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राहुल गांधी का बैक टू बैक बिहार दौरा, विधानसभा चुनाव को लेकर आखिर क्या है कांग्रेस का प्लान?

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस एक्टिव मोड में है. राहुल गांधी बैक टू बैक बिहार दौरा र रहे हैं. बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर आखिर ग्रैंड ओल्ड पार्टी का प्लान क्या है?

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राहुल गांधी (फाइल फोटो)
राहुल गांधी (फाइल फोटो)

बिहार विधानसभा चुनाव में तकरीबन पांच महीने का वक्त बचा है और सियासी हलचल तेज हो गई है. राजनीतिक दल बिहार चुनाव के लिए अपनी चुनावी तैयारियों को रफ्तार देने जुटे हुए हैं. सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी महागठबंधन के घटक दल मैदान में उतर आए हैं. पिछले चुनाव में महागठबंधन के मामूली अंतर से सत्ता की जंग में पीछे रह जाने का कसूरवार कांग्रेस के खराब स्ट्राइक रेट को ठहराया गया था. इस बार अलर्ट नजर आ रही कांग्रेस ने जिस स्तर पर अपनी चुनावी तैयारी शुरू की है, वह राजनीतिक पंडितों को चौंका रहा है.

बिहार चुनाव को लेकर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी खुद एक्टिव मोड में हैं और कांग्रेस को लीड करते नजर आ रहे हैं. पिछले पांच महीनों की ही बात करें तो राहुल गांधी चार दफे बिहार का दौरा कर चुके हैं. कांग्रेस के सूत्रों की मानें तो आने वाले कुछ महीनों में राहुल गांधी के और भी दौरे हो सकते हैं. राहुल गांधी अलग-अलग जिलों का दौरा कर सकते हैं. बिहार को लेकर कांग्रेस की तैयारियों का ब्लूप्रिंट विरोधी ही नहीं, सहयोगी दलों को भी चौंका रहा है. चुनावी मोर्चे पर अमूमन सुस्त मानी जाने वाली ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने बिहार में अभी से ही अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है. कांग्रेस का टार्गेट बिहार में अपना जनाधार बढ़ाना है, जिसका विधानसभा चुनाव के बाद अगले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को मिल सके.

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कांग्रेस का चुनावी ब्लूप्रिंट

कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी शायद यह बात शायद समझ चुके हैं कि बिहार में अपनी स्थिति को सुधारे बगैर केंद्र की सत्ता तक पहुंच पाना मुश्किल है. यही वजह है कि बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अभी तारीखों का ऐलान भी नहीं हुआ है और कांग्रेस चुनावी तैयारियों में जुट गई है. कांग्रेस बिहार चुनाव में बेहतर प्रदर्शन का टारगेट सेट कर आगे बढ़ रही है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रहती है, तो इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा जिसका लाभ पार्टी को 2029 के लोकसभा चुनाव में भी मिल सकता है.

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बिहार विधानसभा की हर सीट का हर पहलू, हर विवरण यहां पढ़ें

कांग्रेस के गठबंधन राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के पास मुस्लिम-यादव वोट का समीकरण है. इसे देखते हुए कांग्रेस अब दलित, पिछड़ा और अति पिछड़ा तबके को अपने साथ जोड़ने की कोशिश में जुट गई है. इन वर्गों के युवाओं पर कांग्रेस की खास नजर है. यही वजह है कि राहुल गांधी जब कभी भी बिहार आए हैं, देश में जाति जनगणना की मांग उठाई है. केंद्र सरकार ने जब यह ऐलान कर दिया कि देश में अगली जनगणना जाति जनगणना होगी, तब कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी की रणनीति इसे अपनी जीत के तौर पर पेश करने की रही है.

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राहुल गांधी के बिहार दौरे में दलित समाज के साथ संवाद और युवाओं के साथ बातचीत वाले कार्यक्रम लगभग हर बार रखे जाते हैं. कांग्रेस को शायद यह लग रहा है कि पार्टी अगर इन वर्गों को अपने साथ जोड़ने में सफल रही, तो वह बिहार में पहले से बेहतर प्रदर्शन कर सकती है. अगर इन वर्गों में कांग्रेस का जनाधार बढ़ता है, तो इसका नुकसान बीजेपी और एनडीए को हो सकता है. राहुल गांधी की बिहार में इतनी सक्रियता के पीछे लोकसभा चुनाव के लिए संभावित फॉर्मूला विधानसभा चुनाव में टेस्ट करने की रणनीति को भी वजह बताया जा रहा है.

