
Naxal Commander Hidma Encounter Story: घने जंगल, कड़ी निगरानी और 34 घंटे की सांस रोक देने वाली करवाई. आखिरकार वह दिन आ ही गया, जिसका इंतज़ार सुरक्षा एजेंसियां एक दशक से कर रही थीं. माओवादियों की पहली बटालियन का सबसे खौफनाक चेहरा, 1 करोड़ का इनामी माडवी हिडमा आंध्र प्रदेश के मारेदुमिल्ली जंगल में एक भीषण मुठभेड़ में मारा गया. उसे झीरम घाटी से लेकर ताड़मेटला जैसे नरसंहारों का मास्टरमाइंड कहा जाता था. वो सुकमा-दंतेवाड़ा बेल्ट का सबसे हिंसक कमांडर माना जाता था. हिडमा की मौत न केवल एक ऑपरेशन की सफलता है, बल्कि उन इलाकों के लिए भी बड़ी राहत है जो दशकों से नक्सली हिंसा के साए में जी रहे थे. यह सिर्फ एक एनकाउंटर नहीं, बल्कि भारत की सबसे मुश्किल एंटी-नक्सल वॉर में से एक था.
मारेदुमिल्ली जंगल में हिडमा का अंत
आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीतारामाराजू जिले में सुरक्षा बलों ने कुख्यात माओवादी माडवी हिडमा को एक भीषण मुठभेड़ में मार गिराया. यह एनकाउंटर मारेदुमिल्ली के घने जंगलों में हुआ, जो आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के त्रि-जंक्शन पर मौजूद है. पुलिस ने इस ऑपरेशन में हिडमा की पत्नी समेत छह नक्सलियों को ढेर कर दिया. लंबे समय से सुरक्षा एजेंसियां हिडमा की तलाश में थीं, और यह मुठभेड़ उस अभियान का सबसे बड़ा नतीजा साबित हुई.
कौन था हिडमा?
हिडमा महज 5वीं कक्षा तक पढ़ा था. उसका कद 5 फुट 5 इंच था. वह 20 बड़े नक्सली हमलों का मास्टरमाइंड था. 51 वर्षीय हिडमा नक्सलियों के सबसे खतरनाक चेहरों में से एक था. वह छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के जंगलों में घूमकर सुरक्षा बलों पर हमला करता था. उस पर दर्जनों जवानों की हत्या का आरोप था. वह नक्सलियों की बटालियन का कमांडर था और उस पर 45 लाख रुपये का इनाम घोषित था. 25 मई 2013 की झीरम घाटी की दर्दनाक वारदात का भी मास्टरमाइंड वही था, जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं सहित 33 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था.
16 साल की उम्र में बना था नक्सली
रिपोर्ट्स के मुताबिक, हिडमा महज 16 साल की उम्र में नक्सली संगठन में शामिल हुआ था. वह गोंड समाज से ताल्लुक रखता था और माओवादी गतिविधियों में आने से पहले ही उसकी शादी हो चुकी थी. दुबले-पतले, पर बेहद फुर्तीले और तेज दिमाग वाले हिडमा को संगठन ने जल्दी ही अपना लिया. वह चीजें तेजी से सीखता था और जल्द ही नक्सली नेताओं का भरोसेमंद चेहरा बन गया.
माओवादी एजुकेशन से ब्रेनवॉश तक
नक्सलियों के पास अपना एजुकेशन और कल्चरल कमेटी सिस्टम होता है, जहां नए भर्ती युवाओं को पढ़ाया जाता है. गाना-बजाना सिखाया जाता है और संगठन की वैचारिक ट्रेनिंग दी जाती है. हिडमा भी इसी प्रक्रिया से गुज़रा था. कमांडरों ने उसे सरकारी तंत्र के खिलाफ भड़काया और समय के साथ उसका ब्रेनवॉश इतना गहरा हुआ कि वह बेहद हिंसक और निर्दयी नेता के रूप में उभरकर सामने आया.
बड़ी वारदातों में आया नाम
हिडमा की बटालियन दक्षिण बस्तर, सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा में सक्रिय थी. यह इलाका कभी माओवादी हिंसा का सबसे बड़ा केंद्र रहा था. साल 2010 की ताड़मेटला मुठभेड़ के दौरान 76 CRPF जवान शहीद हुए थे. उस खौफनाक घटना से लेकर झीरम घाटी कांड तक, लगभग हर बड़े नक्सली हमले में उसका हाथ रहा है. पुलिस का कहना है कि वह लगभग हर बड़े ऑपरेशन को खुद लीड करता था और जंगल के हर रास्ते पर उसकी पकड़ बेहद मजबूत थी.

