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फ्लोर टेस्ट से पहले ही बिहार NDA में खटपट, आखिर नाराज क्यों हैं जीतनराम मांझी और नीतीश सरकार का गेम कितना बिगाड़ सकते हैं? समझिए नंबरगेम

बिहार के कांग्रेस विधायकों को हैदराबाद भेजने के बाद सियासी सरगर्मी बढ़ी हुई है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में 12 फरवरी को एनडीए सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करना है. लेकिन, टूट का डर कांग्रेस को सता रहा है. कांग्रेस से तमाम विधायकों को हैदराबाद भेजा गया है. वहीं, जीतनराम मांझी की प्रेशर पॉलिटिक्स ने एनडीए की टेंशन बढ़ा दी है.

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बिहार की नई एनडीए सरकार में नीतीश कुमार और जीतनराम मांझी की पार्टी शामिल है.
बिहार की नई एनडीए सरकार में नीतीश कुमार और जीतनराम मांझी की पार्टी शामिल है.

बिहार में फ्लोर टेस्ट से पहले ही सियासत में संकट के बादल मंडराने लगे हैं. एक तरफ कांग्रेस में टूट का डर है तो दूसरी तरफ बिहार के सत्ताधारी गठबंधन एनडीए में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. नीतीश सरकार को समर्थन दे रहे HAM प्रमुख जीतनराम मांझी लगातार अपनी मांग पर अड़े हैं. मांझी का कहना है कि उनकी पार्टी को सरकार में दो मंत्री पद दिए जाने का वादा किया गया था, उसे पूरा किया जाए. अभी सिर्फ मांझी के बेटे संतोष सुमन को मंत्री बनाया गया है. मांझी की मांगों का चिराग पासवान ने भी समर्थन देकर मुद्दे को हवा दे दी है. मांझी की पार्टी के 4 विधायक हैं. एक हफ्ते पहले ही मांझी को राजद की तरफ से ऑफर दिए जाने की खबरें आई थीं. हालांकि, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (HAM) ने दावों को नकार दिया था और एनडीए के साथ रहने का दम भरा था. चर्चा है कि मांझी की प्रेशर पॉलिटिक्स के आगे नीतीश सरकार को झुकना पड़ सकता है. राज्य में विधानसभा का नंबरगेम बड़ी वजह बन रहा है.

दरअसल, 12 फरवरी को बिहार विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होना है. विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं. सरकार बनाने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है. इसके लिए 122 विधायकों का समर्थन जरूरी है. सत्ता पक्ष के पास 128 विधायकों का समर्थन है. यानी बहुमत से 5 ज्यादा विधायक समर्थन में हैं. बीजेपी के 78, HAM  के 4, जदयू के 45 और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन हासिल है. वहीं, विपक्ष की बात करें तो कुल 114 विधायकों का समर्थन है. यानी बहुमत से सिर्फ 8 विधायकों की दूरी. राजद के 79, कांग्रेस के 19 और लेफ्ट के 16 विधायक हैं. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM का भी एक विधायक है, जो ना तो एनडीए में शामिल है और ना ही महागठबंधन में.

'एनडीए की राह में मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं मांझी?'

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इससे पहले जेडीयू विधायक गोपाल मंडल ने ये कहकर चौंका दिया कि बहुमत परीक्षण में कुछ भी हो सकता है. उधर, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव पहले ही कह चुके हैं कि बिहार की सियासत में खेल अभी बाकी है. अब उनकी पार्टी के नेता दावा कर रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि मांझी ही NDA की राह में मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं. हालांकि जीतनराम के बेटे संतोष सुमन ऐसी किसी अटकलों से इनकार कर रहे हैं. एक और मंत्री पद की दावेदारी को पार्टी नेताओं की इच्छा बता रहे हैं. संतोष कहते हैं कि पार्टी के संरक्षक की डिमांड है. उनकी बात को गौर से सुना जाए तो उन्होंने (जीतनराम) कहा था कि हम नरेंद्र मोदी जी के प्रति आस्था रखते हैं और हम यहीं रहेंगे. उन्होंने मांग की है. अगर मंत्री के तौर पर मुझसे पूछते हैं  तो मैं यही कहूंगा कि जो मुझे मिला है, उससे संतुष्ट हैं और मिलकर काम करेंगे.

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'महत्वपूर्ण विभाग चाहता है HAM'

हालांकि, बिहार की सियासत में दांव-पेच से माहौल गरमाया हुआ है. HAM की कोशिश है कि नई सरकार में एक महत्वपूर्ण विभाग लिया जाए. या एक और मंत्री की मांग को आगे बढ़ाया जाए. चूंकि जीतनराम मांझी के बारे में चर्चा होती रही है कि वो महागठबंधन खेमे के संपर्क में है. ऐसी खबरें बार-बार आईं और मंत्री संतोष सुमन ने इन खबरों को खारिज किया.

