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BJP को लोकसभा चुनाव में भले 240 सीटें मिलीं, लेकिन 3 मोर्चे पर मोदी ने दिखाया बहुमत वाला कॉन्फिडेंस

बीजेपी को 2024 लोकसभा चुनाव में अपने दम पर पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया था. लेकिन, ऑपरेशन सिंदूर, वक्फ संशोधन कानून और राज्यों में सत्ता वापसी जैसे कई उदाहरण हैं जो बताते हैं कि केंद्र सरकार में बहुमत जैसा आत्मविश्वास आ चुका है - और विपक्ष फिर से बिखरता जा रहा है.

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अभी एक साल ही बीता है, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कई उपलब्धियां अपने नाम कर ली है.
अभी एक साल ही बीता है, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कई उपलब्धियां अपने नाम कर ली है.

नरेंद्र मोदी 9 जून को शपथ लेने वाले देश के दूसरे प्रधानमंत्री हैं. 1964 में 9 जून को ही लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, और 2024 में नरेंद्र मोदी ने ये काम तीसरी बार किया - और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल का भी एक साल पूरा हो चुका है. 

4 जून, 2024 को लोकसभा चुनाव के नतीजे आये थे, और बीजेपी को महज 240 लोकसभा सीटें ही मिली थीं. एनडीए को 291 सीटें मिली थीं, लेकिन 'अबकी बार 400 पार' का नारा देने वाली बीजेपी अपने दम पर बहुमत लाने में पीछे रह गई थी. सरकार तो बननी ही थी, बन भी गई लेकिन कहा जाने लगा था कि पहले की तरह मजबूत सरकार नहीं बन पाई. 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और टीडीपी नेता एन. चंद्रबाबू नायडू के सपोर्ट को केंद्र की एनडीए सरकार के लिए बैसाखी की संज्ञा दी जाने लगी थी. यानी, अगर दोनों में से कोई भी कभी भी नाराज हुआ, और सपोर्ट वापस लिया तो सरकार का गिरना पक्का है. 

माना जाने लगा कि 2019 में संसद के जरिये जम्मू-कश्मीर से धारा 370, सीएए लागू करने और तीन तलाक खत्म करने जैसे कड़े फैसला लेना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के लिए शायद ही मुमकिन हो पाये. 

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लेकिन, साल भर बीतते बीतते बीजेपी सरकार ने ऐसी तमाम आशंकाओं को करीब करीब गलत साबित कर दिया है. एक तरफ, एक एक करके कड़े फैसलों से बीजेपी सरकार जहां बहुमत की मजबूत सरकार साबित करने लगी है, दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव में मजबूत विपक्षी गठबंधन के रूप में उभर कर सामने आया इंडिया ब्लॉक बेहद कमजोर और बिखरता हुआ नजर आ रहा है. 

राज्यों में चुनावी जीत के बाद वक्फ कानून से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक, नजर डालें तो मौजूदा सरकार भी 2014 और 2019 में सत्ता में आई बीजेपी से किसी भी मायने में कम नहीं लग रही है. बल्कि, ऑपरेशन सिंदूर के बाद तो ज्यादा ही मजबूत नजर आ रही है. 

1. ऑपरेशन सिंदूर  

पहलगाम अटैक के बाद सरकार से आतंकवादियों के खिलाफ बेहद कड़े एक्शन की मांग होने लगी थी. और, इस बार 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट एयर स्ट्राइक से कुछ ज्यादा की ही उम्मीद की जा रही थी. 

सरकार ने थोड़ी देर तो लगाई, लेकिन नाउम्मीद नहीं किया. ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के खिलाफ लोगों की उम्मीदों से बढ़कर सेना ने कार्रवाई की. धीरे धीरे उम्मीदें बढ़ने लगीं, और युद्धोन्माद का रूप लेने लगीं - लेकिन, जब सीजफायर का फैसला हुआ तो हर फैसले के साथ खड़ा रहने का वादा कर चुका विपक्ष भी राजनीति पर उतर आया, वैसे मौका भी सरकार की तरफ से ही दिया गया था. 

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ऑपरेशन सिंदूर से ठीक पहले पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते को रद्द किया जाना भी बड़ा कदम था. और, उसके बाद भारत के सामने खुद को हर फैसले के लिए सही साबित करना भी कोई मामूली चुनौती नहीं थी, लेकिन राजनीतिक परिपक्वता के साथ साथ कूटनीतिक सूझ बूझ का परिचय देते हुए सरकार ने विदेश दौरे पर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भी भेज दिया - और सबसे बड़ी बात किसी भी मुल्क ने पहलगाम हमले में पाकिस्तान के शामिल होने के भारत से सबूत नहीं मांगे. 

2. वक्फ संशोधन कानून 

वक्फ संशोधन कानून लाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को विपक्ष की चिंता तो नहीं रही होगी, लेकिन केंद्र सरकार को सपोर्ट कर रहे, जेडीयू नेता नीतीश कुमार को लेकर पक्का यकीन नहीं रहा होगा. 

भले ही नीतीश कुमार पहले धारा 370 और तीन तलाक जैसे मुद्दे पर बीजेपी सरकार का सपोर्ट कर चुके थे, लेकिन वक्फ बिल पर वो पेच फंसा सकते थे. बीजेपी ने उनकी तरफ से सुझाये गये सभी संशोधनों को मान लिया, और विरोध का मौका ही नहीं दिया. 

राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 अब कानून बन गया है. भले ही सुप्रीम कोर्ट में कानून पर अंतरिम रोक लगाने का मुद्दा पेंडिंग है, लेकिन इसी बीच सरकार ने वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन के लिए केंद्रीय पोर्टल यूनिफाईड वक्फ मैनेजमेंट, एंपावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट भी लॉन्च कर दिया है, और काम चालू है.

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अब तो चंद्रबाबू नायडू का भी बयान आ गया है. नायडू ने कहा है, ये कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में प्रशासन, पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार करना चाहता है, और ये कानून मुस्लिम समर्थक है.

3. और अब बिहार की बारी है
 
लोकसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए हद से ज्यादा निराश करने वाले थे. अब इससे बुरी बात क्या होगी कि जिस साल राम मंदिर का उद्घाटन समारोह हुआ हो, उसी साल के चुनाव में बीजेपी अयोध्या की सीट हार जाये और यूपी में उसे समाजवादी पार्टी से भी कम सीटें मिलें. 

मुश्किलों से उबरने और संभलने बेशक वक्त तो लगता है, लेकिन बीजेपी ने ये सब बड़े ही कम वक्त में कर लिया है. लोकसभा चुनाव के बाद राज्यों के विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी बीजेपी के लिए काफी मुश्किल चैलेंज था. ये ठीक हैा कि बीजेपी झारखंड चुनाव नहीं जीत पाई, लेकिन हरियाणा के बाद महाराष्ट्र की सत्ता में वापसी तो कर ही ली. लोकसभा चुनाव के खराब प्रदर्शन को पीछे छोड़कर सत्ता में वापसी करना काफी मुश्किल था. 

लेकिन, बीजेपी ने महाराष्ट्र में रिकॉर्ड जीत हासिल की, और ये इसलिए भी जरूरी था क्योंकि सत्ता में वापसी के साथ साथ बीजेपी को मुख्यमंत्री पद भी एकनाथ शिंदे से वापस लेना था. बीजेपी के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि तो दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को सत्ता से बेदखल कर अपनी सरकार बनाना था, लेकिन वो भी हो गया - और अब बिहार की बारी है. 

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