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विधायक बचाएं कि अपना और बेटे का भविष्य? उपेंद्र कुशवाहा के सामने ट्रिपल संकट

बिहार के सियासी चक्रव्यूह में उपेंद्र कुशवाहा लगातार घिरते जा रहे हैं. एक तरफ आरएलएम के विधायकों के बागी तेवर हैं तो दूसरी तरफ अपनी राज्यसभा सीट को बचाए रखने की चुनौती है. इस तरह उपेंद्र कुशवाहा के सामने ट्रिपल संकट गहरा गया है.

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उपेंद्र कुशवाहा के सामने सियासी कुनबा बचाने की चुनौती (Photo-ANI)
उपेंद्र कुशवाहा के सामने सियासी कुनबा बचाने की चुनौती (Photo-ANI)

बिहार की राजनीति में उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू से अलग होकर अपनी पार्टी बनाते हैं. इसके बाद बीजेपी के साथ मिलकर अपना सियासी महल खड़ा करते हैं, लेकिन फिर कुछ दिनों के बाद वह ढह जाता है. एक बार फिर उनके सामने वैसा ही संकट खड़ा हो गया है. इस बार उपेंद्र कुशवाहा के सामने 'ट्रिपल संकट'है.

राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा पर खरमास भारी पड़ रहा है. एक तरफ उपेंद्र कुशवाहा का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है तो दूसरी ओर उन्हें अपना राजनीतिक कुनबा बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. यही नहीं कुशवाहा को अपने बेटे के सियासी भविष्य को भी सुरक्षित रखने की चिंता है.

कुशवाहा के सामने कुनबा बचाने की चुनौती

उपेंद्र कुशवाहा ने बुधवार को पटना आवास पर डिनर पार्टी रखी थी. कुशवाहा की इस दावत में उनकी पार्टी के चार विधायकों में से तीन विधायक शिरकत नहीं किए. ये विधायक माधव आनंद, रामेश्वर महतो और आलोक सिंह हैं. इन तीनों ने कुशवाहा की डिनर पार्टी में शामिल नहीं हुए, लेकिन दिल्ली जाकर बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन से मुलाकात करते हैं.

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हालांकि, इसे औपचारिक बधाई मुलाकात बताया जा रहा है, लेकिन बिहार के राजनीतिक गलियारों में इसे कुशवाहा की पार्टी में टूट का खतरा बताया जा रहा है. आरएलएम विधायकों का अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष की दावत को छोड़कर सहयोगी दल के टॉप लीडरशिप से मिलना किसी बड़ी सियासी चाल की ओर इशारा कर रहा है.

कुशवाहा के सामने अपने कुनबे के बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. एक तरफ तीन विधायक बागी तेवर अपन रहे हैं तो दूसरी तरफ पार्टी नेताओं का कुशवाहा का साथ छोड़ने का सिलसिला जारी है.

आरएलएस के व्यावसायिक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके अनंत कुमार गुप्ता ने गुरुवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया और जेडीयू में शामिल हो सकते हैं. इसके अलावा पार्टी में असंतोष की मुख्य वजह उपेंद्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश को नीतीश कैबिनेट में मंत्री बनाया जाना माना जा रहा है. एक के बाद एक वरिष्ठ नेताओं के छोड़ने और विधायकों की बागी रुख ने कुशवाहा को बैकफुट पर धकेल दिया है।

कुशवाहा को फिर मिलेगा राज्यसभा का टर्म

उपेंद्र कुशवाहा का राज्यसभा का कार्यकाल अप्रैल 2026 में खत्म हो रहा है. कुशवाहा के सहित पांच राज्यसभा सदस्यों का टर्म पूरा हो रहा है. आरजेडी की 2 सीटें, जेडीयू की दो और एक उपेंद्र कुशवाहा की सीट है. बिहार की मौजूदा विधानसभा की स्थिति के लिहाज से जेडीयू और बीजेपी 2-2 सीटों पर अपने राज्यसभा बना सकती है और एक सीट विपक्ष को मिल सकती है. 2024 के लोकसभा चुनाव में कुशवाहा को हार के बाद बीजेपी ने राज्यसभा भेजा था.

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एनडीए के दो सहयोगी केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी और चिराग पासवान ने भी राज्यसभा के लिए अपनी दावेदारी ठोंक दी है. ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा को अपने लिए राज्यसभा के कार्यकाल के लिए बीजेपी के ऊपर निर्भर रहना होगा. ऐसे में देखना होगा बीजेपी बिहार के तीन सहयोगी दलों में किसे राज्यसभा की सीट देती है. बीजेपी के अपने नेता भी दावेदार है, जिसके चलते कुशवाहा के लिए अपनी संसद की सीट को बचाए रखना आसान नहीं है.

कुशवाहा के सामने बेटे के भविष्य के बचाना

उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार में बनी नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में अपने बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री बनवाया है. दीपक प्रकाश मौजूदा समय में ना ही विधायक हैं और ना ही विधान परिषद सदस्य. 2025 के चुनाव के दौरान एनडीए की सीट शेयरिंग में विधान परिषद की एक सीट कुशवाहा की पार्टी को देने की बात कही गई थी. ऐसे में माना जा रहा है कि उस सीट पर कुशवाहा अपने बेटे दीपक प्रकाश को विधान परिषद भेजकर राजनीतिक भविष्य सुरक्षित कर देना चाहते हैं.

हालांकि, कुशवाहा की पार्टी के चार में तीन विधायकों के बगावती तेवर ने सियासी टेंशन बढ़ा दी है. कुशवाहा की पार्टी के विधायक जिस तरह बीजेपी के अध्यक्ष के साथ नजदीकियां बढ़ा रहे हैं, उससे दीपक प्रकाश को विधान परिषद की सीट मिलेगी या नहीं, यह कहना संभव नहीं है

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 राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर कुशवाहा ने जल्द ही अपने विधायकों और नाराज नेताओं को नहीं मनाया, तो उनकी पार्टी का वजूद खतरे में पड़ सकता है. ऐसे में उन्हें अपने कुनबे के साथ अपना और बेटे का भी भविष्य सेफ करने की टेंशन बन गई है.

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