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50 लाख का बीमा, धोखाधड़ी की साजिश और अंतिम संस्कार की तैयारी... चिता पर हुआ हैरान कर देने वाला खुलासा

गढ़मुक्तेश्वर के बृजघाट श्मशान से एक ऐसी साजिश निकलकर सामने आई है, जिसने सबको हैरान कर दिया है. उस श्मशान में एक पुतले का अंतिम संस्कार किया जाना था और इसके पीछे कोई मजाक या प्रेंक नहीं बल्कि एक सोची समझी साजिश थी. जिसे जानकर सब दंग रह गए. पढ़ें पूरी कहानी.

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श्मशान से बाहर निकली साजिश ने सबको चौंका दिया (फोटो-ITG)
श्मशान से बाहर निकली साजिश ने सबको चौंका दिया (फोटो-ITG)

कहते हैं इस दुनिया से उस दुनिया में जाने का आखिरी स्टेशन श्मशान या कब्रिस्तान होता है. कहते तो ये भी हैं कि चाहे थोड़ी ही देर के लिए पर जब भी कोई ऐसी जगह पर आता है तो सारे पाप या बुराइयों से खुद को दूर कर लेता है. अमूमन जिंदगी के इस आखिरी स्टेशन का माहौल हमेशा गमगीन होता है. लेकिन आज जिस श्मशान की कहानी आपको बताएंगे, वहां चिता पर लेटी लाश को देखकर आपको अफसोस नहीं होगा. बल्कि शायद आप मुस्कुरा उठें. यकीन मानिए जिस भाई का भी ये जुर्मी आइडिया था, वो गजब जुर्मी था.

कार से मुर्दा लेकर पहुंचे श्मशान
गढ़मुक्तेश्वर में मौजूद है बृजघाट श्मशान. उस श्मशान घाट की अपनी एक मान्यता है. गंगा किनारे होने और गढ़मुक्तेश्वर में होने की वजह से दूर-दूर से लोग वहां अर्थियां लेकर आते हैं. 27 नवंबर को भी इस श्मशान घाट में तमाम चिताएं जल रही थी. तभी ठीक उसी वक्त चार लोग एक ड़ेड बॉडी लेकर वहां पहुंचते हैं. हर श्मशान घाट की एक परंपरा होती है. मुर्दों को लाने के बाद श्मशान के अंदर उसे नहलाया जाता है. फिर पुरोहित या पंडित मंत्रोच्चार के बीच चिता सजाते हैं. इसके बाद श्मशान के ही कर्मचारी लकड़ियों की चिता पर अर्थी को रखते हैं. हमेशा श्मशान पहुंचने के बाद मुर्दे के साथ आए लोगों में से ही कोई लकड़ी, घी और पूजा सामग्री उसी श्मशान से खरीदता है. फिर अंतिम संस्कार किसी पुरोहित या पंडित की मौजूदगी में ही किया जाता है.

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27 नवंबर 2025
यही तारीख थी, जब एक आई20 कार में चार लोग सवार होकर उसी श्मशान में पहुंचे. वे चारों वहां आने वाले बाकी तमाम लोगों से बिल्कुल अलग थे. अलग इस मायने में कि चारों ने लकड़ी, घी, पूजा सामग्री सब कुछ खरीदा तो, मगर किसी पुरोहित या पंडित को नहीं बुलाया बल्कि खुद ही लकड़ियां सजाकर चिता तैयार कर दी. अब बारी थी चिता पर लाश को लिटाने की. चिता सज चुकी थी लेकिन मुर्दा अब भी कार में था. 

पंड़ित को हुआ शक
इसी दौरान श्मशान के एक पंडित की नजर चारों पर पड़ी. पंडित कार से लाश उठाने के लिए उनके करीब गया. चारों ने मना भी किया लेकिन उसने जैसे ही डेडबॉडी कार से उतारने के लिए हाथ बढ़ाया तब वो चौंक गया. क्योंकि उसे महसूस हुआ कि मुर्दे का तो कोई वजन ही नहीं है. इसपर उसे शक हुआ. उसने लाश का चेहरा दिखाने की बात कही. तभी अर्थी सजाने वाले चारों लोग घबरा गए.
 
