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पुरानी दोस्ती से हत्या, रेप और दुश्मनी तक... जानें उन्नाव रेप कांड के पीछे की पूरी कहानी

प्रधानी चुनाव की रंजिश, नाबालिग से रेप, पिता की हत्या, सीबीआई जांच, उम्रकैद और अब कुलदीप सिंह सेंगर की जमानत पर 'सुप्रीम' रोक. यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में है. लेकिन नाबालिग पीड़िता के साथ हुए इस बेरहम कांड की कहानी का आगाज़ साल 2002 से होता है. पढ़ें, सेंगर और पीड़िता के परिवार की पूरी कहानी.

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कुलदीप सेंगर को हत्या और रेप के मामले में सजा मिली है (फोटो-ITG)
कुलदीप सेंगर को हत्या और रेप के मामले में सजा मिली है (फोटो-ITG)

Unnao Rape Case: उन्नाव रेप कांड सिर्फ एक जुर्म की कहानी नहीं, बल्कि सत्ता, दबंगई और सिस्टम की नाकामी से जुड़ी दास्तान है. जिस विधायक को कभी पीड़ित परिवार ने राजनीति में खड़ा किया, वही बाद में उनके लिए सबसे बड़ा ज़ालिम बन गया. प्रधानी चुनाव की रंजिश से शुरू हुआ यह टकराव रेप, हत्या, साजिश और गवाहों की मौत तक पहुंच गया. सालों तक चले इस मामले ने कानून, पुलिस और न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए. अब दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बाद यह केस एक बार फिर चर्चाओ में हैं.

उन्नाव रेप कांड की कहानी शुरू होती है साल 2002 में. गांव में तीन भाई रहा करते थे. पीड़ित लड़की के पिता, चाचा और ताऊ. तीनों भाई इलाके में दबंग के तौर पर जाने जाते थे. घर करीब होने की वजह से कुलदीप सिंह सेंगर से तीनों की अच्छी जान-पहचान थी. सेंगर का परिवार प्रधानी के चुनाव में उतरा करता था. जब पहली बार 2002 में कुलदीप सिंह सेंगर विधानसभा चुनाव लड़ रहा था, तब पीड़ित लड़की के पिता, चाचा और ताऊ ने भी उसे चुनाव जितवाने में मदद की. दरअसल, कुलदीप सिंह को भी तीनों भाई की जरूरत थी और तीनों भाईयों को भी कुलदीप सिंह की.

मगर पहली बार विधायक बनने के बाद कुलदीप सिंह सेंगर ने अचानक तीनों भाइयों से किनारा करना शुरू कर दिया. दरअसल, कुलदीप सिंह सेंगर का परिवार पहले से ही ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ता आया है. पीड़ित लड़की का चाचा भी ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ना चाहता था. जब कुलदीप सिंह सेंगर विधायक बन गया तो लड़की के चाचा ने सेंगर से उसे प्रधानी का चुनाव लडव़ाने के लिए कहा. मगर कुलदीप सिंह सेंगर प्रधानी भी अपने घर में रखना चाहता था. लिहाज़ा मुकदमों का हवाला देकर उसने लड़की के चाचा को प्रधानी का चुनाव लड़ने से रोक दिया और ख़ुद अपनी मां चुन्नी देवी को मैदान में उतार दिया.

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उधर, पीड़ित लड़की के परिवार और विधायक के परिवार के बीच एक तीसरा परिवार भी था. वो परिवार था उस वकील महेंद्र सिंह का जो खुद 28 जुलाई के सड़क हादसे में पीड़ित लड़की के साथ घायल हुए थे. दरअसल, कुलदीप सिंह सेंगर और वकील महेंद्र सिंह के परिवार के बीच प्रधानी के चुनाव को लेकर बरसों से अदावत रही है. क्योंकि कुलदीप सिंह के परिवार के सामने हमेशा महेंद्र सिंह का परिवार ही चुनाव लड़ा करता था. मगर इस परिवार की कभी खुल्लम-खुल्ला सेंगर के परिवार से दुश्मनी नहीं रही.

पीड़ित लड़की के चाचा ने कुलदीप सिंह सेंगर को सबक सिखाने के लिए वकील महेंद्र सिंह के खानदान की एक महिला को विधायक की मां के ख़िलाफ़ मैदान में उतार दिया और बस! इसी प्रधानी चुनाव के साथ शुरू होती है दुश्मनी की एक नई कहानी.