125 गांवों की मैपिंग
कुख्यात हिडमा की तलाश आसान नहीं थी. सुरक्षा बलों ने छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश की सीमा से लगे 125 से ज्यादा गांवों की थर्मल और टेक्निकल मैपिंग कराई. बीजापुर-सुकमा बॉर्डर उसका मूल इलाका माना जाता था. NTRO की मदद से उसकी मूवमेंट को पकड़ने की कोशिश जारी थी. सुरक्षा एजेंसियां मान रही थीं कि हिडमा का खात्मा छत्तीसगढ़ में नक्सलिज़्म को निर्णायक झटका देगा.
कई दिनों की खुफिया निगरानी
मंगलवार सुबह जिस मुठभेड़ में हिडमा ढेर हुआ, वह कई दिनों की खुफिया निगरानी का नतीजा था. आंध्र प्रदेश पुलिस ने लगातार साइलेंट मूवमेंट और इंटेलिजेंस की मदद से उसकी लोकेशन ट्रैक की. इस एनकाउंटर में उसकी पत्नी मदकम राजे और चार अन्य नक्सली भी मारे गए. यह ऑपरेशन बेहद रणनीतिक तरीके से प्लान किया गया था.
माओवादी नेटवर्क की शिफ्टिंग
आंध्र प्रदेश इंटेलिजेंस चीफ महेश चंद्र लड्ढा के मुताबिक, इनपुट मिला था कि छत्तीसगढ़ में दबाव बढ़ने के बाद माओवादी नेटवर्क आंध्र प्रदेश में एक्टिव होने की कोशिश कर रहा है. संकेत यह भी थे कि बड़े कमांडर सीमा पार कर संगठनात्मक गतिविधियों को फिर से जगा रहे हैं. यही कारण था कि पुलिस ने हाई-इंटेंसिटी निगरानी शुरू की और हर मूवमेंट पर नजर रखी.
34 घंटे की लगातार मॉनिटरिंग
मंगलवार सुबह करीब 6 बजे शुरू हुई मुठभेड़ 34 घंटे की निरंतर मॉनिटरिंग का परिणाम थी. सुरक्षा एजेंसियों ने हिडमा की हर गतिविधि, हर ठिकाने और संभावित रूट को मैप किया. टीमों को जंगल की संरचना और संभावित एग्जिट रूट को देखते हुए पोजिशन में रखा गया ताकि वह बचकर न निकल सके.
ग्रेहाउंड की अगुवाई में ऑपरेशन
इस ऑपरेशन को ग्रेहाउंड कमांडो ने लीड किया. रात 2 बजे शुरू हुआ यह अभियान घने जंगलों और ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियों के बीच फायरिंग के साथ आगे बढ़ा. पहले कई बार ऐसे इलाके माओवादियों के पक्ष में रहे थे, लेकिन इस बार मल्टी-लेयर कॉर्डन और टाइट सर्कल के कारण सुरक्षा बलों को बढ़त मिल गई.
हथियारों का बड़ा जखीरा बरामद
मुठभेड़ खत्म होने के बाद मौके से दो AK-47, एक पिस्तौल, एक रिवॉल्वर, एक सिंगल बोर हथियार और भारी संख्या में गोलियां मिलीं. किट बैग और कई अहम दस्तावेज भी बरामद किए गए. शुरुआती पहचान में ही पता चल गया कि मारे गए नक्सलियों में वह कमांडर भी है, जिसे माओवादी संरचना की रीढ़ माना जाता था.
31 नक्सलियों की गिरफ्तारी
इसी ऑपरेशन के समानांतर विजयवाड़ा, एनटीआर, कृष्णा और काकीनाडा में भी पुलिस ने कार्रवाई की. कुल 31 संदिग्ध माओवादी पकड़े गए. इनमें नौ लोग देवजी के सिक्योरिटी गार्ड बताए जा रहे हैं, जबकि बाकी साउथ बस्तर जोनल कमेटी से जुड़े थे. यह साफ संकेत है कि माओवादी नेटवर्क दक्षिण में अपने पुराने नेटवर्क को फिर खड़ा करने की कोशिश में था, लेकिन वो कामयाब ना हो सका.