बिहार विधानसभा चुनाव का भले ही औपचारिक ऐलान ना हुआ हो, लेकिन राजनीतिक दल अपने-अपने सियासी एजेंडे सेट करने में जुट गए हैं. 20 सालों से सत्ता से बाहर आरजेडी की वापसी के लिए तेजस्वी यादव हरसंभव कोशिश में जुटे हैं, लेकिन उनके 'परम मित्र' मुकेश सहनी का सियासी दांव महागठबंधन की टेंशन को बढ़ा दिया है.
मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) महागठबंधन का हिस्सा है. मुकेश सहनी के सुर और अंदाज महागठबंधन में बगावती नहीं हैं, लेकिन उनकी अपेक्षाएं पूरी करना तेजस्वी यादव के लिए आसान भी नहीं. सहनी ने डिप्टी सीएम पद के साथ-साथ सीटों की डिमांड रख दी है. महागठबंधन में अभी तक सीट शेयरिंग का फॉर्मूला सामने नहीं आया है, लेकिन मुकेश सहनी ने सीट का अपना पहला एजेंडा सार्वजनिक कर दिया है.
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मुकेश सहनी ने सोमवार को ऐलान किया है कि विकासशील इंसान पार्टी 2025 में 60 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. शेष सभी सीटों पर हमारे सहयोगी दलों के प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने यह भी कहा है कि यह वीआईपी का पहला एजेंडा है. मुकेश सहनी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बकायदा से एक पोस्टर जारी करके ऐलान किया है कि उनकी पार्टी 60 सीट पर चुनाव लड़ेगी.
मुकेश सहनी के दांव से महागठबंधन में टेंशन
मुकेश सहनी ने सीट बंटवारे से पहले जिस तरह से 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, उससे महागठबंधन में सियासी टेंशन बढ़ सकती है. महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम और सीपीआई (एमएल) जैसे पुरान सहयोगी भी हैं. पिछली बार इन दलों ने जितनी सीटों पर लड़े थे, उसमें कोई भी कमी करने को तैयार नहीं दिख रहा. ऐसे में तेजस्वी के सामने पुराने सहयोगी दलों को साधे रखते हुए नए साथी बनी मुकेश सहनी की वीआईपी और पशुपति पारस की एलजेपी है.
बिहार चुनाव की विस्तृत कवरेज के लिए यहां क्लिक करें
बिहार विधानसभा की हर सीट का हर पहलू, हर विवरण यहां पढ़ें
मुकेश सहनी की वीाईपी और पशुपति कुमार पारस की आरएलजेपी महागठबंधन में पहली बार शामिल हुए हैं. उनके लिए सीटों का बंदोबस्त दूसरे दलों की सीटों में कटौती किए बगैर संभव ही नहीं. ऐसे में तेजस्वी यादव के लिए मुकेश सहनी को 60 क्या 10-15 सीटों देने का बंदोबस्त भी मुश्किल हो रहा है. रही बात वीआईपी के परफार्मेंस की तो यह साफ है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मिलीं 3 सीटों पर उनका परफार्मेंस कैसा रहा था.
महागठबंधन में घटकदलों की सीटों की डिमांड के चलते ही अभी तक सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय नहीं हो सका है. पिछले तीन महीने से सीट बंटवारे की मशक्कत की जा रही है, लेकिन सहमति नहीं बन पा रही है. ऐसे में मुकेश सहनी का 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का एजेंडा बनाना महागठबंधन के लिए सियासी टेंशन बढ़ाने से कम नहीं है.
मुकेश सहनी की इच्छा कैसे होगी पूरी?
मुकेश सहनी उसी उसी तर्ज पर अपना दावा कर रहे हैं, जैसे आरजेडी नेता तेजस्वी करते हैं. तेजस्वी यादव बिहार चुनाव में महागठबंधन का स्वघोषित सीएम चेहरा घोषित कर रखा हैं तो मुकेश सहनी भी उनकी तरह ही अपने को डिप्टी सीएम पद का दावेदार बता रहे हैं. सहनी ने लगातार कह रहे कि अगर वो डिप्टी सीएम नहीं बने तो तेजस्वी यादव भी सीएम नहीं बनेंगे.
मुकेश सहनी का एक तरह महागठबंधन के लिए चेतावनी है जबकि उन्हें साथ तेजस्वी यादव लेकर आए हैं. तेजस्वी ने 2024 में उन्हें अपने साथ हेलीकॉप्टर में लेकर बिहार में खूब प्रचार किया था. तेजस्वी-सहनी की सियासी केमिस्ट्री बिहार के लोगों ने देखा था. इसके बाद भी सहनी की 60 सीट की मांग से लेकर डिप्टी सीएम पद की ख्वाहिश महागठबंधन के लिए चिता का सबब बन रही है. इस तहह महागठबंधन में भले ही मुकेश सहनी के सुर और अंदाज बगावती नहीं हैं, लेकिन उनकी अपेक्षाएं पूरी करना महागठबंधन के लिए आसान भी नहीं.
सहनी क्या फिर महागठबंधन को देंगे गच्चा
मुकेश सहनी एक तरफ अपना एजेंडा सेट करने में जुटे हैं तो दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ तालमेल भी बनाए रखना चाहते हैं. चुनाव को बॉयकॉट करने के फैसला तेजस्वी ने किया तो सहनी ने कहा था कि हमारे छोटे भाई तेजस्वी यादव महागठबंधन के कोऑर्डिनेटर कमेटी के अध्यक्ष हैं. वे जो निर्णय लेंगे, हम उसके साथ जाएंगे. इसके बाद भी सहनी का महागठबंधन के सीट बंटवारे से पहले 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान करने का फैसला महगठबंधन को कशमकश में डाल रहा है.
मुकेश सहनी के दिल में बिहार के डिप्टी सीएम बनने की इच्छा लंबे समय से पाल रखी है. 2020 में भी उन्होंने महागठबंधन में 25 सीटें और डिप्टी सीएम का पद मांगा था. जब उन्हें पता चला कि उनकी ये इच्छा पूरी नहीं होगी तो प्रेस कॉफ्रेंस बीच में छोड़कर महागठबंधन से नाता तोड़ लिया था. इसके बाद एनडीए का हिस्सा बने थे और बीजेपी ने उन्हें अपने कोटे से 11 सीटें दी थी.
2020 में 11 सीटों पर लड़ कर वीआईपी ने 2020 में 4 सीटें जीती थीं और मकेश सहनी एमएलसी बने थे. दो साल तक नीतीश सरकार में मंत्री रहने के बाद उनके चारो विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे. इसके बाद मुकेश सहनी अलग-थलग पड़ गए थे, लेकिन 2024 के चुनाव से पहले तेजस्वी यादव ने उन्हें महागठबंधन में लेकर आए थे. पांच साल बाद मुकेश सहनी फिर उसी नक्शेकदम पर अपनी मांग कर रहे हैं. इस बार उनकी डिमांड पिछले चुनाव से भी ज्यादा है, जिसे पूरा करना महागठबंधन के लिए आसान नहीं है. ऐसे में अगर उनकी मन की मुराद पूरी नहीं हुई तो क्या फिर महागठबंधन से नाता तोड़ेंगे?