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22 साल पुराना वोटर लिस्ट अपलोड... बिहार में वोटर लिस्ट जांच पर क्यों बवाल बढ़ रहा, क्या हैं आपत्तियां

चुनाव आयोग बिहार में वोटर लिस्ट का सघन पुनरीक्षण और सत्यापन करने के लिए अभियान चला रहा है. चुनाव आयोग की मंशा पर विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं. आयोग ने इसके लिए 22 साल पुरानी वोटर लिस्ट अपलोड की है. विपक्ष की आपत्तियां क्या हैं?

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बिहार में वोटर लिस्ट का वेरिफिकेशन (फाइल फोटो)
बिहार में वोटर लिस्ट का वेरिफिकेशन (फाइल फोटो)

महाराष्ट्र चुनाव की वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के आरोप लगा लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव आयोग पर हमलावर हैं. राहुल गांधी ने पिछले दिनों अखबार में लेख लिखकर बिहार चुनाव में भी इसी तरह की धांधली की आशंका जताई थी. बिहार चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के सघन पुनरीक्षण का अभियान शुरू कर दिया.

चुनाव आयोग के इस अभियान से बिहार में बड़ी राजनीतिक बहस छिड़ गई है. बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठाए हैं. सवाल पुनरीक्षण के लिए बेस लिस्ट के तौर पर 2003 की वोटर लिस्ट को मानक बनाए जाने को लेकर भी उठ रहे हैं.

चुनाव आयोग ने 22 साल पुरानी वोटर लिस्ट को बेस मानने, अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. वोटर लिस्ट के सघन पुनरीक्षण अभियान पर सियासी घमासान शुरू हुआ, तो चुनाव आयोग ने उठते सवालों के जवाब भी दिए. आयोग ने इस अभियान के पीछे अपनी मंशा भी साफ कर दी है.

चुनाव आयोग का प्लान क्या?

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चुनाव आयोग ने सघन पुनरीक्षण को निरंतर चलने वाली प्रक्रिया बताया है. आयोग ने कहा है कि यह पुनरीक्षण और सत्यापन इसलिए किया जा रहा है, जिससे योग्य लोग ही मतदाता सूची में जगह पा सकें. यह पिछले 75 वर्षों से होता आ रहा है. 2003 की मतदाता सूची अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने को लेकर उठते सवालों पर भी आयोग ने अपना रुख साफ किया है. चुनाव आयोग ने कहा है कि बिहार में आखिरी बार मतदाता सूची का पुनरीक्षण और सत्यापन 2003 में किया गया था

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4.9 करोड़ मतदाताओं को नहीं देना होगा कोई दस्तावेज

बिहार के करीब 4.96 करोड़ मतदाताओं को पुनरीक्षण और सत्यापन के दौरान को दस्तावेज नहीं देना होगा. 2003 की जो मतदाता सूची आयोग की वेबसाइट पर अपलोड की गई है, उसमें 4 करोड़ 96 लाख मतदाताओं के नाम हैं. चुनाव आयोग ने  एक जनवरी 2003 की क्वालिफिकेशन डेट वाले  मतदाताओं को पुनरीक्षण और सत्यापन के समय कोई दस्तावेज नहीं देना है.

चुनाव आयोग ने यह भी कहा है कि अगर किसी व्यक्ति का नाम 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं है, तो वह भी अपने माता-पिता के लिए किसी अन्य दस्तावेज की बजाय उस मतदाता सूची के संबंधित अंश का उपयोग कर सकता है. वही पर्याप्त होगा. 

क्या कहता है लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 21 (2) (क) और रजिस्ट्रीकरण नियम 1960 के नियम 25 के मुताबिक वोटर लिस्ट का पुनरीक्षण हर चुनाव से पहले अनिवार्य है. चुनाव आयोग ने उठते सवालों को लेकर अपने जवाब में भी इन नियमों का उल्लेख करते हुए कहा है कि वर्षों से वार्षिक और संक्षिप्त पुनरीक्षण के साथ गहन पुनरीक्षण कराया जाता रहा है.

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आयोग ने यह तर्क भी दिया है कि निवास में परिवर्तन के साथ ही मृत्यु की स्थिति में नाम हटाने, 18 साल से अधिक उम्र के लोगों के नाम जोड़े जाने के कारण मतदाता सूची में बदलाव होते रहता है और ऐसे में पुनरीक्षण, सत्यापन जरूरी हो जाता है.

विपक्ष को गहन पुनरीक्षण, सत्यापन से आपत्तियां क्या

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने बिहार चुनाव से पहले गहन पुनरीक्षण और सत्यापन कर नई वोटर लिस्ट तैयार किए जाने को लोकतंत्र पर हमला बताया. उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा था कि इतनी बड़ी प्रक्रिया 22 साल बाद इतनी जल्दी क्यों शुरू की जा रही है? 2003 में जब गहन पुनरीक्षण कर नई वोटर लिस्ट तैयार की गई थी, तब इस प्रक्रिया में पूरे दो साल लग गए थे.

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तेजस्वी ने कहा कि अब चुनाव आयोग का 25 दिन में प्रक्रिया पूरी करने की बात कहना संदेह उत्पन्न कर रहा है. उन्होंने इस पूरी कवायद को गरीब और वंचित-शोषित मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाने की साजिश बताया और सवाल किया कि यह प्रक्रिया केवल बिहार में ही क्यों? सूबे के करीब 60 फीसदी लोगों को अब अपनी नागरिकता साबित करनी पड़ेगी.

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