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सिंगल हैं तो नहीं मिलेगा फ्लैट, बैचलर्स को किराये पर घर देने से क्यों डरते हैं लोग?

ग्रेटर नोएडा वेस्ट की गौड़ सौंदर्यम सोसायटी के एओए ने मकान मालिकों के साथ मिलकर फैसला किया है कि अब उनकी सोसायटी में किसी भी बैचलर को किराए पर घर नहीं दिया जाएगा.

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बैचलर को किराए पर घर क्यों नहीं?(Photo: AI-generated)
बैचलर को किराए पर घर क्यों नहीं?(Photo: AI-generated)

अगर आप बैचलर हैं तो ग्रेटर नोएडा वेस्ट के कई सोसायटीज में आपको किराए पर घर मिलना मुश्किल हो सकता है. कुछ दिन पहले ही ग्रेटर नोएडा वेस्ट की गौड़ सौंदर्यम के एओए ने मकान मालिकों के साथ मिलकर फैसला किया है कि अब उनकी सोसायटी में किसी भी बैचलर को किराए पर घर नहीं दिया जाएगा. ग्रेटर नोएडा वेस्ट की हाई-राइज सोसायटीज में बैचलर्स को किराए पर घर देने में हिचक आम बात है.

नोएडा की एक सोसायटी में बोर्ड लगाकर लिखा गया था कि बैचलर्स को किराए पर फ्लैट नहीं दिए जाएंगे. इसका कारण सोसायटी प्रबंधन ने पिछली आपराधिक गतिविधियों को बताया था, जिसमें कथित तौर पर बैचलर्स शामिल थे. इसके अलावा, कुछ सोसायटीज ने तो अविवाहित किरायेदारों से उनके परिवार की सहमति का प्रमाण पत्र मांगना शुरू कर दिया है, खासकर अगर वे लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हों. नोएडा की एक सोसायटी ने तो मकान मालिकों को निर्देश दिया कि वे अविवाहित किरायेदारों से विवाह प्रमाण पत्र या परिवार की सहमति पत्र जमा करवाएं. 

 

ग्रेटर नोएडा वेस्ट ही नहीं देश के कई शहरों की है ये कहानी

हमारे देश में अगर आप अविवाहित हैं, और खासकर एक लड़की हैं, तो किराए पर घर मिलना किसी जंग से कम नहीं है. ये कहानी आज की नहीं सालों से चली आ रही है. नोएडा की एक कंपनी में काम करने वाली सुनीता बताती हैं कि 20 साल पहले जब वो प्रयागराज से नोएडा नौकरी करने आई तो नौकरी ढूढ़ने से कम चुनौती नहीं थी किराए का घर खोजने की. वो जिस कंपनी में काम करती थी, वहां उनकी शिफ्ट शााम को 3 बजे से शुरू होती थी और घर आते-आते 12 बज जाते थे, एक तो उनकी ड्यूटी टाइमिंग और साथ में लड़की होने की सजा मिली. वो बताती हैं- 'लोग घर देने को तैयार नहीं होते थे. मैं करीब 6 महीने तक दिल्ली के द्वारका में अपने रिश्तेदार के घर रही और वहां से रोज नोएडा आती जाती थी, रोज 3 से 4 घंटे का सफर करना पड़ता था, बहुत मुश्किल से एक किराए का घर मिला था.'

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आज भी नहीं सुधरे हालात

सुनीता की कहानी तो 20 साल पुरानी है, लेकिन आज भी हालात नहीं बदले हैं. आज के दौर में भी बैचलर का वही हाल है; लोग ऐसे लोगों को घर किराए पर देने से कतराते हैं. ऐसे में बैचलर की मुश्किल यह है कि वे नौकरी करने तो इन शहरों में आ जाते हैं, लेकिन रहने का ठिकाना कैसे ढूंढें. यह घटना दिल्ली और एनसीआर की नहीं है, बल्कि देश के कई शहरों का यही हाल है. कुछ दिन पहले लखनऊ की एक लड़की ने किराए पर घर लिया. सारी बातचीत हो गई, लेकिन जब मकान मालिक को पता चला कि वह शादीशुदा नहीं है और अकेली रहेगी, तो मकान मालिक ने उसे घर देने से साफ इनकार कर दिया. इस तरह की घटनाएं हमारे समाज में फैले गहरे भेदभाव को भी उजागर करती हैं. अक्सर सोशल मीडिया पर लोग अपना अनुभव साझा करते हुए दिख जाते हैं.

