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NDA का 400 पार का नारा तो I.N.D.I.A को गठबंधन का सहारा... Exit Poll से पहले जानिए इस बार किसका क्या है दांव पर?

लोकसभा चुनाव अब अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है. एनडीए 400 पार का नारा देकर चुनाव मैदान में उतरा है तो वहीं विपक्षी इंडिया ब्लॉक को गठबंधन का सहारा है. एग्जिट पोल से पहले जानिए, किसका क्या है दांव पर?

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एनडीए और इंडिया में सीट बंटवारे का मुद्दा फंसा
एनडीए और इंडिया में सीट बंटवारे का मुद्दा फंसा

लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण की वोटिंग के बीच एग्जिट पोल का इंतजार है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 400 पारा का नारा देकर चुनाव मैदान में उतरा है तो वहीं कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्षी इंडिया ब्लॉक को गठबंधन का सहारा है. बीजेपी ने इस बार अकेले 370 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. पार्टी का टारगेट गठबंधन सहयोगियों के साथ 400 से अधिक सीटें जीतने का है.

दूसरी तरफ, विपक्षी पार्टियों को गठबंधन के सहारे बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है. केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली से लेकर हरियाणा और गुजरात तक आम आदमी पार्टी और कांग्रेस जैसे धुर विरोधी गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरे हैं. सातवें और अंतिम चरण का मतदान समाप्त होने के बाद अलग-अलग एजेंसियों के एग्जिट पोल नतीजे भी सामने आ जाएंगे. एग्जिट पोल नतीजों में ये अनुमान होंगे कि किस दल को कितनी सीटें मिल सकती हैं. एग्जिट पोल के अनुमानों से पहले आइए ये जान लेते हैं कि इस बार के चुनाव में किसका क्या दांव पर है?

बीजेपी

'अबकी बार, 400 पार' का नारा देकर चुनाव मैदान में उतरी बीजेपी के सामने 2019 के मुकाबले इस बार अपनी सीटें बढ़ाने की चुनौती है. 2014 के चुनाव में बीजेपी को 31.3 फीसदी वोट शेयर के साथ 282 सीटों पर जीत मिली थी. 2019 में पार्टी ने अपने पिछले प्रदर्शन में सुधार करते हुए 37 फीसदी से अधिक वोट शेयर के साथ 303 सीटें जीतीं. पार्टी की स्थापना के समय से ही लगभग हर चुनाव के मेनिफेस्टो में शामिल रहे राम मंदिर और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का वादा पूरा कर चुनाव मैदान में उतरी बीजेपी के सामने वोट शेयर और सीटें बढ़ने का ट्रेंड बरकरार रखना बड़ी चुनौती होगी.

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कांग्रेस

कांग्रेस का प्रदर्शन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में खराब रहा है. 2014 में 44 सीटों पर सिमटी कांग्रेस 2019 में पूरा जोर लगाने के बाद 52 सीटों तक पहुंची लेकिन पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी जैसी परंपरागत सीट से चुनाव हार गए थे. 2019 चुनाव के बाद से अब तक अलग-अलग राज्यों में कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं. कांग्रेस को इस बार यूपी से लेकर दिल्ली और गुजरात तक, गठबंधन सहयोगियों के सहारे बेहतर प्रदर्शन की आस है.

राष्ट्रीय लोक दल

राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) ने लोकसभा चुनाव से कुछ ही दिन पहले विपक्षी इंडिया ब्लॉक को झटका देकर बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन का दामन थाम लिया था. 2014 और 2019 के आम चुनाव में शून्य पर सिमटी पार्टी इस बार दो सीटों पर चुनाव लड़ रही है. विपक्षी गठबंधन में सपा ने आरएलडी के लिए सात सीटें छोड़ी थीं. कम सीटें मिलने पर भी आरएलडी ने एनडीए को चुना तो उसके पीछे जीत की संभावना को वजह बताया जा रहा था. जाट लैंड में जाट वोटों के क्या जयंत ही चौधरी हैं? ये चुनाव इस बात का भी टेस्ट हैं.

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी

ओमप्रकाश राजभर की अगुवाई वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) का राजभर वोट पर कितना होल्ड है, ये चुनाव इस बात का भी टेस्ट होगा. सुभासपा के एनडीए में आने के बाद हुए घोसी उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार की हार के बाद से ही राजभर वोट पर ओमप्रकाश के होल्ड को लेकर सवाल उठते रहे हैं. घोसी सीट से इस बार ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर ही उम्मीदवार हैं, ऐसे में राजभर के सामने इस सीट पर अपने वोट के साथ बीजेपी के वोट सहेजने और बाकी सीटों पर अपना वोट बैंक ट्रांसफर कराने की चुनौती होगी.

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समाजवादी पार्टी

समाजवादी पार्टी (सपा) 2014 के आम चुनाव में परिवार की सीटों पर सिमटकर रह गई थी. मुलायम सिंह यादव दो सीट से चुनाव जीते थे और धर्मेंद्र यादव, अक्षय यादव और डिंपल यादव को भी जीत मिली थी. 2019 के चुनाव में बसपा से गठबंधन के बावजूद सपा पांच सीटों पर ही सिमट गई थी लेकिन डिंपल यादव भी चुनाव हार गई थीं. सपा का वोट शेयर भी गिरकर 20 फीसदी के नीचे आ गया था. सपा इस बार कांग्रेस के साथ ही महान दल जैसी छोटी पार्टियों से गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी है. विपक्षी एकजुटता की कवायद के बीच अखिलेश ने कांग्रेस से भी दो टूक कह दिया था कि यूपी में इंडिया ब्लॉक की अगुवाई सपा ही करेगी. कांग्रेस को सपा की ओर से मिले 17 सीटों वाले ऑफर पर ही गठबंधन करना पड़ा. अखिलेश के सामने 'यूपी में हम ही विपक्ष थे' साबित करने की चुनौती होगी.