कफन खिसकते ही पंड़ित हैरान
उन्होंने पंड़ित से कहा कि लाश सीधे अस्पताल से लेकर आ रहे हैं. लाश की हालत बेहद खराब है. खासकर चेहरा तो देखने लायक बिल्कुल भी नहीं है. ये सब कहते हुए चारों ने फटाफट खुद से ही सजाई चिता पर कफन से ढकी लाश को लिटा दिया. बिना पंडित, बिना पुरोहित और बिना किसी मंत्रोच्चार के बेहद जल्दबाजी में यूं चारों को अंतिम संस्कार करते देख अब वहां मौजूद लोगों का शक और बढ़ने लगा. इसी बीच उनमें से एक की नजर पैरों से थोड़ा सा खिसक चुकी कफन पर पड़ी. पैर देखते ही वो हैरान रह गया. क्योंकि ये पैर किसी के इंसान के नहीं थे बल्कि डमी के थे. यानि किसी पुतले के. प्लास्टिक के पुतले के.

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चिता पर लाश नहीं पुतला था
बस फिर क्या था अगले ही पल वहां खड़ा शख्स एक झटके में कफन हटा देता है. जैसे ही कफन हटा, सामने चिता पर वही पुतला लेटा हुआ नजर आया. अमूमन ऐसे पुतले आपने बहुत सारे शोरूम में देखे होंगे. जिन्हें कपड़ा पहनाकर शोपीस के तौर पर शीशे के बॉक्स में खड़ा किया जाता है. वैसे इसे मैनीक्वीन भी कहा जाता है.

मौके पर पहुंची पुलिस
अब जहां श्मशान के अंदर एक साथ कई चिताएं जल रही थी, वहां एक चिता पर इस पुतले के लेटे या लिटाई जाने की बात चिता की आग की तरह पूरे श्मशान में फैल गई. इसी बीच श्मशान के स्टाफ ने पुलिस को भी फोन कर दिया. आनन फानन में पुलिस मौके पर आई. मगर मुर्दे का सच जैसे ही सामने आया था, तब तक उन चार में से दो भाग चुका था. जो बाकि दो बच गए उन्हें पुलिस ने कुछ यूं पकड़ा. अब तक हर कोई हैरान था. हर कोई ये जानना चाहता था कि आखिर श्मशान में एक पुतले का अंतिम संस्कार कोई क्यों करने आया था.

बिना मारे चाहता था एक शख्स की मौत 
इसी सवाल के साथ जब पुलिस ने आई20 कार की तलाशी ली तो उसकी डिग्गी से बिल्कुल वैसे ही दो और पुतले मिले. अब दोनों से पूछताछ शुरु होती है और थोड़ी ही देर में सिलसिलेवार कहानी सामने आने लगती है. एक ऐसी कहानी जिसमें एक इंसानी दिमाग बिना कोई संगीन जुर्म किए, बिना किसी को मारे एक मौत चाहता था. एक ऐसी मौत जो सिर्फ कागजों पर हो, एक ऐसी मौत जिसपर सरकार की मुहर हो, एक ऐसी मौत जिसके बदले उसे 50 लाख रुपए मिले. बस उसी कागजी मौत के लिए वो इस श्मशान तक चला आया था.

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ड्राइफ्रूट की एक दुकान चलाता था कमल सोमानी
अब आगे की कहानी बताते हैं. कमल सोमानी दिल्ली के पालम का रहने वाला है. कमल सोमानी की करोल बाग में ड्राइफ्रूट की एक दुकान थी. उस दुकान पर नीरज नाम का एक लड़का नौकरी करता था. नीरज का एक भाई है अंशुल. अक्सर अंशुल भी अपने भाई से मिलने आता जाता रहता था. दोनों बिहार के रहने वाले हैं. दिल्ली आने के बाद अंशुल ने अपना आधार कार्ड और पैन कार्ड कमल सोमानी के घर के पते पर ही बनवाया था. कमल सोमानी के पिता की मौत के बाद दुकान घाटे में चलने लगी और फिर एक रोज दुकान बंद हो गई. दुकान बंद होते ही नीरज वापस बिहार लौट गया. अंशुल पहले से ही लौट चुका था. 

