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'पुत्र मोह में धृतराष्ट्र बन गए हैं लालू...', बिहार चुनाव में RJD की दुर्गति पर शिवानंद तिवारी की खरी-खरी, तेजस्वी को भी घेरा

आरजेडी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने बिहार चुनाव में पार्टी की बुरी हार के बाद लालू यादव और तेजस्वी पर जमकर निशाना साधा है. उन्होंने लालू यादव को धृतराष्ट्र और तेजस्वी को सपनों की दुनिया में रहने वाला नेता करार दिया है.

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राजद के पूर्व उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने बिहार चुनाव में आरजेडी के बुरे प्रदर्शन के लिए लालू और तेजस्वी को जिम्मेदार ठहराया. (File Photo: X/@RJD)
राजद के पूर्व उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने बिहार चुनाव में आरजेडी के बुरे प्रदर्शन के लिए लालू और तेजस्वी को जिम्मेदार ठहराया. (File Photo: X/@RJD)

बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल और महागठबंधन की करारी हार के बाद तेजस्वी यादव अपने ही परिवार और पार्टी में​ घिर गए हैं. उन्हें और उनके सलाहकारों को पार्टी की इस दुर्गती के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. इसी कड़ी में कभी राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और लालू यादव के करीबी रहे शिवानंद तिवारी ने तेजस्वी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर एक पोस्ट में यहां तक कह दिया कि लालू यादव पुत्र मोह में धृतराष्ट्र बन चुके हैं.

बिहार आंदोलन के दौरान शिवानंद तिवारी और लालू यादव साथ में जेल में बंद थे. राजद के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने उन यादों को ताजा करते हुए फेसबुक पोस्ट में लिखा, 'हम दोनों फुलवारी शरीफ जेल के एक ही कमरे में बंद थे. लालू आंदोलन का बड़ा चेहरा थे, लेकिन उनकी आकांक्षा छोटी थी. रात में भोजन के बाद सोने के लिए जब हम अपनी-अपनी चौकी पर लेटे थे, तब लालू यादव ने अपने भविष्य के सपने को मुझसे साझा किया था. लालू ने मुझसे कहा कि बाबा... मैं राम लखन सिंह यादव जैसा नेता बनना चाहता हूं .'

सपनों की दुनिया में रहते हैं तेजस्वी: शिवानंद

शिवानंद तिवारी ने आगे लिखा, 'लगता है कि कभी-कभी ऊपर वाला शायद सुन लेता है. आज दिखाई दे रहा है कि उनकी वह इच्छा पूरी हो गई है. संपूर्ण परिवार ने जोर लगाया. उनकी पार्टी के मात्र 25 विधायक ही जीते. मन में यह सवाल उठ सकता है कि मैं तो स्वयं उस पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष था, उसके बाद ऐसी बात मैं क्यों कह रहा हूं? मैं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष था, यह अतीत की बात हो गई. तेजस्वी ने मुझे न सिर्फ उपाध्यक्ष पद से हटाया बल्कि कार्यकारिणी में भी जगह नहीं दी. ऐसा क्यों? क्योंकि मैं कह रहा था कि मतदाता सूची का सघन पुनर्निरीक्षण लोकतंत्र के विरुद्ध साजिश है.'

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Shivanand Tivary

पूर्व राजद उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने अपने ​पोस्ट में लिखा, 'मैं तेजस्वी से कहता था कि मतदाता सूची के  पुनर्निरीक्षण (Special Intensive Revision) के खिलाफ राहुल गांधी के साथ सड़क पर उतरो... संघर्ष करो... पुलिस की मार खाओ... जेल जाओ. लेकिन वह तो सपनों की दुनिया में मुख्यमंत्री का शपथ ले रहा था. उसको झकझोर कर उसके सपनों में मैं विघ्न डाल रहा था. लालू यादव धृतराष्ट्र की तरह बेटे के लिए राज सिंहासन को गर्म कर रहे थे. अब मैं मुक्त हो चुका हूं. फुर्सत पा चुका हूं. अब कहानियां सुनाता रहूंगा.'

बिहार आंदोलन से निकले नेता हैं लालू यादव

बिहार आंदोलन (Bihar Movement) 1974–75 में  शुरू हुआ एक बड़ा जनांदोलन था, जिसका नेतृत्व जयप्रकाश नारायण (JP) ने किया था. इसे जेपी आंदोलन या संपूर्ण क्रांति आंदोलन भी कहा जाता है. 1970 के दशक में बिहार में बेरोजगारी बढ़ रही थी, महंगाई उच्च स्तर पर थी, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अव्यवस्था फैल रही थी. इसे लेकर छात्रों, नौजवानों और आम जनता में नाराजगी थी. इन मुद्दों को लेकर पटना में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया. बाद में उन्होंने जयप्रकाश नारायण से आह्वान किया कि वे इस आंदोलन का नेतृत्व करें. 

जेपी ने इस आंदोलन को 'संपूर्ण क्रांति' नाम दिया, जिसके प्रमुख पहलू थे- राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव, भ्रष्टाचार खत्म करना, शिक्षा सुधार, सामाजिक न्याय, लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा. बिहार आंदोलन का प्रभाव केवल राज्य तक सीमित नहीं रहा. इसका असर पूरे देश में महसूस हुआ और​ जिसने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ माहौल बनाया. 1975 में आपातकाल लागू होने की पृष्ठभूमि तैयार की. इसी आंदोलन के बाद इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की. इसका असर ये हुआ कि देश में पहली गैर–कांग्रेसी (1977 की जनता पार्टी सरकार) बनी. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव इसी आंदोलन से निकले नेता हैं, जिन्होंने केंद्र और बिहार की राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़ी.

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लालू की प्रेरणा राम लखन सिंह यादव कौन थे? 

राम लखन सिंह यादव का जन्म 9 मार्च 1920 को बिहार (तत्कालीन पटना जिला) के हरिरामपुर गांव में हुआ था. वह यादव समाज से थे और उन्हें 'शेर-ए-बिहार' और 'रामलखन बाबू' भी कहा जाता है. वह स्वतंत्रता सेनानी थे और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से जुड़े थे. उन्होंने लंबे समय तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे. के. बी. सहाय सरकार में 1963-67 के बीच बिहार के लोक निर्माण मंत्री रहे. बाद में केंद्र की राजनीति में भी सक्रिय हुए और 1991-1996 तक दसवीं लोकसभा के सदस्य थे. वह 1994-96 में केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री रहे.

राम लखन सिंह यादव की सामाजिक नीति और दृष्टि में शिक्षा और पिछड़े वर्गों का उत्थान प्रमुख था. वह समाज सुधारक थे. उनकी सोच में 'सभी के लिए शिक्षा' की भावना बहुत मजबूत थी. उन्होंने बिहार में कई कॉलेज और स्कूल स्थापित कराने में मदद की, जिससे पिछड़े और गरीब वर्गों तक शिक्षा पहुंच सके. कई शैक्षणिक संस्थान उनके नाम पर हैं, जैसे रांची का राम लखन सिंह यादव कॉलेज. राम लखन सिंह यादव का 16 जनवरी 2006 को निधन हुआ था. उन्हें सामाजिक एकता (समरसता) का प्रतीक माना जाता है.

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