बहुजन समाज पार्टी

मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) 2014 के चुनाव में अकेले लड़कर शून्य पर सिमट गई थी. बसपा 2019 में सपा के साथ गठबंधन कर उतरी और 10 सीटें जीतने में सफल रही. लोकसभा चुनाव आते-आते कई सांसद पार्टी छोड़ दूसरे दलों में जा चुके हैं. पार्टी फिर से 2014 मोमेंट पर खड़ी है. ऐसे में बसपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती 2019 का प्रदर्शन दोहराने, अपना अलग वजूद साबित करने की है.

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राष्ट्रीय जनता दल

विपक्षी इंडिया ब्लॉक की बिहार में अगुवाई राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) कर रहा है. लालू यादव की अगुवाई वाली आरजेडी सीट बंटवारे से लेकर गठबंधन की रणनीति और चुनाव प्रचार तक, हर मोर्चे पर ड्राइविंग सीट पर नजर आई. 2019 के चुनाव में आरजेडी खाता भी नहीं खोल सकी थी. बिहार में बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों ने 40 में से 39 सीटें जीत ली थीं और किशनगंज से कांग्रेस को जीत मिली थी. बिहार में अगले ही साल लोकसभा चुनाव भी होने हैं. ऐसे में लोकसभा चुनाव के नतीजे 2025 चुनाव का टोन सेट करने वाले भी माने जा रहे हैं. बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इन चुनावों में 251 छोटी-बड़ी चुनावी रैलियां की. ऐसे में ये चुनाव नतीजे तेजस्वी के नेतृत्व की भी परीक्षा माने जा रहे हैं. 

शिवसेना और शिवसेना यूबीटी

महाराष्ट्र में शिवसेना पर कब्जे की जंग में चुनाव आयोग ने फैसला एकनाथ शिंदे के पक्ष में सुनाया था. शिवसेना के नाम और निशान पर चुनाव आयोग का फैसला पक्ष में आया लेकिन जनता की अदालत का फैसला किसके पक्ष में आता है, ये इन चुनाव नतीजों से पता चलेगा. शिंदे की पार्टी एनडीए में है. उद्धव की शिवसेना (यूबीटी) कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी के साथ विपक्षी गठबंधन में है. दोनों ही दलों की ओर से चुनाव प्रचार के दौरान तल्ख जुबानी जंग देखने को मिली. उद्धव की पार्टी के तमाम नेता शिंदे को गद्दार बताते रहे. शिंदे और उनकी पार्टी के नेताओं के निशाने पर भी उद्धव और उनकी पार्टी ही रही. महाराष्ट्र की कई लोकसभा सीटों पर मुख्य मुकाबला इन दोनों दलों के बीच ही है. ऐसे में इस चुनाव को जनता की अदालत में असली शिवसेना की लड़ाई के रूप में भी देखा जा रहा है. शिवसेना का कोर वोटर शिंदे या उद्धव, किसके साथ जाता है? ये देखने वाली बात होगी.

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एनसीपी और एनसीपी (एसपी)

शिवसेना के बाद शरद पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को भी टूट का सामना करना पड़ा था. अजित पवार ने एनसीपी के दो-तिहाई विधायकों के समर्थन से बगावत कर शिंदे सरकार का समर्थन कर दिया था. एनसीपी पर कब्जे की जंग चुनाव आयोग की चौखट तक भी पहुंची और आयोग से फैसला अजित के पक्ष में आया. शरद पवार ने अपनी ही बनाई पार्टी का नाम निशान गंवाने के बाद एनसीपी (शरद पवार) पार्टी बनाकर उम्मीदवार उतारे हैं. ये चुनाव नतीजे एनसीपी किसकी, इसे लेकर जनादेश के रूप में भी देखे जा रहे हैं.

आम आदमी पार्टी

पंजाब और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी ने अबकी 'जेल का जवाब वोट से' कैंपेन चलाया. केजरीवाल की गिरफ्तारी के विरोध में ये कैंपेन चलाने वाली आम आदमी पार्टी दिल्ली की चार, पंजाब की 13, हरियाणा की एक और गुजरात की दो सीटों पर चुनाव लड़ रही है. आम आदमी पार्टी और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का कद भी चुनाव नतीजों पर निर्भर करेगा.

टीएमसी

पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने इंडिया ब्लॉक को झटका देते हुए सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था. ममता बनर्जी चुनाव प्रचार के दौरान यह कहती भी नजर आईं कि पश्चिम बंगाल में हम ही इंडिया ब्लॉक हैं, कांग्रेस और लेफ्ट अलग हैं. ममता के गढ़ में 2019 के चुनाव में बीजेपी को 18 सीटों पर जीत मिली थी. इसके बाद हुए 2021 के बंगाल चुनाव में बीजेपी मुख्य विपक्षी पार्टी बनकर उभरी. इस बार ममता के सामने अपनी सीटें बचाने की चुनौती है.

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