उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ को सियासी मात देने के लिए सपा से लेकर बसपा और कांग्रेस रणभूमि में उतर गए हैं. तीनों ही दल की नजर एक दूसरे के कोर वोटबैंक पर है. कांग्रेस और बसपा की सक्रियता से सपा प्रमुख अखिलेश यादव की सियासी चिंता को बढ़ गई है, क्योंकि दोनों ही दलों के निशाने पर इन दिनों वो हैं.
बता दें अखिलेश यादव ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि बसपा-कांग्रेस को पहले ये स्पष्ट करना चाहिए कि उनकी लड़ाई बीजेपी से है या सपा से. अखिलेश का यह बयान ऐसे समय आया है जब पिछले कुछ दिनों से बसपा प्रमुख मायावती और कांग्रेस नेताओं द्वारा उनकी पार्टी पर निशाने पर लिया जा रहा है. मायावती लगातार सपा सरकार के कार्यकाल पर सवाल खडे़ कर रही हैं तो कांग्रेस आजम खान के बहाने सपा को घेरने में जुटी है.
मायावती लगातार ट्वीट के जरिए सपा पर निशाना साध रही हैं. उन्होंने हाल में जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल करने के लिए बीजेपी पर हमला करते हुए कहा था कि ये 'चाल' पिछली सपा सरकार के तरीकों के समान है. इतना ही नहीं मायावती हर प्रेस कॉफ्रेंस में सपा को घेरने से पीछे नहीं रहती हैं.
वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने भी सपा पर निशाना साधते हुए कहा था कि उसके नेताओं के बयान निराशा को दर्शाते हैं क्योंकि लोगों ने उन्हें खारिज कर दिया है. यूपी कांग्रेस अल्पसंख्यक सेल के प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम, आजम खान के बहाने अखिलेश यादव के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है, जिसके चलते मुस्लिम वोटों को सपा से छिटकने का खतरा बढ़ रहा है. ऐसे में बसपा और कांग्रेस ने सपा के सियासी राह में मुश्किले खड़ी कर दी हैं.
कांग्रेस नेता शाहनवाज आलम कहते हैं यूपी में कांग्रेस लड़ाई सत्ताधारी बीजेपी के साथ विपक्षी दल की निस्क्रियता को लेकर भी है. योगी सरकार के खिलाफ अखिलेश यादव न तो आजम खान जैसे अपने बड़े नेताओं की लड़ाई लड़ पा रहे हैं और न ही पार्टी कार्यकर्ताओं की. अखिलेश के इसी ढुलमुल रवैए को देखते हुए कांग्रेस सूबे में विपक्षी दल के तौर पर अपनी भूमिका अदा करने का फैसला किया है, जिसमें सत्तापक्ष के साथ-साथ विपक्ष से उसे दोहरी लड़ाई लड़नी पड़ रही है.
कांग्रेस की यूपी में सक्रियता से अखिलेश यादव बेचैन हो रहे हैं, क्योंकि उन्हें इस बात को यह एहसास हो चुका है कि उनकी सियासी जमीन खिसक चुकी है और लोगों को भरोसा प्रियंका गांधी से साथ है.
वहीं, अखिलेश यादव के बयान को लेकर बसपा नेता एमएच खान ने कहा कि अखिलेश यादव को बोलने दीजिए, उनके बयान से बसपा पर कोई फर्क नहीं पढ़ने वाला. बसपा का तय है कि वो यूपी में बीजेपी के साथ-साथ सपा और कांग्रेस से भी लड़ेगी इसमें कोई दो राय नहीं है और आने वाले समय में सरकार बनाएगी. यूपी में जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में सपा से जीते सभी पांच अध्यक्ष सिर्फ यादव समुदाय से हैं, जो ये दर्शाता है कि सपा सिर्फ एक जाति की पार्टी है और बसपा सभी लोगों को आगे लेकर चलने वाली पार्टी है.
कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने कहा कि कांग्रेस ने आजतक किसी भी सांप्रदायिक ताकत वाली पार्टी से हाथ नहीं मिलाया है, क्योंकि कांग्रेस का जन्म सांप्रदायिकता और अन्याय का नाश करने के लिए ही हुआ है. इसीलिए कांग्रेस पार्टी,सत्ताधारी बीजेपी की विभाजन कारी नीति और सोच के खिलाफ,चुनाव लड़ेगी, प्रियंका गांधी के नेतृत्व में हम,गांव-गांव,नगर-नगर और डगर-डगर,पांव-पांव जा रहे हैं और आने वाले चुनाव में,हम सबको आश्चर्यचकित करेंगे.
बीजेपी नेता नवीन श्रीवास्तव कहते हैं कि अखिलेश यादव के बयान से कोई आश्चर्य की बात नहीं है. सपा पहले भी कांग्रेस और बसपा के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ चुकी है. 2017 का विधानसभा चुनाव हो या फिर 2019 का लोकसभा चुनाव. सपा-बसपा ने 2019 के लोकसभा इलेक्शन में जो कांग्रेस के बड़े नेता हैं राहुल गांधी और सोनिया गांधी के खिलाफ अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था, ठीक इसी तरह कांग्रेस ने अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के खिलाफ अपना प्रत्याशी नहीं उतारा. यूपी में सपा, बसपा और कांग्रेस मिलकर यूपी में बीजेपी के खिलाफ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर चुनाव लड़ती रही हैं. ऐसे में ये अकेले लड़ें या फिर सारे के सारे एक साथ, लेकिन बीजेपी को 350 सीटें आने से रोक नहीं सकते.