उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से ऐन पहले मुजफ्फरनगर में महापंचायत कर किसानों ने बीजेपी को अपनी ताकत का एहसास करा दिया है. किसान आंदोलन ने अब खुलकर सियासी शक्ल ले ली है और बीजेपी के खिलाफ मिशन यूपी का आगाज कर दिया है. पिछले तीन दशकों में मुजफ्फरनगर में महापंचायत के जरिए जब-जब किसानों ने जिस भी सरकार के खिलाफ हुंकार भरी है, उसे राज्य की सत्ता से विदा होना पड़ा है. ऐसे में देखना होगा कि किसान महापंचायत का सियासी असर 2022 के चनाव में क्या पड़ता है?
साल 1988 से लेकर 2013 तक मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायतों ने यूपी की सियासत पर गहरा असर छोड़ा. भारतीय किसान यूनियन की बुनियाद मुजफ्फरनगर में पड़ी है, जिसके बाद पूरे पश्चिम यूपी में अपना प्रभाव जमाया. ऐसे में भारतीय किसान यूनियन ने जिस सरकार के खिलाफ एकजुट हुए हैं, उस सरकार सत्ता से बाहर होना पड़ा है. ऐसे में पंचायतों की वजह भले ही अलग-अलग रही हों, लेकिन इतिहास सत्ता परिवर्तन का रहा है.
कांग्रेस को उठाना पड़ा खामियाजा
बिजली, सिंचाई की दरें घटाने और फसल के उचित मूल्य सहित 35 सूत्री मांगों को लेकर महेंद्र सिंह टिकैत की अगुवाई में 11 अगस्त 1987 को मुजफ्फरनगर के सिसौली में एक महापंचायत की गई. इसके बाद 27 जनवरी 1988 को मेरठ कमिश्नरी का घेराव किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में किसान शामिल हुए. यहां से बात नहीं बनी तो दिल्ली के वोट क्लब में आकर धरना दिया गया था, जिसका खामियाजा कांग्रेस को 1989 में यूपी विधानसभा चुनाव और 1990 के लोकसभा में उठाना पड़ा. यूपी और केंद्र दोनों जगह कांग्रेस को किसानों की नाराजगी के चलते सत्ता गवांनी पड़ी.
मायावती को सत्ता से हटना पड़ा
चार फरवरी 2003 में जीआईसी के मैदान पर महेंद्र सिंह टिकैत के अगुवाई में भारतीय किसान यूनियन की मायावती सरकार के खिलाफ महापंचायत हुई थी. तत्कालीन भाकियू अध्यक्ष चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों के हितों से जुड़े तमाम मुद्दों को लेकर मुजफ्फरनगर के कलेक्ट्रेट में धरना दिया था, जिस पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया था. ऐसे में लाठीचार्ज के विरोध में 2003 में जीआईसी के मैदान महापंचायत बुलाई गई, जिसमें लाखों किसान एकजुट हुए थे. एक साल के बाद ही मायावती को सत्ता हटना पड़ गया. बसपा विधायकों ने बगावत कर सपा का दामन थाम लिया और मुलायम सिंह यादव ने आरएलडी के समर्थन से सरकार बना ली थी.
बसपा के खिलाफ टिकैत की पंचायत
साल 2008 में मायावती उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री थीं. किसानों के मुद्दों को लेकर बिजनौर की एक सभा में भारतीय किसान युनियन के प्रमुख रहे महेंद्र सिंह टिकैत ने मायावती के खिलाफ जातिसूचक शब्द बोल दिया था. इस बात की खबर मायावती को लगी तो उन्होंने टिकैत की गिरफ़्तारी के आदेश दे दिए. महेंद्र सिंह टिकैत के सिसौली वाले घर की ओर जाने वाली सभी सड़कों को उनके समर्थकों ने जाम कर दिया, जिसके बाद पुलिस को टिकैत की गिरफ्तारी के लिए एड़ी चोटी लगाना पड़ा था. तीन दिन तक टिकैत समर्थकों और पुलिस के जवानों के बीच टकराव बना रहा. ऐसे में कुछ राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकारियों के हस्तक्षेप से यह तय हुआ कि महेंद्र सिंह टिकैत ने सरेंडर करेंगे.
चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के बयान के बाद हुई गिरफ्तारी को लेकर आठ अप्रैल 2008 को जीआईसी के मैदान में बसपा सरकार के खिलाफ बड़ी पंचायत हुई थी. इस पंचायत का आयोजन भारतीय किसान यूनियन ने किया था, जिसमें हजारों किसानों के बीच महेंद्र सिंह टिकैत ने बसपा और मायावती सरकार को सत्ता से बेदखल करने का ऐलान किया था. 2012 में चुनाव हुए मऔर बसपा सत्ता से बाहर हो गई और अखिलेश यादव के अगुवाई में सपा की सरकार बनी.
2013 में कवाल कांड के बाद पंचायत
मुजफ्फरनगर जिले में कवाल कांड के बाद भारतीय किसान युनियन के नेता राकेश टिकैत ने सात सितंबर 2013 को नंगला मंदौड में पंचायत बुलाई. हालांकि, यह महापंचायत किसानों के मुद्दों पर नहीं बल्कि जाट समुदाय के लिए बुलाई गई थी. पंचायत में तमाम बीजेपी और जाट समुदाय के नेता शामिल हुए थे, जिसके बाद जिले में हुए सांप्रदायिक दंगे ने भाकियू को व्यथित जरूर किया, लेकिन जाट और मुस्लिमों के बीच गहरी खाई हो गई. पश्चिम यूपी में जाट समुदाय के जनआक्रोश के चलते 2017 में सपा को हार का सामना करना पड़ा और 2017 में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा सरकार में आ गई.
महापंचायत 2022 में क्या गुल खिलाएगा
कृषि कानून के खिलाफ खड़े हुए किसान आंदोलन के 9 महीने के बाद मुजफ्फरनगर में लाखों की भीड़ जुटाकर किसानों ने अपनी ताकत एहसास कर दिया है. किसान नेताओं ने यूपी में 2022 में चुनाव से ठीक पहले महापंचायत किया, जिसमें बड़ी संख्या में किसान एकजुट हुए और सूबे से योगी और केंद्र से मोदी सरकार को उखाड़ने का ऐलान किया. किसानों का उमड़ा सैलाब देख राकेश टिकैत ने पंचायत में ऐलानिया कह भी दिया, 'जो सरकार हमारे खिलाफ काम करेगी, हम उसके खिलाफ काम करेंगे.'
उन्होंने कहा कि यह सरकार के लिए सिर्फ वार्निंग सिग्नल है या तो रास्ते पर आ जाओ, नहीं तो किसान चुनाव में बीजेपी को हटाने का काम करेगा. किसानों की इस कदर एकजुटता की तस्वीरें सरकार की चिंता बढ़ा सकती हैं, क्योंकि अगले छह महीने के भीतर उत्तरप्रदेश में चुनाव हैं और पश्चिमी यूपी ही किसान आंदोलन का मुख्य गढ़ है. ऐसे में अब देखना यह है कि भाकियू 2022 में किया सियासी गुल उत्तर प्रदेश में खिलाती है.