
इंडिया गठबंधन ने सीट शेयरिंग के लिए 31 दिसंबर की डेडलाइन तय की थी. डेडलाइन बीतने के बाद अब कांग्रेस और दूसरी पार्टियां सीट शेयरिंग को लेकर एक्टिव हो गई हैं. यूपी से लेकर बिहार, पश्चिम बंगाल से लेकर महाराष्ट्र और दिल्ली से लेकर पंजाब तक सीट शेयरिंग का उलझा गणित सुलझाने के लिए कांग्रेस में मंथन का दौर जारी है.
इस बीच यूपी कांग्रेस ने पार्टी नेतृत्व को 2009 के लोकसभा चुनाव का फॉर्मूला देते हुए 30 सीट से कम पर बातचीत नहीं करने की सलाह दी है. कांग्रेस के केंद्रीय स्तर के नेता 25 सीटों को लेकर बातचीत करने की वकालत कर रहे हैं. स्टेट और सेंट्रल लीडरशिप के स्तर पर सीटों को लेकर अलग-अलग राय के बीच कांग्रेस और सपा के बीच सीट शेयरिंग पर अनौपचारिक बातचीत भी शुरू हो गई है. वहीं, बिहार कांग्रेस के नेता सूबे में 25 सीटों पर दावा करने की बात कर रहे हैं. बिहार कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि 25 सीटों पर दावा करेंगे तब कहीं 10 से 12 सीटें हमें मिल पाएंगी.
हालांकि, बिहार में कांग्रेस 10 सीट के लिए दावा करते हुए सीट शेयरिंग पर बातचीत की गाड़ी आगे बढ़ाएगी,ऐसी चर्चा है. यूपी में 80 और बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं. आंकड़ों के लिहाज से देखें तो इन दो राज्यों में ही 120 लोकसभा सीटें हैं जो 543 लोकसभा सीटों का करीब 22 फीसदी है. 22 फीसदी लोकसभा सीटों में से कांग्रेस 2019 के चुनाव में महज दो सीटें ही जीत सकी थी. पार्टी को यूपी में एक और बिहार में एक सीट पर जीत मिली थी.

पिछले लोकसभा चुनाव यानी 2019 में 120 सीटों वाले दो राज्यों में महज दो सीटें ही जीत सकी कांग्रेस अब 2024 में 50 सीटों पर दावा कर रही है तो इसे लेकर सवाल भी उठने लगे हैं. सवाल यह भी उठ रहे हैं कि कांग्रेस का दावा जमीनी हकीकत के कितना करीब है, क्या कांग्रेस की मंशा जीतने की है या बस वह अपने कोटे की सीटों की संख्या भर बढ़ाना चाहती है?
क्या कहते हैं जानकार?
वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर श्रीराम त्रिपाठी ने कहा कि यूपी में अजय राय को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से कांग्रेस जमीन पर दिखने लगी है. जब जहां विपक्ष को नजर आना चाहिए, अजय राय वहां पहुंचने में कई बार सहयोगी सपा से भी बीस साबित हुए हैं. यूपी जोड़ो यात्रा के जरिए भी पार्टी की जमीन मजबूत करने की रणनीति पर पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने काम किया है लेकिन खाई इतनी गहरी है जिसे भरने में वर्षों लग जाएंगे. कांग्रेस का 25 सीटों पर दावा जमीनी हकीकत से दूर नजर आ रहा है.

बिहार में भी कांग्रेस के दावे से सीट शेयरिंग के फॉर्मूले को लेकर इंडिया गठबंधन में हालात और उलझ गए हैं. सूबे में लोकसभा की 40 सीटें हैं और जेडीयू, आरजेडी जैसी बड़ी पार्टियों समेत छह दावेदार हैं. ऐसे में सवाल यह भी उठ रहे हैं कि सूबे में सीट शेयरिंग कैसे होगी?
ये भी पढ़ें- 2009 का फॉर्मूला, 25 सीटों पर दावा... यूपी में सीट बंटवारे को लेकर सपा से शुरू हुई कांग्रेस की बातचीत
वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि जेडीयू के 16 सीटिंग सांसद हैं और नीतीश कुमार की पहली प्राथमिकता अपनी सीटिंग सीटें सेफ करने की होगी. कांग्रेस अगर नौ सीटों पर ही मान जाती है तो भी लेफ्ट छह सीटों पर दावा कर रहा है. फिर आरजेडी के लिए कितनी सीटें बचेंगी? आरजेडी विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है और इसी को बेस बनाकर वह यह कह रही है कि नीतीश की पार्टी से अधिक नहीं तो कम से कम बराबर सीटें तो मिलें.

नीतीश कुमार ने 2019 में बीजेपी के साथ इसी फॉर्मूले को आधार बनाकर सीट शेयरिंग की थी और बराबर सीटें लेकर ही माने. अब आरजेडी उसी फॉर्मूले पर आगे बढ़ती नजर आ रही है. नीतीश जिस तरह से तल्ख तेवर दिखा रहे हैं, जेडीयू उम्मीदवारों का ऐलान कर रही है, उसे जेडीयू के मिशन 16 से जोड़कर ही देखा जा रहा है. कहा यह भी जा रहा है कि आरजेडी भी कांग्रेस-लेफ्ट के लिए त्याग करने के मूड में नहीं है.
इंडिया गठबंधन की पार्टियों का 2019 में कैसा रहा था प्रदर्शन
यूपी और बिहार में इंडिया गठबंधन के घटक दलों के प्रदर्शन की बात करें तो जेडीयू का नाम शीर्ष पर आता है. हालांकि, पार्टी तब बीजेपी के नेतृ्त्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए में थी. जेडीयू ने 2019 में 17 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और पार्टी 22.3 फीसदी वोट शेयर के साथ 16 सीटें जीतने में सफल रही थी. कांग्रेस ने नौ सीटों पर उम्मीदवार उतारा था और पार्टी को 7.9 फीसदी वोट शेयर के साथ एक सीट पर जीत मिली थी.
ये भी पढ़ें- बिहार में किस आधार पर 9 सीटें मांग रही कांग्रेस? पिछली बार 7.9% वोट लेकर जीती थी एक सीट
आरजेडी ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा और खाता तक नहीं खुल सका था. शून्य सीट पर सिमटी आरजेडी 15.7 फीसदी वोट के साथ वोट शेयर के लिहाज से तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. इसी तरह यूपी में कांग्रेस 6.4 फीसदी वोट शेयर के साथ महज एक सीट पर सिमट गई थी जबकि सपा 18.1 फीसदी वोट शेयर के साथ पांच सीटें जीतने में सफल रही थी. वोट शेयर और सीटें, दोनों ही लिहाज से सपा, बीजेपी और बसपा के बाद तीसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी. बसपा ने तब सपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था और पार्टी 19.4 फीसदी वोट शेयर के साथ 10 सीटें जीतने में सफल रही थी.