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अंबेडकर जयंती पर अखिलेश का दलित दिवाली का दांव, क्या सियासी समीकरण साध पाएंगे?

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने प्रदेश और देशवासियों से आह्वान किया कि 14 अप्रैल को बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती पर 'दलित दीवाली' मनाएं. माना जा रहा है कि यूपी में दलित वोटों का समीकरण साधने के लिए सपा प्रमुख ने यह दांव चला है, लेकिन इसमें वह कितना कामयाब होंगे?

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सपा प्रमुख अखिलेश यादव (फाइल फोटो)
सपा प्रमुख अखिलेश यादव (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 14 अप्रैल को डा. भीमराव अंबेडकर की जयंती
  • अंबेडकर जयंती को सपा दलित दीवाली मनाएगी
  • 22 फीसदी दलित मतदाताओं को साधने का प्लान

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेश और देशवासियों से आह्वान किया कि 14 अप्रैल को बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती पर 'दलित दीवाली' मनाएं. माना जा रहा है कि यूपी में दलित वोटों का समीकरण साधने के लिए सपा प्रमुख ने यह दांव चला है, क्योंकि अगले साल शुरूआत में ही विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में देखना होगा कि सूबे का दलित मतदाता क्या मायावती का साथ छोड़कर अखिलेश यादव के साथ आएगा?

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गुरुवार को ट्वीट कर कहा कि भाजपा के राजनीतिक अमावस्या के काल में वो संविधान खतरे में है, जिससे बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर ने स्वतंत्र भारत को नई रोशनी दी थी. इसीलिए बाबा साहेब की जयंती 14 अप्रैल को समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश, देश व विदेश में 'दलित दीवाली' मनाने का आह्वान करती है. हालांकि, अंबेडकर जयंती को 'दलित दिवाली' के तौर पर मनाने को लेकर कुछ दलित संगठनों ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा अंबेडकर साहेब को महज दलित नेता के तौर पर सीमित करना सही नहीं है. 

अंबेडकर महासभा के अध्यक्ष व यूपी में दर्जा प्राप्त मंत्री लालजी प्रसाद निर्मल ने कहा कि संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर साहेब के जयंती को कनाडा और कैलीफोर्निया जैसे देश समता दिवस के रूप में मना रहा है जबकि समाजवादी पार्टी दलित दिवाली के रूप में मनाने की बात कर रही है. यह बाबा साहेब के कद को घटाने की कोशिश है. बाबा साहेब सर्वसमाज के नेता है, लेकिन महज दलित नेता के तौर पेश किया, जिसकी हम निंदा करते हैं. उनका आरोप है कि इसके चलते दलित समुदाय अखिलेश यादव से नाराज हैं. 

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लालजी निर्मल कहते के हैं यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके चलते उन्हें दलित समुदाय याद आ रहे हैं. इसीलिए वो अंबेडकर जयंती के बहाने के दलितों को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं, लेकिन यूपी का दलित समाज सपा के दलित विरोधी नीतियों को भूला नहीं है. लखनऊ के आलमबाग बस स्टॉप का नाम डा. अंबेडकर हुआ करते था, लेकिन अखिलेश यादव ने अपनी सरकार के दौरान डॉ. अंबेडकर का नाम हटवाया. इसी तरह से कानपुर देहात जिला के नाम बाबा साहबे की पत्नी रामाबाई के नाम पर था, जिसे अखिलेश यादव ने बदला. दलितों के प्रमोशन में आरक्षण का बिल का विरोध सपा ने ही किया था और बिल को सदन में फांड़ दिया था. इसे दलित समुदाय भूला नहीं है.

वहीं, नेशनल कॉफडेरेशन ऑफ दलित आर्गेनाइजेशन (नेकडोर) के प्रमुख अशोक भारती कहते हैं कि अखिलेश यादव ने दलित समुदाय और डॉ. अंबेडकर को लेकर अपनी प्रतिबध्यता दिखाई है, उसका हम स्वागत करते हैं. लेकिन अखिलेश ने जिस तरह से अंबेडकर जयंती को दलित दिवाली के तौर पर मानने की बात कही है, वो उचित नहीं है. बाबा साहेब ने संविधान के जरिए दलितों को जो अधिकार दिए हैं, वैसे ही यादव और दूसरे पिछड़े व शोषित समाज के लोगों को दिए हैं. ऐसे में बाबा साहेब के महज दलित नेता के तौर पर पेश करने को लेकर समाज में काफी गुस्सा और नाराजगी है. इसके लिए अखिलेश से ज्यादा सपा के दलित नेता जिम्मेदार हैं, जिन्होंने उन्हें सही सलाह नहीं दी. 

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साथ ही अशोक भारती ने कहा कि अखिलेश ही नहीं बल्कि देश में गैर-भाजपा दलों को एहसास हो चुका हैं कि बिना दलित वोटों के राजनीतिक नैया पार नहीं हो सकती है. इसीलिए अखिलेश हाल के दिनों में दलित समुदाय को साधने के लिए तमाम जतन कर रहे हैं. अंबेडकर जयंती मनाने की बात हो या फिर वाराणसी में रविदास मंदिर जाकर माथा टेकना हो. इससे साफ जाहिर होता है कि सूबे क 22 फीसदी दलित मतदाताओं को साधने की कवायद के तौर पर कर रहे हैं, क्योंकि यूपी की सत्ता का फैसला दलित समुदाय के हाथ में है. 

सपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य जावेद अली खान कहते हैं कि संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती हमारी पार्टी शुरू से मनाती रही है. मौजूदा समय में सबसे ज्यादा अटैक दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय के संवैधानिक अधिकारों पर हो रहा है. बीजेपी राज में बाबा साहेब के संविधान पर खतरा मंडरा रहा है, जिसके चलते सपा 14 अप्रैल को दलिक दिवाली मनाने का फैसला किया है. दलित दिवाली पर जो लोग टिप्पड़ी कर रहे हैं, वो लोग दलित शब्द के व्यापक दृष्टिकोण से वाक़िफ़ नहीं हैं. दलित शब्द का आशय केवल अनुसूचित जाति-जनजाति नही होता है बल्कि समाज के हर एक उस वर्ग से है, जो शोषित और पिछड़े हैं. 

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जावेद अली कहते हैं कि मौजूदा बीजेपी राज में असल खतरा अंबेडकरवादी विचारधारा, संविधान, आरक्षण व दलित हितों पर है, उसकी चिंता हम सभी को करनी होगी. ऐसे में सभी समाज एकजुट कर आगे आना होगा. इसे राजनीतिक और वोट की राजनीति से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. सपा अपने स्थापना से ही बाबा साहेब के जन्मदिन को मनाती आ रही है. पिछले साल गांव-गांव में अंबेडकर जयंती मनाना का काम किया था और आगे भी हम ऐसी ही धूमधाम से करते रहेंगे, क्योंकि उन्होंने देश के दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार दिया है. 


 

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