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PAK-बांग्लादेश को ज्यादा छूट क्यों? 2019 में ही US ने भारत को GSP से निकाला... कहा था- अब ये मजबूत देश!

US India Trade Deal: अमेरिका को नहीं, पूरी दुनिया को पता है कि भारत का बाजार कितना बड़ा है, और साल-दर-साल इसका दायरा बढ़ता जा रहा है. अमेरिका को इसका अहसास 2019 में ही हो गया था.

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भारत दुनिया में सबसे ज्यादा तेज गति से आर्थिक तरक्की करने वाला देश है. (Photo: File)
भारत दुनिया में सबसे ज्यादा तेज गति से आर्थिक तरक्की करने वाला देश है. (Photo: File)

दुनियाभर में अमेरिकी सरकार के रेसिप्रोकल टैरिफ को ल‍ेकर क‍िए जा रहे फैसलों पर हड़कंप मचा हुआ है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार टैरिफ को लेकर बयान दे रहे हैं. भारत भी इससे अछूता नहीं रहा. ट्रंप ने 1 अगस्त की डेडलाइन थी, फिर अचानक भारत पर एकतरफा 25 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी, साथ ही पेनॉल्टी अलग से. इस पर भारत ने अपनी सधी हुई प्रतिक्रिया दी.
 
एक तरह से ट्रंप ने भारत पर टैरिफ थोपने की कोशिश की थी, अमेरिका ने भारत पर 25%, पाकिस्तान पर 19%, बांग्लादेश पर 20%, श्रीलंका पर 20% और अफगानिस्तान पर 15% टैरिफि लगाने का ऐलान किया. ट्रंप की टैरिफ लिस्ट से ये पता चलता है कि अमेरिका ने भारत के मुकाबले पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों को तरजीह दी है. अब इसके पीछे क्या कारण हैं, ये जानने की कोशिश करते हैं. 

पाकिस्तान की मदद करने के पीछे अमेरिका के कई कारण और मजबूरियां हैं- रणनीतिक, सुरक्षा और भू-राजनीतिक. लेकिन सबसे बड़ा कारण यह है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान और मध्य एशिया के बीच एक रणनीतिक स्थान पर स्थित है. 2001 में अमेरिका को अफगानिस्तान में सैन्य अभियान और आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के लिए पाकिस्तानी जमीन और हवाई मार्गों की जरूरत पड़ी थी. 

पाकिस्तान से दोस्ती के पीछे ये मजबूरियां

इसके अलावा, पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं, और अमेरिका नहीं चाहता कि ये हथियार असुरक्षित हाथों में जाएं. इस वजह से भी वह पाकिस्तान के साथ नहीं चाहकर भी दोस्ती बनाए रखता है. अमेरिका पाकिस्तान को सहायता देकर उसे चीन के अत्यधिक प्रभाव में जाने से रोकना चाहता है, क्योंकि चीन धीरे-धीरे आर्थिक तौर पर पाकिस्तान में घुसते जा रहा है. चीन CPEC (चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) में भारी निवेश कर चुका है. चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए अमेरिका पाकिस्तान को अपने पाले में रखने की कोश‍िश में जुटा हुआ है. 

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बांग्लादेश भी आर्थिक तौर पर इतना मजबूत नहीं है कि वो अमेरिका के सामने बैठकर सवाल-जवाब कर सके. फिर जो फैसला अमेरिका सुनाएगा वो बांग्लादेश को भी मानना पड़ेगा. वहीं दोनों के बीच कारोबारी आंकड़ा बहुत ज्यादा नहीं है. कुल मिलाकर इन्हीं कारणों से अमेरिका अब पाकिस्तान और बांग्लादेश को भारत के मुकाबले थोड़ी राहत दे रहा है. 

अब भारत और अमेरिका के रिश्ते की बात करते हैं. आज के दौर में भारत और अमेरिका के संबंध रणनीतिक, आर्थिक और तकनीकी रूप से काफी महत्वपूर्ण और मजबूत हैं. दोनों देशों के बीच व्यापार, रक्षा, शिक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ता जा रहा है. हाल के वर्षों में क्वाड, इंडो-पैसिफिक रणनीति और तकनीकी साझेदारी ने इन संबंधों को और मजबूत किया है. 

भारत आज तरक्की की राह पर 

आज की तारीख में भारत दुनिया में सबसे ज्यादा तेज गति से आर्थिक तरक्की करने वाला देश है. भारत एक उभरती महाशक्ति है और वह बराबरी के आधार पर समझौते चाहता है, जबकि पाकिस्तान और बांग्लादेश को अमेरिका अपने भू-राजनीतिक हितों के तहत टैरिफ राहत देता है. लेकिन भारत का वैश्विक प्रभाव और बाजार इतना बड़ा है कि अमेरिका भी अब उसे नज़रअंदाज नहीं कर सकता. ट्रंप की बातचीत में वो दर्द छलक रहा है. गौरतलब है क‍ि वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपत‍ि भारत के लिए 'टैरिफ किंग' जैसे शब्द का इस्तेमाल करते हैं. 