नौकर के नाम पर खरीदी बीमा पॉलिसी
इधर, दुकान बंद होते ही कमल सोमानी कर्ज में डूब चुका था. कर्ज से बाहर निकलने का तभी उसे एक आइडिया आया. चूंकि अंशुल का आधार और पैन कार्ड उसी के पास था, लिहाजा उसने उन्हीं दोनों दस्तावेज का इस्तेमाल करते हुए एक बीमा पॉलिसी खरीदी. पूरे 50 लाख रुपये की. वो भी अंशुल के नाम पर और उसका नॉमिनी भी खुद बन गया. इसके बाद कमल पाबंदी से ऑनलाइन उस पॉलिसी की किश्त भरता रहा. कमल को पता था कि अंशुल और उसका भाई बिहार में हैं. दोनों को इस पॉलिसी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. 

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दूसरे के नाम पर 50 लाख का बीमा
कई किश्त भरने के बाद अब इंश्योरेंस की रकम जो 50 लाख रुपये थी, उसे हासिल करने का वक्त आ गया था. कमल का प्लान ये था कि अंशुल को मुर्दा करार देकर वो बीमा कंपनी से सारे पैसे वसूल कर लेगा. चूंकि वो नॉमिनी भी था इसलिए सारे पैसे उसे ही मिलने थे. पर यहां पर कमल थोड़ा शरीफ निकला. वो बिना अंशुल को मारे ही उसकी मौत चाहता था.

ये थी पूरी साजिश
कमल सोमानी का प्लान ये था कि वो अंशुल की जगह एक पुतले को लाश बनाकर श्मशान ले जाएगा. और वहां उसका अंतिम संस्कार कर देगा. श्मशान से अंशुल के नाम पर मुर्दे की रसीद उसे मिल जाएगी. इसी रसीद से वो आसानी से अंशुल का डेथ सर्टिफिकेट भी बनवा लेगा. और फिर उसी डेथ सर्टिफिकेट को इंश्योरेंस कंपनी में जमा कर वो आसानी से 50 लाख रुपये हासिल कर लेगा. 

दोस्तों को किया साजिश में शामिल
अब चूकिं मामला अंतिम संस्कार का था तो कमल सोमानी अकेले अर्थी लेकर श्मशान तो जा नहीं सकता था. लिहाजा उसने अपने इस साजिश में अपने तीन करीबी दोस्तों को भी शामिल कर लिया. अब चारों दोस्त बाजार से तीन पुतले खरीदते हैं और उन्हीं में से एक को लाश बनाकर श्मशान पहुंच जाते हैं. पर प्लास्टिक का दो चार किलो का पुतला सारा भांडा फोड़ देता है. बाकी रही सही कसर चिता पर लेटे पुतले ने पूरी कर दी.

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क्या मिलेगी सजा?
कमल सोमानी और उसका एक दोस्त फिलहाल पुलिस हिरासत में है. बाकी दो दोस्त भी आज नहीं तो कल हाथ आ ही जाएंगे. पर सवाल ये है कि इन्हें सजा क्या मिलेगी? क्योंकि इन्होंने मौत का ड्रामा तो किया पर मारा किसी को नहीं. श्मशान में लाश तो ले गए पर प्लास्टिक की. अंशुल सही सलामत फिलहाल प्रयागराज में है. तो कुल मिलाकर धोखाधड़ी की कोशिश का इल्जाम ही इनके सिर आएगा. यानि लंबे वक्त तक ये सरकारी मेहमान नहीं रहेंगे.

(हापुड़ से देवेंद्र शर्मा का इनपुट)

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