-झगड़े से दूर रहने की नीति अपनाता है, लेकिन सुरक्षा अलग चीज है. स्विस सरकार ने नागरिकों के लिए देश में हर कोने पर बंकर बनवा डाले.
इसकी शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध से हुई. स्विस सरकार तब भी तटस्थ थी, लेकिन उसे डर था कि दूसरे देश, खासकर एक्सिस नेशन्स (जर्मनी, जापान और इटली) उसकी सीमाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं. अगर वो ऐसा करने देती तो कहीं न कहीं लड़ाई का हिस्सा बन जाती. इसी बात से बचने के लिए उसने सीमा पर सैनिक तैनात कर दिए. साथ ही वो पहाड़ों पर बंकर बनवाने लगी ताकि हमले के हालात में सैनिक वहीं से जवाबी कार्रवाई कर सकें.
युद्ध तो खत्म हो गया, लेकिन उसका डर बाकी था. स्विटजरलैंड ने बंकर बनवाना जारी रखा. वे पहाड़ों पर और शहरों-गांवों के बीच हर उस जगह पर बंकर बनाती रही, जहां आबादी हो. बात यहीं खत्म नहीं हुई. साठ के दशक में स्विस कानून आ गया. सिविल प्रोटेक्शन लॉ 1963, ये कहता है कि हर नई बन रही इमारत में एक शेल्टर होना चाहिए, जो हवाई हमलों से सुरक्षा दे सके. ये कानून उन सभी इमारतों पर लागू था, जिनमें 8 या उससे ज्यादा कमरे हों.

बीच में एक बार स्विस सरकार ने इन बंकरों को तोड़कर कुछ नया बनाने का भी सोचा, लेकिन तभी जापान में फुकुशिमा परमाणु हादसा हो गया. स्विटजरलैंड में भी परमाणु पावर प्लांट हैं और उससे सटे यूरोपियन देशों में भी हैं. ऐसे में अगर कोई हादसा हो जाए तो अपने लोगों को बचाने के लिए कुछ तो होना चाहिए. यही देखते हुए देश ने बंकरों को हटाने का इरादा छोड़ दिया.
सेना इन बंकरों का रखरखाव करती रहती है. यहां पानी, बिजली और हवा का पूरा इंतजाम है. बंकरों के भीतर आने वाली हवा में कोई जहर न घुला हो, इसके लिए एयर फिल्टर्स लगे हुए हैं. यहां तक कि असेंबल करने वाले बिस्तर भी यहां हैं. बंकर का बाहरी स्ट्रक्चर किसी कैप्सूल की तरह है, इसमें एयरलॉक है, जिससे दरवाजा मजबूती से बंद हो सके. साथ ही इमरजेंसी एंट्री और एग्जिट भी हैं.
हरेक बंकर इतना बड़ा है कि वहां 9 से 12 लोग आराम से रह सकते हैं. फिलहाल स्विटजरलैंड की कुल आबादी करीब 90 लाख है. इसके हिसाब से साढ़े 3 लाख से ज्यादा बंकर पर्याप्त हैं. ये वे शेल्टर हैं, जो रेसिडेंशियल इमारतों के नीचे बने हुए हैं. इसके अलावा बाहर की तरफ भी काफी सारे बंकर बनवाए गए थे. साथ ही वहां नेशनल इमरजेंसी ऑपरेशन्स सेंटर के पास 7000 से ज्यादा सायरन हैं जो इमरजेंसी के समय चेतावनी दे सकेंगे. हर साल इनकी टेस्टिंग होती है.