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मौजूदा हालात में डोनाल्ड ट्रंप जो चाहते हैं, उसपर भारत समझौते के ल‍िए बिल्कुल तैयार नहीं है. भारत एक संतुलित समझौता चाहता है, जो उसके 140 करोड़ लोगों, विशेष रूप से 70 करोड़ कृषि-निर्भर आबादी के हितों की रक्षा करे. भारत अपनी खाद्य सुरक्षा, किसानों के हित, और रणनीतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता दे रहा है, जबकि अमेरिका अपने उत्पादों के लिए भारतीय बाजार में अधिक पहुंच चाहता है, और इसी कड़ी में ट्रंप दबाव बनाने के लिए भारत-रूस रिश्ते का जिक्र और पाकिस्तान से तेल खरीदने जैसे दांव चल रहे हैं. भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी  इकोनॉमी है. 

अमेरिका को नहीं, पूरी दुनिया को पता है कि भारत का बाजार कितना बड़ा है, और साल-दर-साल इसका दायरा बढ़ता जा रहा है. अमेरिका को इसका अहसास 2019 में ही हो गया था. अमेरिका को पता है कि आज की तारीख में भारत की तुलना किसी भी स्तर पर पाकिस्तान और बांग्लादेश से नहीं की जा सकती. अमेरिकी चश्मे से देखें तो 5 जून 2019 को अमेरिका ने भारत को GSP कार्यक्रम से बाहर करके इसका उदाहरण दिया था.  

अब बताते हैं कि ये GSP है क्या?
Generalized System of Preferences (GSP) एक ऐसी व्यापारिक व्यवस्था है, जिसमें विकसित देश विकासशील देशों को उनके कुछ उत्पादों पर रियायती या शून्य टैरिफ के साथ इंपोर्ट की सुविधा देते हैं. इसका मकसद विकासशील देशों के आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और उनके निर्यात को प्रोत्साहित करना है. 

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यह विश्व व्यापार संगठन (WTO) के Most Favoured Nation (MFN) सिद्धांत से एक अपवाद है, जिसे 1971 में UNCTAD के तहत शुरू किया गया था. GSP के तहत भारत को अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान जैसे देशों में अपने उत्पादों (जैसे कृषि, हस्तशिल्प, रसायन) पर कम या जीरो सीमा शुल्क का लाभ मिलता था. भारत 1974 से अमेरिका के GSP कार्यक्रम का सबसे बड़ा लाभार्थी था, जिसके तहत 2018 में लगभग 6.35 बिलियन डॉलर के निर्यात पर टैरिफ छूट मिली थी. लेकिन साल 2019 में अमेरिका ने भारत को GSP से बाहर कर दिया. 

अमेरिका ने 2019 में भारत को GSP से क्यों बाहर निकाला?
अमेरिका ने 2019 में ये भी तर्क दिया था कि अब भारत पर्याप्त रूप से आर्थिक तौर पर विकसित हो चुका है, जिसके कारण उसे GSP जैसे विशेष लाभ की आवश्यकता नहीं है. लेकिन बांग्लादेश और पाकिस्तान की स्थिति अब भी बेहद खराब है. यानी अमेरिका ने आज से 5 साल पहले ही मान चुका था कि भारत पर दबाव बनाकर व्यापार नहीं किया जा सकता है. 

उस समय भी ट्रंप आज वाला ही राग अलाप रहे थे. अमेरिका का दावा था कि भारत अमेरिकी उत्पादों को अपने बाजारों में सही से प्लेटफॉर्म देने में नाकामयाब रहा. खासकर भारत की कुछ नीतियों, जैसे उच्च टैरिफ और सख्त ई-कॉमर्स नियम को अमेरिका ने व्यापार में बाधा बताया था. अमेरिका ने भारत के साथ व्यापार घाटे (2017-18 में 21 बिलियन डॉलर) को कम करने के लिए दबाव बनाया था, उस समय अमेरिक में ट्रंप की सरकार थी और अमेरिकी प्रशासन ने भारत को 'टैरिफ किंग' कहकर आलोचना की और पारस्परिकता (reciprocity) की मांग की.  

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यही नहीं, किसी भी व्यापारिक मुद्दे को लेकर अब भारत दुनिया के किसी भी देश से साथ बराबरी की बात करता है, मजबूरी में सौदा नहीं करता. चाहे सामने अमेरिका हो, चीन हो या फिर जापान-कनाडा. भारत व्यापारिक समझौते के दौरान अपने देशहित को सबसे ऊपर रखता है. क्योंकि भारत का इतना बड़ा बाजार है, जहां हर कोई अपना सामान बेचना चाहता है, फिर अमेरिका नहीं तो कोई और सही. वहीं अगर अमेरिका भारत से सामान नहीं खरीदेगा तो अन्य विकल्पों पर भारत विचार करेगा, लेकिन घुटने नहीं टेकेगा.

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