Delhi Red Fort Car Blast: दिल्ली के दिल में हुए कार ब्लास्ट ने सुरक्षा एजेंसियों को हिला कर रख दिया है. जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे इस साजिश के पीछे छिपे विदेशी कनेक्शन बेनकाब हो रहे हैं. खुलासा हुआ है कि ब्लास्ट के मास्टरमाइंड उमर और शाहीन किसी साधारण गिरोह का हिस्सा नहीं थे, बल्कि तुर्की में बैठे एक रहस्यमयी हैंडलर के इशारों पर काम कर रहे थे. कोड नेम से संचालित इस टेरर ऑपरेशन की डोर विदेश से खींची जा रही थीं. वहीं से इस खूनी साजिश का प्लान तय हो रहा था. सवाल अब सिर्फ इतना है कि आखिर कौन है वो शख्स जिसने दिल्ली में दहशत फैलाने की साजिश रची? और विदेशी धरती पर बैठकर देश की राजधानी दिल्ली को दहला दिया?
धमाके से दहली दिल्ली
सूत्रों के अनुसार 10 नवंबर को दिल्ली के लाल किले के पास हुए कार ब्लास्ट की जांच में अब अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन निकलकर सामने आया है. शुरुआती रिपोर्ट में धमाका स्थानीय रूप से देखा गया था, मगर आगे की छानबीन में इस मामले से तुर्की और पाकिस्तान से जुड़े संपर्क जुड़ते दिख रहे हैं. मुख्य आरोपी डॉक्टर मोहम्मद उमर नबी पर घटना का सीधा शक है. उसके फोन-लैपटॉप से मिलने वाली जानकारियां केस को नई दिशा दे रही हैं. एजेंसियां इस मामले से जुड़े हर पहलू की तकनीकी और नेटवर्क वाइड जांच कर रही हैं. ये धमाका और साजिश दिल्ली की जनता और पीड़ित परिवारों के लिए बेहद संवेदनशील और परेशान करने वाला मामला साबित हुआ है.
खौफनाक ही नहीं, जोरदार भी था धमाका
10 नवंबर की शाम लगभग 6:58 बजे लाल किले मेट्रो स्टेशन के पास एक सफेद i20 कार में जोरदार विस्फोट हुआ. धमाका इतना शक्तिशाली था कि आसपास खड़ी कई गाड़ियां और मेट्रो के सिग्नलिंग सिस्टम को भी नुकसान पहुंचा. इस घटना में रिपोर्ट के अनुसार 13 लोगों की मौत हुई और दर्जनों लोग घायल हुए. मौके पर अफरा-तफरी का माहौल था और लोग मदद के लिए चीख रहे थे. शुरू में इस धमाके को किसी तकनीकी खराबी या गैस लीकेज के रूप में देखा गया था, पर फॉरेंसिक अवशेष मिलने के बाद इसे आतंकी हमला माना गया.
उमर की लाश का DNA मां से मैच
कार में मिले हड्डियों, दांत और कपड़ों के नमूनों का डीएनए टेस्ट कराए गए और रिपोर्ट में उमर की मां के सैंपल से 100% मैच बताया गया. इस क्राइम-सीन के फॉरेंसिक नतीजों ने हमले की गंभीरता और हमलावर की पहचान दोनों स्पष्ट कर दी. ऐसे सबूत जांच के लिए आधार बनते हैं और केस को कानून की कसौटी पर खड़ा करते हैं. डीएनए के साथ बाकी तकनीकी सबूत भी आगे की कार्रवाई के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं.
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आतंकी साजिश की जांच NIA के हवाले
प्रधानमंत्री की मौजूदगी में केंद्रीय कैबिनेट ने इस घटना को 'आतंकी साजिश' माना और गृह मंत्री ने यह केस एनआईए को सौंप दिया. राष्ट्रीय एजेंसियां और राज्य पुलिस मिलकर इस मामले की जांच कर रही हैं, सुरागों की परत-दर-परत पड़ताल हो रही है. ऑफिशियल तौर पर यह मामला अब राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला बन चुका है और कड़ाई के साथ इस केस की तफ्तीश जारी है. जनता को सर्तक रहने और अफवाहों पर ध्यान ना देने, उन्हें रोकने के निर्देश भी जारी किए गए हैं.
