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Dhaakad Review: 'सो जा... सो जा... सो जा...' पूरी फिल्म के दौरान दिल से यही आवाज आती है

Dhaakad Review : फिल्म के ट्रेलर में कंगना को एक्शन करते देख काफी उम्मीदें जगी थीं, ऐसा माना जा रहा था कि कंगना की यह फिल्म पाथ ब्रेकर साबित हो सकती है लेकिन अफसोस फिल्म ने बहुत निराश किया है.

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धाकड़
धाकड़
फिल्म:धाकड़
2/5
  • कलाकार : कंगना रनौत, शारिब हाशमी, अर्जुन रामपाल, दिव्या दत्ता
  • निर्देशक :रजनीश घई

धाकड़ के ट्रेलर रिलीज ने एक्शन फिल्म को लेकर दर्शकों व सिनेमालवर्स के बीच कई उम्मीदें जगाई थीं. ट्रेलर के दौरान दिखने वाला कंगना का ताबड़तोड़ एक्शन और अर्जुन रामपाल-दिव्या दत्ता की हैवानियत फिल्म के प्रति आपकी जिज्ञासा को बढ़ा देती है. फिर जब आप थिएटर जाते हैं, तो आपका सामना होता है एक्स्पेक्टेशन वर्सेज रिएलिटी से. ट्रेलर के दौरान जो एक्सपेक्टेशंस जगे थे और रिएलिटी में जो फिल्म मिली है, तो खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं.

कहानी

फिल्म की शुरूआत एजेंट अग्नि (कंगना रनौत) के पावरफुल एक्शन सीन से होती है, जहां वो बंदूके, तलवार तमाम हथियार का इस्तेमाल करते हुए खुद की जान जोखिम में डालकर बच्चों को तस्करी से बचाती है. इस मिशन में अग्नि को एक पेनड्राइव मिलती है, जिसमें एशिया के सबसे बड़े बाल तस्कर समूह के मुखिया रूद्रवीर (अर्जुन रामपाल) की डिटेल है. सरकार के खिलाफ नफरत भरकर रूद्रवीर और उसकी साथी रोहिणी (दिव्या दत्ता)  कोयले की खदानों को हथियाने के अलावा वो दुनियाभर में बाल तस्करी का धंधा करते हैं. अग्नि का अगला मिशन इस गुट को समाप्त करना है लेकिन इस जर्नी में अग्नि कई और सच्चाइयों से रूबरू होती है, जो उसके विश्वास तक को हिलाकर रख देता है.

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डायरेक्शन

धाकड़ से अपने डायरेक्शन का डेब्यू कर चुके रजनीश घाई फिल्म की भव्यता व उसके एक्शन में इतने खो गए थे कि कहानी पक्ष को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया है. फर्स्ट हाफ ही नहीं बल्कि सेकेंड हाफ के काफी समय तक आप कहानी ढूंढने में लगे रहते हो. जबरदस्ती के ठूंसे गए एक्शन सीक्वेंस कई जगहों पर लॉजिक्स को जस्टिफाई नहीं कर पाते हैं. सेकेंड हाफ जितनी उलझी हुई है, उतनी ही सेकेंड हाफ उबाऊ और बोरिंग साबित होती है. पूरे थिएटर में एक ही इमोशन के साथ फिल्म देखते हैं कि भाई कब खत्म होगी? खासकर पूरी फिल्म के दौरान हर किरदार द्वारा दोहराया गया गाना 'सो जा.. सो जा.. सो जा रे..' ये वाकई में आपको थिएटर में सुला भी सकती है. विदेश से बुलाए गए सिनेमैटोग्राफर Tetsuo Nagata ने अपना काम बखूबी किया है. विजुअल्स के मामले में फिल्म हॉलीवुड फील जरूर देती है. रामेश्वर एस भगत की एडिटिंग में कई जगहों पर सीन्स का दोहराव है. एक्शन कोरियोग्राफी में कोई नयापन नजर नहीं आता है लेकिन एक फीमेल एक्टर को इंटेंस लेवल की एक्शन करते देखना दर्शकों के लिए ट्रीट साबित हो सकता है. कंगना का यह एक्स्पेरिमेंट सराहनिय है. उन्होंने बेशक बॉलीवुड एक्ट्रेस के बीच एक्शन के लेवल के ग्राफ को बढ़ाया है. 

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एक्टिंग

फिल्म की कास्टिंग इसका मजबूत पक्ष हो सकती थी लेकिन स्क्रीनप्ले के कंफ्यूजन ने इन्हें उलझा कर रख दिया है. कंगना का धाकड़ एक्शन भी इस फिल्म को बचा नहीं पाया. बेशक फिटनेस और ट्रेनिंग व टेक्निक पर की गई कंगना की मेहनत दिखती है लेकिन जब स्क्रिप्ट ही ठीक नहीं हो, तो सबकुछ बेअसर नजर आता है. अर्जुन रामपाल, दिव्या दत्ता, शारिब हाशमी, शाश्वता चैटर्जी जैसे सशक्त एक्टर्स ने पूरी ईमानदारी से अपने काम को निभाया लेकिन इसके बावजूद भी वे फिल्म की कहानी को मजबूत नहीं कर पाते हैं. धाकड़ एक ऐसा उदाहरण बन चुकी है कि आप कितनी भी उम्दा स्टारकास्ट रख लें लेकिन कहानी में जान नहीं है, तो सबकुछ बेकार हो जाता है.

क्यों देखें

बॉलीवुड इंडस्ट्री में कंगना ने अपनी इस फिल्म से फीमेल एक्ट्रेस के बीच एक्शन का बेंच मार्क स्थापित किया है. किसी एक्ट्रेस को इस लेवल का एक्शन करता देखना एक्शन लवर्स के लिए एक ट्रीट है. खूबसूरत लोकेशन और बेहतरीन विजुअल इफेक्ट्स के लिए फिल्म देखी जा सकती है. कहानी में कोई दम नहीं है, बेहतरीन स्टोरी की आस में आप थिएटर जा रहे हैं, तो आपको फिल्म निराश करेगी. 

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