आज बीजेपी ने हरियाणा में अपना अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन किया और जीत दर्ज की. बीजेपी ने 90 में से 48 सीटें जीती हैं और कांग्रेस ने 37 सीटें जीती हैं और कांग्रेस लगातार तीसरी बार हरियाणा के चुनावों में हार गई है. लेकिन इन नतीजों के साफ होने से पहले जो शुरुआती रुझान आ रहे थे उनमें भाजपा हारती दिख रही थी. सिर्फ इतना ही नहीं हर एग्जिट पोल में भी कांग्रेस का सरकार बनाना लगभग तय माना जा रहा था.
भूपेंद्र हुड्डा सरकार बनाने को लेकर उत्साहित भी दिख रहे थे. लेकिन जब नतीजे साफ हुए तो तस्वीर कुछ और ही दिखी. हालांकि इन चुनावी नतीजों के दूसरे पहलू पर नजर डालें तो एक आंकड़ा यह भी है कि 90 में से 19 सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी ने पांच हजार या उससे कम वोटों से चुनाव जीता है. अगर कांग्रेस पार्टी इन 19 सीटों पर थोड़ी और मेहनत कर लेती तो कांग्रेस चुनाव जीत सकती है.
90 में से 19 सीटों पर थी क्लोज फाइट
बता दें कि हरियाणा की 90 में से 19 सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी ने पांच हजार या उससे कम वोटों से चुनाव जीता है और इनमें उचाना कलां की सीट से कांग्रेस पार्टी के नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे चौधरी बृजेंद्र सिंह सिर्फ 32 वोटों से चुनाव हारे हैं. जबकि इसी सीट पर आम आदमी पार्टी को लगभग ढाई हजार और NOTA को भी 187 वोट मिले हैं. अगर कांग्रेस पार्टी इन 10 सीटों पर थोड़ी और मेहनत करती और ये सीटें बीजेपी से जीत जाती तो आज बीजेपी के पास 48 नहीं बल्कि 38 सीटें होती और कांग्रस के पास 37 नहीं 47 सीटें होती और वो पूर्ण बहुमत के साथ आसानी से अपनी सरकार बना सकती थी. लेकिन बीजेपी ने वोटों की इस लीकेज का फायदा उठाकर पांच हजार या उससे कम वोटों के अंतर से ये 10 सीटें जीत लीं और अब वो तीसरी बार हरियाणा में सरकार बनाएगी.
हरियाणा में बीजेपी की जीत के 5 बड़े फैक्टर हैं...
पहला- बीजेपी ने स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा और उसने भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, किसान और ग्राम पंचायतों को लेकर बड़े फैसले लिए और मुख्यमंत्री आवास को भी आम लोगों की शिकायतों के लिए खोल दिया.
दूसरा- इस बार RSS ने बीजेपी का पूर्ण सहयोग किया और उसके लिए ग्रामीण इलाकों में काफी मेहनत की. पहले अनुमान था कि ग्रामीण इलाकों की 61 में से 45 सीटें कांग्रेस जीत सकती थी और 10 सीटें बीजेपी जीत सकती थी. लेकिन RSS की मदद से बीजेपी ने ग्रामीण इलाकों में 29 सीटें जीती हैं और कांग्रेस को भी इतनी ही सीटों पर जीत मिली है.
तीसरा- विपक्षी दलों के बिखराव से भी बीजेपी को काफी फायदा हुआ. हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन को 6% वोट मिले हैं, निर्दलीय उम्मीदवारों को 11% वोट मिले हैं, आम आदमी पार्टी को 1.8% वोट मिले हैं और जननायक जनता पार्टी को लगभग 1 पर्सेंट वोट मिले हैं और विपक्षी दलों के अलग अलग चुनाव लड़ने से ही बीजेपी को फायदा हुआ.
चौथा- कांग्रेस के अति-आत्मविश्वास से भी बीजेपी को फायदा हुआ.
पांचवां- हरियाणा कांग्रेस की अंदरुनी लड़ाई से भी बीजेपी को फायदा हुआ और कुमारी सैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच जो मतभेद थे, उससे कांग्रेस कई सीटों पर कमजोर हो गई.
छठा- कांग्रेस ने गैर जाट वोटर्स में 21% दलित वोटर्स को साधने के लिए ज्यादा मेहनत की, जिससे 21% में से 14% दलितों के वोट बीजेपी के पास चले गए.
क्या सच में खट्टर के खिलाफ थी एंटी इनकंबेंसी?
इन नतीजों के बाद आज एक बड़ा सवाल ये भी है कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी होने की बात सही थी या मनोहर लाल खट्टर को अपने खिलाफ एक फेक नैरेटिव की कीमत चुकानी पड़ी? इस मामले में दो पहलू नजर आते हैं, जिनमें पहला पहलू ये हो सकता है कि गुजरात की तरह हरियाणा में भी मुख्यमंत्री को बदलने से बीजेपी जीत गई लेकिन दूसरा पहलू ये भी हो सकता है कि मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ कोई नाराज़गी थी ही नहीं.
मनोहर लाल खट्टर के लिए हरियाणा में एक डायलॉग बोला जाता है कि बिना खर्ची-बिना पर्ची, जिसका मतलब ये है कि खट्टर की सरकार में रिश्वत देकर पर्ची से काम नहीं होते और ये बात लोगों को काफी पसंद आई. साथ ही सबसे बड़ी बात ये भी है कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का कभी कोई आरोप नहीं लगा और उनकी छवि पूरी तरह बेदाग रही और इस बात को अब शायद बीजेपी भी समझ रही है. इसलिए आज प्रधानमंत्री मोदी ने मनोहर लाल खट्टर की काफी तारीफ की है.