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दिलीप जायसवाल, पप्पू यादव, उदय सिंह... सीमांचल के वो सूरमा, जो बिहार चुनाव में बन सकते हैं एक्स फैक्टर

बिहार का सीमांचल चुनावी चर्चा का सेंटर पॉइंट बन गया है. पीएम मोदी के कार्यक्रम से एनडीए ने शक्ति प्रदर्शन किया, तो चर्चा इस इलाके के अन्य नेताओं की भी होने लगी. सीमांचल की सियासत के कौन सूरमा बिहार चुनाव में एक्स फैक्टर साबित हो सकते हैं?

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बीजेपी को प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल से उम्मीद, कांग्रेस की आस पप्पू यादव (Photo: ITG)
बीजेपी को प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल से उम्मीद, कांग्रेस की आस पप्पू यादव (Photo: ITG)

बिहार में विधानसभा के चुनाव हैं और चुनावी मौसम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्णिया से सीमांचल को एयरपोर्ट के साथ ही करीब चार हजार करोड़ रुपये की विकास योजनाओं की सौगात दी. पीएम मोदी के मंच पर सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने शक्ति प्रदर्शन किया.

केंद्र सरकार में बिहार कोटे से मंत्री सभी नेताओं के साथ बिहार सरकार में मंत्री स्थानीय नेता भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम में मंच पर थे. चुनावी मौसम में एनडीए के शक्ति प्रदर्शन अब चर्चा इस बात को लेकर भी होने लगी है कि सीमांचल के वो सूरमा कौन हैं, जो बिहार चुनाव में एक्स फैक्टर बन सकते हैं?

असम और पश्चिम बंगाल से सटे बिहार के सीमांचल का इलाका मुस्लिम और अतिपिछड़ा बहुल माना जाता है. सीमांचल के सभी जिलों में मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में है, 2020 में ओवैसी फैक्टर में बीजेपी सबसे ज्यादा सीटें जीतने में सफल रही थी, लेकिन इस बार का सीन बदला हुआ है. 

दिलीप जायसवाल खिला पाएंगे कमल? 

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बिहार विधानसभा की हर सीट का हर पहलू, हर विवरण यहां पढ़ें

डॉक्टर दिलीप जायसवाल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की बिहार इकाई के प्रदेश अध्यक्ष हैं. डॉक्टर जायसवाल किशनगंज जिले से आते हैं, जो सीमांचल क्षेत्र में ही आता है. तीन बार के एमएलसी दिलीप जायसवाल किशनगंज सीट से बीजेपी के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं.

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दिलीप जायसवाल को साल 2024 में ही बीजेपी ने बिहार में संगठन की कमान सौंपी थी. बीजेपी को डॉक्टर जायसवाल के सीमांचली होने के कारण विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन, सीटों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है. इस उम्मीद के पीछे एक कारण यह भी है कि दिलीप जायसवाल खुद वैश्य वर्ग से आते हैं, जो सीमांचल में प्रभावी संख्या में है. दिलीप जायसवाल बिहार बीजेपी का लिबरल चेहरा भी हैं और मुस्लिम वर्ग में भी उनकी स्वीकार्यता रही है.

उदय सिंह करा पाएंगे जनसुराज का उदय?

उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह पूर्णिया लोकसभा सीट से सांसद रहे हैं. वह 2004 और 2009 में बीजेपी के टिकट पर पूर्णिया से लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे. उदय सिंह फिलहाल चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. उदय सिंह की मां माधुरी सिंह भी कांग्रेस की कद्दावर नेता और पूर्णिया सीट से दो बार सांसद रह चुकी हैं.

उदय सिंह खुद बीजेपी के अलावा कांग्रेस में भी रह चुके हैं. वह राजपूत समाज से आते हैं और सवर्ण मतदाताओं के बीच उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है. बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक, उदय सिंह दोनों प्रमुख गठबंधनों की दो प्रमुख पार्टियों के साथ चुनाव लड़ चुके हैं और इनकी चुनावी दांव-पेच से परिचित हैं. जन सुराज को सीमांचल की राजनीति में अनुभवी उदय सिंह के सहारे मजबूत उदय की उम्मीद है.

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अख्तरुल ईमान दिला पाएंगे 2020 जैसा परिणाम?

अख्तरुल ईमान किशनगंज जिले की अमौर विधानसभा सीट से विधायक हैं. वह असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रदेश अध्यक्ष हैं. अख्तरुल ईमान ने छात्र जीवन में ही सियासी सफर का आगाज कर दिया था. वह 1985 में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से सुर्खियों में आए थे. 2005 और 2010 में वह कोचाधामन सीट से आरजेडी के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए थे.

अख्तरुल ईमान 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल हो गए थे. जेडीयू ने अख्तरुल को किशनगंज से उम्मीदवार बनाया था, लेकिन उन्होंने चुनाव से 10 दिन पहले कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थन में नामांकन वापस ले लिया था. साल 2015 में अख्तरुल ने जेडीयू भी छोड़ दी और वह एआईएमआईएम में शामिल हो गए थे. अख्तरुल ने पिछले चुनाव में एआईएमआईएम को पांच सीटों पर जीत दिलाकर अपनी संगठन शक्ति साबित की थी. उनका मुस्लिम मतदाताओं के बीच अच्छा प्रभाव है..

कांग्रेस के कितना काम आएगी पप्पू यादव की पकड़? 