धमाके का तुर्की कनेक्शन
जांच में सामने आया कि आरोपी डॉ. उमर तुर्की के अंकारा में बैठे एक हैंडलर के संपर्क में था, जिसका कोडनेम 'उकासा' बताया जा रहा है. सूत्रों के मुताबिक़ यह हैंडलर JeM से संबंध रखता है और विदेश से निर्देश, आर्थिक और रणनीतिक मदद मुहैया करा रहा था. इस खुलासे के बाद तुर्की ने मीडिया रिपोर्ट्स पर आपत्ति जताई और कुछ खबरों को झूठा बताया है. फिर भी एजेंसियां इन सूत्रों की जांच कर रही हैं. अंतरराष्ट्रीय कड़ी के संबंध और तर्कों की जांच अब केस का अहम हिस्सा बन गए हैं.
'उकासा' कोडनेम और शक का आधार
जांचकर्ताओं का मानना है कि 'उकासा' असल पहचान नहीं, बल्कि एक कोडनेम हो सकता है. अरबी में 'उकासा' का अर्थ 'मकड़ी' भी होता है, इसी कोडनेम के ज़रिये हैंडलर ने कथित रूप से नेटवर्क गतिविधियों और फंडिंग को संचालित किया होगा. मोबाइल और डिजिटल गैजेट की फॉरेंसिक जांच से मिली चैट हिस्ट्री इस कनेक्शन की सबसे अहम कड़ी मानी जा रही है. अभी तक का रुझान यह बताता है कि आदेश, टाइमिंग और टारगेट किए गए क्षेत्रों के निर्देश वहीं से आए थे.
सेशन (Session) ऐप और एन्क्रिप्टेड चैट
जांच में उमर के फोन और लैपटॉप से एन्क्रिप्टेड मैसेंजर 'Session' की चैट हिस्ट्री मिली है. एजेंसियां मानती हैं कि इसी ऐप के जरिए उकासा और उमर के बीच लगातार संवाद हुआ, और ऑपरेशन-रेलेवेंट निर्देश दिए गए. एन्क्रिप्टेड चैट विदेशी हैंडलर्स और स्थानीय कार्यकर्ताओं के बीच गोपनीय संदेशों का आदान-प्रदान आसान बनाते हैं, जिससे जांच कठिन हो जाती है. डिजिटल सबूतों की डीक्रिप्शन और टाइमलाइन बनाना अब जांच का अहम मकसद है.
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तुर्की में मुलाकात और ब्रेनवॉश
सूत्र बता रहे हैं कि साल के आरम्भ में उमर और फरीदाबाद मॉड्यूल के कुछ अन्य सदस्य तुर्की गए थे और वहां उनके JeM के हैंडलर्स से मिलने के संकेत मिले हैं. रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि वहां उनका ब्रेनवॉश किया गया और ऑपरेशन के निर्देश दिए गए. इसी तरह की विदेशी यात्राएं और व्यक्तिगत मुलाकातें एजेंसियों के लिए रेड-फ्लैग होती हैं और इन्हें गहराई से खंगाला जा रहा है. इन यात्राओं के वीज़ा और टिकट जैसे दस्तावेज़ भी सबूत के तौर पर इकठ्ठे किए जा रहे हैं.
फरीदाबाद मॉड्यूल पर कार्रवाई
फरीदाबाद में आतंकी मॉड्यूल में शामिल कुछ ठिकानों पर तलाशी के दौरान भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद हुए हैं. सूत्रों के मुताबिक, करीब 2,900 किलो का ज़िक्र आया है. यह बरामदगी इस नेटवर्क की संभावित सामर्थ्य और योजनाबद्धता को दर्शाती है. पकड़े गए अन्य आरोपितों की मदद से अब यह भी पता लग रहा है कि यह मॉड्यूल देशभर में फैलने की योजना बना रहा था. ऐसे खुलासे न केवल साजिश का भंडाफोड़ करते हैं बल्कि आगे के खतरे को टालने में भी मददगार होते हैं.
अल-फलाह यूनिवर्सिटी में जांच और पूछताछ
जांच एजेंसियों ने फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी से उमर, मुजम्मिल और शाहीन से जुड़े तमाम दस्तावेज़ मांगे हैं, जिसमें नियुक्ति पत्र, भूमि कागज़ात, ट्रस्ट रिपोर्ट, NOC, बिल्डिंग प्लान, और नियामक निकायों से जुड़ा रिकॉर्ड शामिल हैं. विश्वविद्यालय का कैंपस और ट्रस्ट संरचना केस की तह तक जानने में अहमियत रखता है. एजेंसियां देखना चाहती हैं कि कहीं संस्थागत संरचनाओं का दुरुपयोग तो नहीं हुआ और फंडिंग के स्रोत कैसे जुड़े थे? दस्तावेज़ी सत्यापन से कई जवाब मिलने की उम्मीद है.