विधायक कुलदीप सिंह सेंगर अपनी ताकत के बूते पीड़ित परिवार को सबक सिखाने का फैसला करता है. इत्तेफाक से उसे पहला मौका प्रधानी के चुनाव के दौरान ही मिल जाता है. जब कुलदीप सिंह सेंगर का भाई अतुल सिंह और उसके पांच गुर्गे पीड़ित लड़की के चाचा से भिड़ जाते हैं. कमाल देखिए कि बाद में पुलिस को कुलदीप सिंह का भाई ही एक कट्टा और तीन गोलियां सौंपता है और कहता है कि ये लड़की के चाचा का है और इसस वो उसे मारना चाहता था. पुलिस कुलदीप सिंह के भाई के थमाए कट्टे, गोलियों और बयान के आधार पर चचा के खिलाफ हत्या की कोशिश का मामला दर्ज कर लेती है. मगर चाचा भाग जाता है.

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इस बीच दूसरा हादसा होता है. एक रोज़ लड़की के ताऊ को कुछ लोग पीट-पीट कर मार डालते हैं. कहा जाता है कि ताऊ किसी लड़की को बेचने जा रहा था. लोगों को पता चल गया और लोगों ने उसे पीट-पीट कर मार डाला. हालांकि लड़की के घर वालों का इल्ज़ाम था कि विधायक ने दुश्मनी निकालने के लिए अपने लोगों से ताऊ की हत्या करवा दी. इस मामले की जांच भी पुलिस ने कभी ढंग से नहीं की.

फिर आती है 4 जून 2017 की तारीख. पीड़ित लड़की अचानक उन्नाव के उसी माखी पुलिस स्टेशन में पहुंचती है. इस इलज़ाम के साथ कि वो अपने एक रिश्तेदार के साथ बीजेपी के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के घर रात करीब नौ बजे नौकरी मांगने गई थी. मगर विधायक ने अपने ही घर में उसकी अस्मत लूट ली. इधर लड़की इल्ज़ाम लगाती है और उसके एक हफ्ते के अंदर ही 11 जून को अचानक वो गायब हो जाती है. लड़की की मां 12 जून को फिर उसी थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाती है. रिपोर्ट लिखाने के हफ्ते भर बाद ही 20 जून को औरैया के एक गांव से पुलिस पीड़ित लड़की को बरामद कर लेती है.

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इसके बाद पुलिस लड़की का बयान तो दर्ज करती है. मगर रेप के लिए विधायक का नाम दर्ज नहीं करती. लिहाज़ा 24 फरवरी 2018 को पीड़िता की मां उन्नाव के चीफ ज्‍यूडिशियल मजिस्ट्रेट की कोर्ट में विधायक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की मांग करने पहुंच जाती है.

इसके बाद तीसरा हादसा होता है. 3 अप्रैल 2018 को कोर्ट पीड़िता की मां की अर्जी पर सुनवाई शुरू करती है. मगर कोर्ट का फैसला आता उससे पहले 3 अप्रैल को ही लड़की के पिता को विधायक के भाई अतुल सिंह और उसके लोग बुरी तरह पीटते हैं. चश्मदीदों की मानें तो उसे बांध कर बेल्ट और लात-घूंसों से मारा गया. फिर पिटाई के बाद लड़की के पिता को उसी माखी पुलिस स्टेशन के हवाले कर दिया जाता है. 

विधायक के इशारे पर लड़की के पिता के पास भी हथियार दिखा कर आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया जाता है. इस बीच लड़की का पिता पिटाई के बाद से ही पेट दर्द से चीख रहा था. बाद में उसे अस्पताल ले जाया गया. मगर जांच करने की बजाए डाक्टरों ने उसे पेन किलर और इंजेक्शन देकर फिट करार दे दिया. जिसेक बाद उसे जेल भेज दिया गया. मगर जेल जाने के दूसरे ही दिन उसकी मौत हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि पिटाई के दौरान पीड़ित लड़की के पिता की छोटी आंत फट गई थी और उसी वजह से उसकी मौत हो गई.

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विधायक के खिलाफ पुलिस पहले से ही रेप का एफआईआर नहीं लिख रही थी. ऊपर से पिता की मौत हो गई. लिहाजा 8 अप्रैल को पीड़िता कुलदीप सिंह सेंगर के खिलाफ एफआईआर की मांग करते हुए लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सरकारी आवास के बाहर आत्मदाह करने की कोशिश करती है. पर पुलिस उसे ऐसा करने से रोक देती है. आत्मदाह की कोशिश की खबर के साथ तब पहली बार विधायक पर रेप के इल्जाम की खबर मीडिया में सुर्खियां बनती हैं.

पिता की मौत के बाद मामला तूल पकड़ चुका था. टीवी चैनलों की कई ओबी वैन अब उन्नाव पहुंच चुकी थीं. परेशान सरकार ने पल्ला झाड़ने के लिए दस अप्रैल को माखी एसओ समेत 6 पुलिसकर्मियों को निलंबित करने के साथ-साथ मारपीट के 4 आरोपियों को गिरफ्तार कर लेती है. 10 अप्रैल को ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हत्या की बात सामने आने पर पुलिस पहली बार विधायक के भाई अतुल सिंह को भी गिरफ्तार कर लेती है. अब मीडिया और विपक्ष में मामले को बढ़ता देख यूपी सरकार आखिरकार मामले को सीबीआई को सौंपने का हुक्म देती है.