गठबंधन में कद बढ़ाने की चुनौती

कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती महागठबंधन में अपने गठबंधन में कद को लेकर भी है. राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद बिहार के महागठबंधन में कांग्रेस को हमेशा आरजेडी का छोटा भाई बनकर ही चलना पड़ा है. कांग्रेस और आरजेडी का गठबंधन काफी पुराना है. दोनों पार्टियों ने कई चुनाव गठबंधन, कुछ चुनाव एकला चलो की राह पर लड़े हैं. हालांकि, दोनों पार्टियों का अलग-अलग चुनाव लड़ने का अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा है. अगला विधानसभा चुनाव आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन में लड़ेंगे, ये बात भी तय है लेकिन सीट शेयरिंग में पंजा निशान वाली पार्टी लालटेन की रोशनी में गुम होने, दबाव में आने को तैयार नहीं है. कांग्रेस ने दो टूक कह दिया है कि हर हाल में वह 2020 के विधानसभा चुनाव की तरह 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

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महागठबंधन की ड्राइविंग सीट पर बैठी आरजेडी वाम दलों को ज्यादा तरजीह देने के मूड में है, लेकिन कांग्रेस पीछे हटने को तैयार नहीं. कांग्रेस ने पिछले दिनों बिहार प्रदेश नेतृत्व में बदलाव कर इस बात के संकेत भी दे दिए. कांग्रेस ने लालू परिवार के करीबी माने जाने वाले अखिलेश प्रसाद सिंह की जगह दलित नेता राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया था, जो विधायक भी हैं. पार्टी ने राहुल गांधी के करीबी कृष्णा अल्लावरु को बिहार कांग्रेस का प्रभारी बनाया है. कृष्णा अल्लावरु महागठबंधन में कांग्रेस को जिस सधे अंदाज में लेकर बढ़ रहे हैं, उससे तेजस्वी यादव की परेशानियां भी बढ़ गई हैं.

तेजस्वी की CM उम्मीदवारी पर नहीं खोले पत्ते

कांग्रेस ने महागठबंधन के सीएम कैंडिडेट के तौर पर तेजस्वी यादव के नाम को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. राजनीति के जानकार मानते हैं कि सीएम फेस के लिए तेजस्वी के नाम पर समर्थन का ऐलान नहीं करना कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है. कांग्रेस का थिंक टैंक शायद यह बात समझ रहा है कि अगर तेजस्वी की सीएम उम्मीदवारी का ऐलान हुआ, अति पिछड़ा और दलित वर्ग के बीच अपना बेस मजबूत करने की पार्टी की मुहिम को नुकसान पहुंच सकता है. ऐसा हुआ तो इससे बार्गेनिंग पावर भी कम हो जाएगी और सीट शेयरिंग की मेज पर आरजेडी से अपनी बात मनवाने के लिए उसकी कोई कमजोर नस कांग्रेस के पास नहीं रह जाएगी.

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कांग्रेस का फोकस युवा मतदाताओं पर है और तेजस्वी यादव की यूएसपी भी यही वोटर वर्ग है. बिहार में 18 से 39 आयु वर्ग के मतदाताओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. ऐसे में माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में युवाओं का रुख बिहार की सत्ता का निर्धारण करने वाला होगा. युवा वोटों का गणित ही है कि राहुल गांधी बिहार आकर जातिगत जनगणना की बात तो करते ही रहे, रोजगार के सवाल को भी मजबूती से उठाते आए. कांग्रेस का मकसद यहां जातीय राजनीति से ऊपर उठकर युवा वर्ग का समर्थन हासिल करने की है.

बिहार में कांग्रेस का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड

बिहार में कांग्रेस के पिछले ट्रैक रिकॉर्ड की बात करें तो दो विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन मिलाजुला रहा है. 2015 के बिहार चुनाव में कांग्रेस 6.8 फीसदी वोट शेयर के साथ 27 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रही. वहीं, 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 9.6 फीसदी जा पहुंचा, लेकिन सीटें घटकर 19 रह गईं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बिहार में केवल एक सीट पर जीत मिली. तब उसे 7.70 फीसदी वोट मिले थे. 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 9.20 फीसदी वोट शेयर के साथ तीन सीटों पर जीती और एक सीट से पार्टी के बागी पप्पू यादव बतौर निर्दलीय जीते.

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कांग्रेस पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन को आधार बनाकर महागठबंधन में पहले से ज्यादा सीटों के लिए दावेदारी ठोक रही है. कांग्रेस का दावा है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में उसे 70 सीटें मिली थीं और महागठबंधन में इससे कम सीटों पर इस बार भी उसकी दावेदारी किसी हाल में कम नहीं होगी. राहुल गांधी का लगातार बिहार दौरा यह बता रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव को उन्होंने भी चुनौती के तौर पर लिया है और कांग्रेस अब बिहार में आर-पर के मूड में है. चुनावी तैयारी में वह अपने सहयोगी दलों से आगे खड़ी नजर आ रही है, साथ ही साथ अब उसने चुनाव के लिहाज से जातीय समीकरण साधने की कवायद भी शुरू कर दी है. अब देखना होगा कि कांग्रेस के लिए राहुल का यह नया दांव कितना रंग लाता है?

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