आखिर बैचलर लोगों से क्यों डरते हैं मकान मालिक?

पुरानी धारणाएं: कई मकान मालिक और सोसायटी निवासी मानते हैं कि बैचलर्स शोर मचाते हैं, देर रात तक पार्टियां करते हैं, या सोसायटी की "मर्यादा" को तोड़ते हैं. हालांकि, यह धारणा हर बैचलर पर लागू नहीं होती, फिर भी लोग इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं.

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लड़कियों पर अतिरिक्त बंदिशें: अविवाहित लड़कियों को विशेष रूप से चरित्र के आधार पर जज किया जाता है. पड़ोसियों या सोसायटी प्रबंधन को डर रहता है कि सिंगल लड़कियां अपने दोस्तों को लाएंगी या सोसायटी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाएंगी.

सोसायटी और बिल्डर्स का दबाव: कई बार मकान मालिक किराए पर घर देने को तैयार होते हैं, लेकिन सोसायटी प्रबंधन या बिल्डर नियम बनाकर बैचलर्स को रोकते हैं. कुछ मामलों में, बिल्डर्स का कहना है कि बैचलर्स के कारण सोसायटी में अशांति फैलती है.

सुरक्षा की चिंता: कुछ सोसायटीज का तर्क है कि बैचलर्स के कारण सुरक्षा संबंधी समस्याएं बढ़ सकती हैं, जैसे कि असामाजिक तत्वों का आना-जाना. हालांकि, इसके लिए कोई ठोस सबूत नहीं दिए जाते.

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क्या यह भेदभाव गैरकानूनी है?

भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत, सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त है, और लिंग, धर्म, जाति, या अन्य आधार पर भेदभाव स्वीकार्य नहीं है. हालांकि, वैवाहिक स्थिति (marital status) को स्पष्ट रूप से भेदभाव के आधार के रूप में उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन इसे "अन्य आधार" के तहत शामिल किया जा सकता है. किसी को केवल अविवाहित होने के कारण किराए पर घर देने से मना करना एक प्रकार का सामाजिक भेदभाव है, जो संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है.

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इसके अलावा, मॉडल टेनेंसी एक्ट 2021 (Model Tenancy Act) के तहत, किरायेदारी से संबंधित नियमों को स्पष्ट किया गया है. यह कानून मकान मालिकों को किरायेदारों के साथ उचित व्यवहार करने और पारदर्शी किरायेदारी समझौते करने का निर्देश देता है. हालांकि, यह कानून स्पष्ट रूप से वैवाहिक स्थिति के आधार पर भेदभाव को संबोधित नहीं करता, लेकिन यह मकान मालिकों को अनुचित शर्तें थोपने से रोकता है.

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कोई मकान मालिक या सोसायटी बैचलर्स को किराए पर घर देने से मना करता है, तो प्रभावित व्यक्ति उपभोक्ता अदालत या सिविल कोर्ट में शिकायत दर्ज कर सकता है. इसके लिए, किरायेदार को यह साबित करना होगा कि भेदभाव वैवाहिक स्थिति के आधार पर किया गया. हालांकि, भारत में इस तरह के मामलों में कानूनी कार्रवाई अभी तक आम नहीं है, क्योंकि ज्यादातर लोग इस तरह की परेशानियों से बचने के लिए दूसरा घर ढूंढ लेते हैं.

ग्रेटर नोएडा वेस्ट में बैचलर्स को किराए पर घर न मिलने की समस्या गंभीर है, क्योंकि यह क्षेत्र दिल्ली, गुड़गांव, और फरीदाबाद में काम करने वाले युवा पेशेवरों के लिए एक किफायती है. कई सोसायटीज में 25% तक किरायेदार बैचलर्स हैं, लेकिन नए नियमों के तहत उन्हें घर देना बंद कर दिया गया तो सबको बहुत मुश्किल होगी. 

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