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तारेक फतह का निधन: PAK से की पढ़ाई, हिन्दुस्तान से किया प्यार, ऐसा रहा सफर

तारेक फतह इकलौते ऐसे पाकिस्तानी के तौर पर इत‍िहास में दर्ज हो गए हैं जिसने हमेशा हिन्दुस्तान से मुहब्बत की. खुद को हिन्दुस्तानी माना. हिन्दुस्तानी भी हमेशा खुले दिल से उन पर प्यार लुटाते रहे. उनके निधन की खबर ने एक बड़े तबके तो गमगीन कर दिया है. आइए- एक विद्वान के तौर पहचान बनाने वाले तारेक फतह की श‍िक्षा और संघर्ष के बारे में जानते हैं.

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Tarek Fateh (Photo: Facebook)
Tarek Fateh (Photo: Facebook)

तारेक फतह ने अपने ब्लॉग में अपना परिचय लिखा, कि मैं एक भारतीय हूं जो पाकिस्तान में पैदा हुआ है. मैं सलमान रुश्दी के बहुत सारे 'मिडनाइट चिल्ड्रेन' में से एक हूं जिसे एक महान सभ्यता के पालने से उठा कर स्थाई शरणार्थी बना दिया गया. मैं इस बात का खुद गवाह हूं कि किस तरह उनकी उम्मीदों के सपनों को नाकामयाबी के दु:स्वप्न में बदल दिया गया. 

खुद को कहते थे हिंदुस्तानी 
भारत पाकिस्तान बंटवारे में पाकिस्तान में विस्थापित हुए तारेक हमेशा को खुद को हिन्दुस्तानी मानते रहे. उन्हें अपने मुल्क से कभी इतना प्यार मिला भी नहीं, जितना हिन्दुस्तान ने उन्हें दिया. सोशल मीडिया में भी उनके फॉलोअर्स में हिन्दुस्तानियों की संख्या हमेशा ज्यादा रही. कट्टरता का विरोध करने वाले तारेक का जन्म 20 नवंबर, 1949 को पाकिस्तान में हुअ था. तारेक फतह बचपन से कुशाग्र बुद्ध‍ि के था. अपनी शुरुआती पढ़ाई के बाद उन्होंने कराची विश्वविद्यालय से बायोकेमेस्ट्री की पढ़ाई की. 

कहां से की पढ़ाई-लिखाई 
उन्हें विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए स्कॉलरश‍िप (वज़ीफ़ा) दी गई थी. अपनी पढ़ाई के दौरान ही उनकी मुलाकात एक शिया समुदाय से ताल्लुक रखने वाली नरगिस तपाल से हुई जिनसे उन्होंने चार साल बाद शादी कर ली. उन्हें इसका भी विरोध सहना पड़ा. उन्हें पढ़ने लिखने का बहुत शौक था, यही शौक उन्हें जर्नल‍िज्म में ले आया. साल 1970 में पढ़ाई के दौरान ही उनकी कराची के अखबार 'सन' में नौकरी लग गई. पढ़ाई पूरी करने के बाद ही वो पाकिस्तान टेलीविजन में प्रोड्यूसर हो गए. 

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2 बार गए जेल
यही वो दौर था जब पाकिस्तान की सैनिक सरकार ने उन्हें दो बार जेल भेजा. यह विरोध प्रकट करने के कारण था. फिर साल 1978 में उन्होंने पाकिस्तान छोड़ दिया और सऊदी अरब चले गए. यहां उन्होंने दस सालों तक एक एडवरटाइज़िंग अधिकारी के रूप में काम किया. फिर साल 1987 में वो वहां से कनाडा जा कर टोरंटो के पास एजेक्स शहर में बस गए. शुरू में वो और उनकी पत्नी मिल कर वहां एक ड्राइक्लीनिंग कंपनी चलाते थे. इसके अलावा खाली समय मिलता तो वो सीटीएस टेलीविजन पर मुस्लिम क्रॉनिकल कार्यक्रम भी किया करते थे.

बीबीसी की एक खबर के मुताबिक तारेक फतह के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि जब वो महज दस महीने के थे तो उनके दोनों पैरों के ऊपर से एक कार गुजर गई थी. वो निशान हमेशा उनके पैरों पर रहे. इसके बाद तीन साल की उम्र में वो अपने घर के ही स्वीमिंग पूल में डूबते डूबते बचे थे और उन्हें उनके पश्तून ड्राइवर ने बचाया था. ये बातें उन्होंने कनाडा के एक अख़बार में लिखे लेख में कभी लिखी थीं.

 

 

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