पप्पू यादव पूर्णिया सीट से सांसद हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था. पप्पू यादव पूर्णिया सीट से टिकट के आश्वासन पर कांग्रेस में शामिल हो गए, लेकिन पूरा जोर लगाने के बाद भी ग्रैंड ओल्ड पार्टी महागठबंधन में यह सीट हासिल नहीं कर सकी.

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पूर्णिया से लालू यादव की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने बीमा भारती को उम्मीदवार घोषित कर दिया था. पप्पू यादव निर्दलीय लड़े और जीतकर संसद भी पहुंचे. पप्पू यादव पूर्णिया जिले की सभी विधानसभा सीटों के साथ ही कोसी-सीमांचल के अन्य जिलों में भी समान लोकप्रियता रखते हैं.

यादव और मुस्लिम वोट पर मजबूत पकड़ रखने वाले पप्पू यादव की इमेज पिछले कुछ वर्षों में एक जुझारू नेता की बनी है, जो आगामी चुनाव में कांग्रेस के काम आ सकती है. शायद यही वजह है कि निर्दलीय सांसद होने के बावजूद पप्पू को दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व के साथ बिहार कांग्रेस के नेताओं की बैठक में भी बुलाया गया था.

तारिक अनवर से कांग्रेस को उम्मीद

तारिक अनवर कटिहार से सांसद हैं. 1970 के दशक में कांग्रेस का दामन थामकर अपने सियासी सफर का आगाज करने वाले तारिक अनवर ने सोनिया गांधी को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने का विरोध किया था. सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठा तारिक अनवर ने कांग्रेस छोड़ दी और शरद पवार, पीए संगमा के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के संस्थापकों में से एक थे.

तारिक अनवर साल 2018 में कांग्रेस में लौट आए थे. सीमांचल की मुस्लिम आबादी के साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग में भी तारिक अनवर मजबूत प्रभाव रखते हैं. उन्होंने कटिहार स्थित अपने घर का नाम ही सद्भावना भवन रखा हुआ है. हर जाति-वर्ग के बीच उनकी सक्रियता कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव में अहम साबित हो सकती है. तारिक का प्रभाव कटिहार के बाहर सीमांचल और बिहार के अन्य जिलों के मुस्लिम मतदाताओं के बीच भी ठीक-ठाक माना जाता है.

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बीमा भारती पर टिकीं आरजेडी की उम्मीदें

बीमा भारती 2020 के बिहार चुनाव में पूर्णिया की रुपौली सीट से जेडीयू के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुई थीं. 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वह जेडीयू छोड़ आरजेडी में शामिल हो गई थीं. बीमा भारती को लालू यादव ने लोकसभा चुनाव में पूर्णिया सीट से उम्मीदवार भी बनाया, लेकिन वह हार गई थीं.

यह भी पढ़ें: ओवैसी को क्यों एंट्री देने को तैयार नहीं आरजेडी-कांग्रेस? सीमांचल में महागठबंधन का प्लान क्या है

लोकसभा चुनाव में हार के बावजूद आरजेडी ने बीमा को प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिया था. चार बार की पूर्व विधायक बीमा बिहार सरकार में मंत्री भी रही हैं. लोकसभा चुनाव और इसके बाद रुपौली विधानसभा सीट के उपचुनाव में बीमा को हार मिली, लेकिन आरजेडी को उम्मीद है कि उनके होने से सीमांचल, खासकर पूर्णिया में पार्टी की जड़ें मजबूत होंगी.

सरफराज आलम क्या वापस ले पाएंगे तस्लीमुद्दीन की विरासत

अररिया के पूर्व सांसद सरफराज आलम कद्दावर नेता रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री तस्लीमुद्दीन के पुत्र हैं, जिनका 2017 में निधन हो गया था. सरफराज आलम 1996 में जोकीहाट विधानसभा सीट से पहली बार विधायक निर्वाचित हुए थे और बिहार सरकार में मंत्री बने थे. साल 2000, 2010 और 2015 में भी वह इसी सीट से विधायक रहे. तस्लीमुद्दीन के निधन से रिक्त हुई अररिया लोकसभा सीट के लिए 2018 में उपचुनाव हुए और आरजेडी ने सरफराज को मैदान में उतारा.

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यह भी पढ़ें: 'कांग्रेस को आंख दिखा रहे, सीमांचल में जीत नहीं सके...', बिहार में सीट बंटवारे पर तेजस्वी पर भड़के पप्पू यादव

सरफराज उपचुनाव जीत गए, लेकिन 2019 में उन्हें हार मिली. सरफराज के सांसद निर्वाचित होने के बाद उनके छोटे भाई शाहनवाज जोकीहाट से विधायक बने. 2020 के बिहार चुनाव में सरफराज को अपने ही छोटे भाई से मात मिली थी. वह इस बार भी जोकीहाट में सक्रिय हैं और सीमांचल विकास मोर्चा के बैनर तले अपने पिता की विरासत वापस पाने के लिए सक्रिय हैं. सरफराज आलम लगातार दो चुनाव हार चुके हैं, लेकिन क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बनाए रखी.

सीमांचल क्षेत्र में कुल चार जिले, 24 सीटें

सीमांचल क्षेत्र में चार जिले आते हैं- पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज. इन चार जिलों में कुल मिलाकर 24 विधानसभा सीटें हैं. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में आठ सीटें जीतकर बीजेपी सीमांचल की सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी. तब कांग्रेस और एआईएमआईएम को पांच-पांच, जेडीयू को दो और आरजेडी-लेफ्ट को एक-एक सीटों पर जीत मिली थी.

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