2024 में बांग्लादेश में हुए हिंसक आंदोलन के चलते शेख हसीना को सत्ता ही नहीं, बल्कि देश छोड़ना पड़ गया था. इसके बाद से कटरपंथियों के निशाने पर अल्पसंख्यक खासकर हिंदू समाज के लोग हैं. इंकलाब मंच के नेता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद कट्टरपंथी सड़कों पर हैं. प्रदर्शनकारियों ने दीप चंद्र दास नाम के हिंदू युवक की बहुत निर्ममता से पीट-पीटकर हत्या कर दी, जिस लेकर भारत के कई शहरों में हिंदू संगठन लगातार विरोध प्रदर्शन कर अपने गुस्से का इजहार कर रहे हैं.
बांग्लादेश में हिंदू की हत्या के खिलाफ दिल्ली से लेकर कोलकाता के बांग्लादेशी दूतावासों का घेराव विश्व हिंदू परिषद और हिंदू संगठनों ने किया. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बांग्लादेश के हालात का पश्चिम बंगाल और असम की राजनीति पर भी असर पड़ेगा?
बांग्लादेश की हिंसा का इम्पैक्ट क्या होगा?
बांग्लादेश में हिंसा ऐसे समय हो रही है जब पश्चिम बंगाल और असम में विधानसभा चुनाव के लिए सियासी सरगर्मी तेज है. माना जा रहा है कि बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हालिया हिंसा का असर पश्चिम बंगाल और असम की राजनीति पर काफी गहरा और सीधा पड़ सकता है.
असम और पश्चिम बंगाल दोनों राज्यों की सीमाएं बांग्लादेश से लगती हैं, इसलिए वहां होने वाली कोई भी उथल-पुथल यहां के सामाजिक और चुनावी समीकरणों को तुरंत प्रभावित कर सकती है. असम और बंगाल में इसे जनसांख्यिकीय (demographic) बदलाव और अवैध घुसपैठ के पुराने मुद्दे से जोड़कर देखा जा रहा है, जो चुनाव में सियासी असर डाल सकता है. हेमंत बिस्वा सरमा लगातार कह रह हैं कि घुसपैठियों की शिनाख्त और उन्हें बाहर निकालकर ही दम लेंगे.
बंगाल और असम में कितना डालेगी असर?
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी की सरकार है जबकि असम में हेमंत बिस्वा सरमा की अगुवाई में बीजेपी की सरकार है. असम में बीजेपी सत्ता की हैट्रिक लगाने की कवायद में है, जिसके लिए हेमंत बिस्वा खुलकर हिंदुत्व का दांव खेल रहे हैं. बंगाल में बीजेपी सत्ता में आने के लिए बेताब है, जिसके लिए धार्मिक ध्रुवीकरण का दांव खेला जा रहा है.
असम और बंगाल दोनों राज्यों में मुस्लिम समुदाय की आबादी 30 फीसदी के करीब है. दोनों राज्य की बांग्लादेश से सीमा लगने के चलते पहले से बीजेपी घुसपैठ का मुद्दा सेट करने में जुटी है. बांग्लादेश ही हिंसा बंगाल और असम में धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए सियासी उपजाऊ बन सकती है. बीजेपी ने आरोप लगाया कि इस मुद्दे पर ममता की चुप्पी बांग्लादेश की सड़कों पर हिंदू युवक दीपू की लिंचिंग को उनका मौन समर्थन दिखाती है.
बीजेपी इस मुद्दे को 'हिंदुओं के अस्तित्व के संकट' के रूप में पेश कर रही है. शुभेंदु अधिकारी जैसे बीजेपी नेता इसे बंगाल के भविष्य से जोड़ रहे हैं, और 'बंगाल को बांग्लादेश नहीं बनने देंगे' जैसी बातें कर रहे हैं. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बांग्लादेश की स्थिति को 'गंभीर खतरा' बताया है. घुसपैठियों को लेकर हेमंत अभियान चलाए हुए हैं.
