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कोरोना

कोरोना वायरस के मामले में भारत को राहत देती हैं ये 4 बातें

कोरोना वायरस के मामले में भारत को राहत देती हैं ये 4 बातें
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कोरोना वायरस की दिसंबर महीने में चीन के वुहान में दस्तक हुई. वुहान में तो हालात सामान्य हो रहे हैं लेकिन दुनिया भर में कोरोना की त्रासदी ने लोगों को घरों में बंद रहने पर मजबूर कर दिया है. यूरोप में इटली-स्पेन में सबसे ज्यादा तबाही मचाने के बाद अब कोरोना वायरस ने अमेरिका को नया गढ़ बना लिया हैं. भारत में भी कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं.

कोरोना वायरस के मामले में भारत को राहत देती हैं ये 4 बातें
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वर्ल्ड कोविड मीटर से पता चलता है कि हर देश में कोरोना वायरस के संक्रमण से मृत्यु दर अलग-अलग है. कोरोना वायरस से मौत की दर उम्र, धूम्रपान और बीमारियों जैसे फैक्टरों पर भी निर्भर करती है. दुनिया भर में कोरोना से मृत्यु दर 0.2 फीसदी से लेकर 15 फीसदी के बीच है. भारत में कोरोना संक्रमण से अब तक हुई मौतों का आंकड़ा काफी कम है. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में अभी तक मिले डेटा से कई सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं हालांकि, किसी भी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी.
कोरोना वायरस के मामले में भारत को राहत देती हैं ये 4 बातें
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कुछ हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत की ज्यादातर आबादी तमाम बैक्टीरिया, पैरासाइट्स और वायरसों के संपर्क में पहले से ही है. इससे तमाम भारतीयों के शरीर में T-cells का निर्माण हो चुका है. ये टी-सेल्स विदेशी वायरसों से भी लड़ने में सक्षम हो सकती हैं. उदाहरण के तौर पर, टीबी, एचआईवी और मलेरिया जैसी बीमारियों ने भारत, अफ्रीका समेत कई देशों में अपने पैर जमाए हुए हैं जबकि यूरोप और उत्तर अमेरिकी देशों में इनका प्रकोप कम है. कोरोना वायरस से लड़ने में क्लोरोक्वीन और हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन ड्रग के प्रभावी होने को लेकर काफी चर्चा हो रही है. भारत में कम्युनिटी स्तर पर इस ड्रग का पहले से ही काफी इस्तेमाल हो चुका है. भारत में कोरोना वायरस की रोकथाम में ये फैक्टर मददगार साबित हो सकता है.
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भारतीय आबादी में इम्यून रिस्पांस जीन्स की भी अहम भूमिका हो सकती है. इन जीन्स को सामूहिक तौर पर ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजेन सिस्टम या एचएलए जीन्स कहा जाता है. इनका काम होता है- इम्यून सिस्टम के सामने हमलावर विदेशी एंटीजेन्स को लाना. सैनिकों की तरह लड़ने वाली टी-सेल्स तभी अपना काम कर पाती हैं जब उनके सामने रोगाणुओं को एचएलए जीन्स व्यवस्थित रूप से सामने लाती है. दूसरे शब्दों में, टी-सेल्स के इन रोगाणुओं पर हमला करने से पहले इनका एचएलए जीन्स से बने कंपाउंड से जुड़ना जरूरी है. अगर शरीर में ऐसे कोई कंपाउंड नहीं बन पाते हैं तो टी-सेल्स बेअसर हो जाती हैं.
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भारतीय आबादी में एचएलए की जेनेटिक विविधता ज्यादा है. ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस, नई दिल्ली की कई स्टडीज में भारतीय आबादी में एचएलए जीन्स में विभिन्नताएं पाए जाने की बात कही गई है जो दूसरे नस्लीय समूहों में आम-तौर पर मौजूद नहीं है. एचएलए के जीन्स की ये विविधता वायरस की क्षमता को कमजोर कर सकती है.