शाहीन और महिला विंग के दावों की पड़ताल
जांच के दौरान पकड़ी गई डॉ. शाहीन पर आरोप हैं कि वह जैश-ए-मोहम्मद की महिला विंग के लिए रिक्रूटमेंट और फंडिंग का काम कर रही थी. रिपोर्ट बताती है कि शाहीन ने मदरसों व जकात-नामे के ज़रिये धन जमा किया और उससे कुछ गतिविधियां संचालित होने का शक है. उसके खातों में विदेशी फंडिंग के सुराग मिलना जांच का अहम पहलू है और उसे लेकर उसे कड़ी पूछताछ जारी है. महिला विंग से जुड़ी निचली स्तर की रिक्रूटिंग-संगठन को समझना नेटवर्क तोड़ने के लिए ज़रूरी है.
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एक पैटर्न: चार शहरों में सिलसिलेवार धमाके की प्लानिंग
जांच से यह भी पता चला कि आठ संदिग्धों द्वारा चार अलग-अलग शहरों में एक साथ सिलसिलेवार धमाके करने की साजिश रची जा रही थी. प्लान के मुताबिक़ छोटी-छोटी टीमों ने अलग-अलग लोकेशन पर जाकर आईईडी प्लांट करने थे, ताकि एक ही समय में ज्यादा तबाही हो सके. कहा जा रहा है कि इसी बड़े हमले को रोकने के लिए 12 तारीख के लिए अलर्ट जारी किया गया था. उस अलर्ट और समयसीमा की वजह से कई एजेंसियां सतर्क रहीं. माना जा रहा है कि इससे संभावित बड़ी घटना टल गई.
साजिश में कोडवर्ड का इस्तेमाल
जांच में यह भी पता चला है कि आतंकवादी अमोनियम नाइट्रेट, ऑक्साइड और फ्यूल-ऑयल जैसे घटकों को कोड-वर्ड्स ‘शिपमेंट’ और ‘पैकेज’ के तौर पर लिखते थे. फोन व दस्तावेजों में पाए गए ऐसे शब्द यह संकेत देते हैं कि उन्होंने सुराग-छुपाने के लिए सामान्य शब्दों का सहारा लिया. इन कोडवर्ड्स की व्याख्या और लॉजिस्टिक चैन की पहचान जांच का एक तकनीकी और अहम हिस्सा है.
जांच के लिए तुर्की से मदद की उम्मीद
एनआईए और अन्य सुरक्षा एजेंसियां अब तुर्की के दूतावास से सहयोग की संभावनाओं और फॉरेंसिक-डाटा एक्सचेंज पर काम कर सकती हैं. दूसरी ओर तुर्की सरकार ने मीडिया रिपोर्ट्स पर आपत्ति जताई है और सहयोग की शर्तें रखी हैं. इसलिए राजनयिक संवाद भी इस केस में मुख्य भूमिका निभायेगा. मामले की जांच अभी जारी है और देश-विदेश दोनों तरफ से सुरागों का क्रॉस-वेरिफिकेशन जारी है. जनता के लिए मायने यह है कि जांच तेज़ और पारदर्शी बने, ताकि जिम्मेदारों को कानून के तहत सज़ा मिले और आगे किसी बड़े खतरे को रोका जा सके.
तुर्की ने किया आरोपों का खंडन
हालांकि तुर्की ने भारत के इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है कि वह किसी आतंकी संगठन या चरमपंथी तत्वों को समर्थन देता है. अंकारा का कहना है कि वह आतंकवाद के हर रूप और उसके हर रूपांतर की कड़ी निंदा करता है. तुर्की सरकार ने साफ कहा कि उसके लिए यह मायने नहीं रखता कि आतंकवादी कार्रवाई कौन कर रहा है या उसका निशाना कौन है. देश हर तरह की आतंकी हिंसा के खिलाफ खड़ा है. तुर्की का दावा है कि वह आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में हमेशा अग्रणी रहा है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर लगातार सहयोग करता आया है. भारत को निशाना बनाने वाले तत्वों को तुर्की से कट्टरपंथी बनाने या सहायता मिलने के आरोप पूरी तरह निराधार और तथ्यों से परे हैं.