घुसपैठ और नागरिकता (CAA-NRC) का मुद्दा
बांग्लादेश को कट्टरपंथियों ने फिर बारूद के ढेर पर बैठा दिया है . बांग्लादेश और भारत की 4 हजार किलोमीटर से अधिक लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा साझा मिलती हैं . दोनों मुल्कों के बीच कई प्वाइंट ऐसे हैं–जहां तय करना मुश्किल होता है कि कदम भारतीय सीमा में हैं या फिर बांग्लादेश की सीमा में. बांग्लादेश से सटे पश्चिम बंगाल और असम में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. बांग्लादेशी हिंदुओं पर अत्याचार की खबरें मतुआ समुदाय और अन्य शरणार्थी समूहों के बीच CAA के समर्थन को और मजबूत कर रही हैं.
हिंदुओं पर होने वाली हिंसा के कारण बांग्लादेश से शरणार्थियों के भारत आने की संभावना बढ़ गई है. इससे CAA (नागरिकता संशोधन अधिनियम) की प्रासंगिकता फिर से बढ़ गई है. बीजेपी चुनाव में हिंदुओं को संरक्षण देने के वादे के रूप में इस्तेमाल कर सकती. असम में 'घुसपैठ' का डर स्थानीय अस्मिता के नाम पर फिर से चुनावी चर्चा के केंद्र में है. बांग्लादेश की स्थिति को बंगाल के भविष्य के लिए चेतावनी के रूप में पेश करना. टीएमी प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए यह संतुलन बनाने की चुनौती है.
हिंसा से धार्मिक धुर्वीकरण की बिछेगी बिसात
बांग्लादेश की हिंसा से धार्मिक ध्रुवीकरण की बिसात न केवल बिछ चुकी है, बल्कि 2026 के विधानसभा चुनाव के लिए ये सबसे बड़ा राजनीतिक हथियार के रूप में सियासी दल इस्तेमाल कर सकते हैं. 2024 में बांग्लादेश में हुई हिंसा के बाद सीएम योगी ने कटोगे तो बटोगे का नारा दिया था. सीएम योगी के इस नारे को आरएसएस का भी समर्थन हासिल था. हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में इस नारे की गूंज सुनाई पड़ी थी.
बांग्लेदाश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही लगातार हिंसा ने बंगाल और असम की राजनीति में एक 'इमोशनल' और 'सर्वाइवल' (अस्तित्व का) मोड़ ला दिया है. सीएम योगी ने इस बार भी यूपी की विधानसभा में दीप चंद्र दास का मुद्दा उठाकर विपक्षी दलों पर निशाना साधा था. ऐसे में योगी आदित्यनाथ असम और बंगाल चुनाव में भी इसे धार देते नजर आएंगे. .
'बांग्लादेश' बनाम 'पश्चिम बंगाल' का नैरेटिव
बीजेपी इस समय "आज का बांग्लादेश, कल का बंगाल" का नैरेटिव बहुत आक्रामक तरीके से चला रही है. शुभेंदु अधिकारी और बीजेपी के अन्य नेता बांग्लादेश में इस्कॉन (ISKCON) और अन्य हिंदू संगठनों पर हुए हमलों का उदाहरण देकर यह संदेश दे रहे हैं कि अगर बंगाल में सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ, तो यहां भी वही स्थिति होगी. बीजेपी का आरोप है कि ममता बनर्जी की सरकार बांग्लादेशी घुसपैठियों को संरक्षण दे रही है, जिससे बंगाल की जनसांख्यिकी (Demography) बदल रही है.
ध्रुवीकरण केवल हिंदुओं के पक्ष में नहीं, बल्कि मुस्लिम राजनीति में भी हलचल पैदा कर रहा है. टीएमसी से निकाले गए नेता हुमायूं कबीर ने अपनी नई पार्टी 'जनता उन्नयन पार्टी' बनाई है और मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद बनाने का ऐलान कर पहले ही सियासी माहौल बना दिया है. यह सीधे तौर पर अल्पसंख्यक वोटों को एकजुट करने की कोशिश है, जिससे टीएमसी के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लग सकती है और सांप्रदायिक तनाव बढ़ने की संभावना बनी रहती है.
बांग्लादेश की हिंसा के मुद्दे पर कि हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर विश्व हिंदू परिषद ने भी धरना प्रदर्शन किया और सरकार से बांग्लादेश के हिंदुओं की सुरक्षा की मांग की.