केस हाथ में लेते ही सीबीआई 12 अप्रैल को पहली नजर में ही विधायक कुलदीप सेंगर को दोषी मानती है. इसके बाद 13 अप्रैल को पहली बार विधायक से पूछताछ होती है. फिर इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर विधायक को गिरफ्तार कर लिया जाता है.

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11 जुलाई 2018 को सीबीआई ने मामले में जो पहली चार्जशीट दाखिल की उसमें कुलदीप सेंगर को रेप का मुख्य आरोपी माना जाता है. 13 जुलाई 2018 को दूसरी चार्जशीट में पीड़िता के पिता को कथित तौर पर फंसाने के मामले में कुलदीप सेंगर, उसके भाई, तीन पुलिसकर्मी और 5 और लोगों पर हत्या और साजिश का मामला दर्ज होता है. मगर 18 अगस्त 2028 को चार्जशीट दाखिल होने के महीने भर बाद ही उन्नाव गैंगरेप केस में एक अहम गवाह की संदिग्ध हालात में मौत हो जाती है. उसके बाद बिना पोस्टमार्टम जल्दबाजी में उसे दफना दिया जाता है. तब से ही यह मामला कोर्ट में चलता रहा.
 
और अब 23 दिसंबर 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर को यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि वह 7 साल 6 महीने की सजा पहले ही काट चुका है. हाईकोर्ट का तर्क था कि जिस पॉक्सो एक्ट की धारा के तहत निचली अदालत ने उसे पब्लिक सर्वेंट मानते हुए उम्रकैद दी थी, वह सेंगर पर लागू ही नहीं होती, क्योंकि उसके मुताबिक सेंगर कभी पब्लिक सर्वेंट था ही नहीं. इसी आधार पर हाईकोर्ट ने माना कि सेंगर को न्यूनतम सात साल की सजा की श्रेणी में रखा जाना चाहिए और चूंकि वह उससे ज्यादा समय जेल में रह चुका है, इसलिए उसे जमानत दी जा सकती है.

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दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले का सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया. सीबीआई की दलील थी कि 2017 में जब नाबालिग पीड़िता के साथ रेप हुआ, उस समय कुलदीप सिंह सेंगर सत्ताधारी बीजेपी का विधायक था और विधायक या सांसद पब्लिक सर्वेंट की श्रेणी में ही आता है. सीबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पॉक्सो एक्ट सिर्फ सजा का कानून नहीं है, बल्कि बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। इस कानून में साफ तौर पर प्रावधान है कि अगर कोई पब्लिक सर्वेंट, पुलिसकर्मी, सुरक्षा बल, शिक्षक या अस्पताल का स्टाफ नाबालिग के साथ यौन अपराध करता है तो उसे ज्यादा कड़ी सजा दी जाएगी, क्योंकि ऐसे लोग अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की दलीलों को सही मानते हुए कहा कि पॉक्सो एक्ट की व्याख्या में दिल्ली हाईकोर्ट से गलती हुई है. कोर्ट ने साफ किया कि सामान्य तौर पर नाबालिग से रेप के मामले में पॉक्सो एक्ट के तहत न्यूनतम सात साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है, लेकिन अगर अपराध करने वाला पब्लिक सर्वेंट हो तो न्यूनतम सजा 20 साल और अधिकतम उम्रकैद होती है. कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि 2019 में दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने सेंगर को पब्लिक सर्वेंट मानते हुए ही उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जबकि जमानत देते समय हाईकोर्ट ने उसे पब्लिक सर्वेंट माना ही नहीं.

दिल्ली हाईकोर्ट के जमानत आदेश पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की वेकेशन बेंच ने कहा कि इस मामले में जमानत पर रोक लगना जरूरी है. बेंच में चीफ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस अगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे. चीफ जस्टिस ने कहा कि आमतौर पर अदालत जमानत पर बाहर आए व्यक्ति की आजादी वापस नहीं लेती, लेकिन यहां हालात अलग हैं, क्योंकि सेंगर पहले से ही एक हत्या के मामले में 10 साल की सजा काट रहा है. इसलिए जमानत पर रोक लगने से उसकी रिहाई नहीं होगी और वह जेल में ही रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने सेंगर को जमानत पर अपना पक्ष रखने के लिए चार हफ्ते का समय दिया है. वहीं, इस फैसले के बाद पीड़िता के परिवार ने राहत जताई, लेकिन अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता भी जाहिर की है.

(संजय शर्मा के साथ आज तक ब्यूरो)

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