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लेकिन सवाल ये उठता है कि एचएलए जीन्स की आनुवांशिकीय विविधता कोविड19 को रोकने में कैसे मददगार साबित हो सकती है? वायरस से संबंधित बीमारियों के अध्ययन से पता चलता है कि एचएलए सिस्टम के कुछ जेनेटिक वेरिएंट्स ऐसे वायरसों से सुरक्षा प्रदान करते हैं जबकि कुछ वेरिएंट्स वायरस के खतरे को बढ़ा देते हैं. कोरोना वायरस को लेकर हुई हालिया स्टडी में भी बताया गया है कि टी-सेल्स का तेजी से जवाब देना वायरस से रिकवरी करने में अहम भूमिका निभाता नजर आ रहा है. वहीं टी-सेल्स कम सक्रिय होती हो तो कोरोना वायरस का हमला बढ़ सकता है.
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उम्र भी एक अहम फैक्टर- कोरोना वायरस के खतरे को कम करने में भारतीयों की उम्र भी अहम भूमिका अदा कर सकती है. कई स्टडीज में कहा गया है कि कोरोना वायरस बुजुर्गों को ज्यादा आसानी से शिकार बना रहा है क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम युवाओं की तुलना में कमजोर होता है. इटली में 70 साल या उससे ऊपर के आयुवर्ग में 74.2 फीसदी मौतें दर्ज हुई हैं. वहीं फ्रांस में 79 फीसदी मौतें 75 या उससे ज्यादा की उम्र के लोगों की हुई हैं. हालांकि, इसका ये मतलब नहीं है कि युवा संक्रमण से सुरक्षित हैं. इटली में 25.7 फीसदी संक्रमण के मामले 19-50 की आयु वर्ग में ही सामने आए हैं और फ्रांस में संक्रमित आबादी का 30 फीसदी 15-44 के आयु वर्ग से है. हां, ये कहा जा सकता है कि युवाओं में संक्रमण होने के बाद रिकवर होने की ज्यादा संभावनाएं हैं.
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भारत की बात करें तो यहां की अधिकतर आबादी युवा है. भारतीय आबादी की औसत उम्र 28.4 साल है. भारत में 44 फीसदी आबादी 25 साल से कम उम्र की है और 41.24 फीसदी आबादी 25-54 साल के आयु वर्ग की है. कुल मिलाकर, भारत की 85 फीसदी आबादी 54 साल से कम उम्र की है. ऐसे में भारत की युवा आबादी वायरस के खिलाफ प्रतिरोध का काम कर सकती है जिससे यूरोप की तुलना में मृत्यु दर कम होने की संभावना है. हालांकि, एज फैक्टर से संक्रमण की दर कम हो, ये जरूरी नहीं है.
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कुछ एक्सपर्ट्स का ये भी कहना है कि भारतीयों की खान-पान की आदतें भी वायरस से लड़ने में सकारात्मक भूमिका निभा सकती हैं. अदरक, लहसुन और हल्दी जैसे भारतीय मसालों से इम्युनिटी मजबूत होने का जिक्र आयुर्वेद और मेडिसिन की तमाम किताबों में है. हालांकि, इन तमाम बातों के अलावा चुनौतियां भी कम नहीं हैं. भारत की विशाल आबादी, कोरोना वायरस के टेस्ट कम होना और डायबिटीज समेत तमाम बीमारियों से लोगों का ग्रसित होना कोरोना वायरस के खतरे को बढ़ा सकता है.
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अभी तक के डेटा से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि भारतीय कोरोना वायरस से लड़ने में बाकी देशों के लोगों की तुलना में ज्यादा सक्षम हो सकते हैं हालांकि, इसे लेकर अभी काफी शोध की जरूरत है. अभी किसी सटीक नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी. हमारे लिए जरूरी है कि हम कोरोना वायरस के संक्रमण को सीमित करें. भारत सरकार लॉकडाउन के जरिए इसे फैलने से रोकने की कोशिश कर रही है. हमें भी सोशल डिस्टैंसिंग के नियमों का पूरी तरह पालन कर अपना योगदान देना होगा. ऐसा करके हम कोरोना वायरस से मजबूत तरीके से लड़ सकते हैं और बाकी देशों में कोरोना से हुई तबाही से अपने देश को बचा सकते हैं.
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