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'जब इस्तीफे की चर्चाओं पर संतोष को देनी पड़ी सफाई'

रविवार देर शाम भी एक चर्चा सामने आई कि मांझी के बेटे संतोष सुमन ने नई सरकार के कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. चर्चा इतनी ज्यादा हुई कि बाद में खुद संतोष सुमन ने ट्वीट करके कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है और मैं एनडीए के साथ हूं. चर्चाएं कई तरह की हो रही हैं. जीतनराम मांझी की तरफ से लगातार यह कहा जाता रहा है कि दूसरे खेमे से डिप्टी सीएम और सीएम पद का ऑफर मिल रहा है. उसके बावजूद वो एनडीए के साथ खड़े हैं. अब एनडीए की सरकार में जीतनराम मांझी के बेटे संतोष सुमन को जो विभाग (एससी-एसटी कल्याण विभाग) दिया गया है, वो वही पुराना मंत्रालय है जिसकी जिम्मेदारी पहले भी महागठबंधन की सरकार में संतोष के पास रही है. 

'एनडीए की नाव डुबाएंगे मांझी'

इन कयासों को आरजेडी भी खूब भुना रही है. आरजेडी नेता मृत्युंजय तिवारी कहते है कि मांझी जी को एनडीए की नाव डुबाएंगे और पतवार की लेकर भागेंगे. उनका सम्मान नहीं हो रहा है. उनकी जो मांग है, वो एनडीए के लोग पूरा नहीं करेंगे. अभी तक कोई काम एक कदम आगे नहीं बढ़ा है. ये बता रहा है कि सबकुछ गड़बड़ है और ये आने वाले तूफान के पहले की खामोशी है.

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इधर, बिहार में बदली सियासत के बीच डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की है. जाहिर है कि बिहार में अब लोकसभा चुनाव की गहमागहमी है. दोनों ओर से तैयारी 40 सीटों की जंग को लेकर हो रही है. लेकिन इस बीच हो रही बयानबाजी से सियासत अलग रंग ले रही है.

'बन-बिगड़ सकते हैं सियासी समीकरण?'

बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM का भी एक विधायक है, जो ना तो एनडीए में शामिल है और ना ही महागठबंधन में. आंकड़ों को देखें तो एनडीए हो या महागठबंधन, नीतीश कुमार की पार्टी जिधर का रुख कर लेती है, उधर आसानी से सरकार बन और बिगड़ जाती है. फिलहाल, महागठबंधन को सरकार बनाने के लिए आठ विधायकों का समर्थन जुटाना होगा. जीतनराम मांझी की हम पार्टी अगर महागठबंधन के साथ जाने का विकल्प चुनती है तो विधायकों का आंकड़ा 118 तक पहुंच जाएगा. AIMIM के एकमात्र विधायक का समर्थन भी अगर राजद नेतृत्व को मिल जाता है तो फिर महागठबंधन को सिर्फ तीन विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी.

'BJP भी हो गई है अलर्ट?'

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दूसरा विकल्प यह भी है कि महागठबंधन मांझी और AIMIM को साथ लाए और फिर जेडीयू या बीजेपी में सेंध लगा दे. मांझी और ओवैसी के विधायक के साथ आने के बाद जेडीयू या बीजेपी के छह विधायक अगर विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दें तो बिहार विधानसभा की सदस्य संख्या 237 रह जाएगी और फिर बहुमत का आंकड़ा 119 विधायकों (AIMIM+)  का होगा. ऐसे में महागठबंधन की सरकार बन सकती है.

'तोड़फोड़ के मूड में आरजेडी?'

महागठबंधन सरकार के लिहाज से तीसरी स्थिति यह है कि नीतीश या एनडीए के खेमे से 16 विधायक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दें. अगर ऐसा होता है तो बिहार विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 227 रह जाएगी. ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 114 विधायकों का रह जाएगा और इस स्थिति में भी महागठबंधन सरकार बन सकती है. लेकिन ये अगर-मगर का फेर है.

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'लालू यादव एक्टिव मोड पर'

फिलहाल, राजनीतिक जानकार कहते हैं कि बिहार की सियासत के पुराने दिग्गज लालू यादव एक्टिव मोड में हैं और आरजेडी की ओर से जोड़तोड़ की कोशिशें तेज हो गई हैं. RJD हर वो दांव आजमा रही है जिससे नीतीश के साथ छोड़ने के बाद भी सत्ता में वापसी की जा सके और तेजस्वी यादव की ताजपोशी का रास्ता साफ हो सके. अब देखना होगा कि महागठबंधन के दांव-पेच काम करते हैं या नीतीश कुमार और एनडीए भारी पड़ती है.

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जीतन राम मांझी ने क्या कहा था?

जीतनराम मांझी कहते हैं कि हमने दो मंत्रियों को देने की मांग की थी. इस संबंध में बीजेपी नेता अमित शाह और नित्यानंद राय से भी बात की थी. हालांकि, अमित शाह जी ने कहा था कि थोड़ा मुश्किल लगता है. लेकिन हम यह समझते हैं कि मुश्किल को आसान करना है अमित शाह जी के लिए बड़ी बात नहीं है. वहीं, लोजपा (रामविलास) के नेता चिराग पासवान कहते हैं कि मुझे नहीं पता कि उनकी गठबंधन के भीतर क्या बातचीत हुई. यकीनन उनके विधायकों की संख्या भले कम हो, लेकिन मौजूदा परिस्थिति में उनका महत्व काफी है. अगर गठबंधन के भीतर ऐसी कोई चर्चा हुई है तो उन्हें उचित सम्मान जरूर मिलना चाहिए.

'विपक्ष में खलबली मची है'

बीजेपी नेता अजय आलोक कहते हैं कि पूरी कांग्रेस डरी हुई है. वहां खलबली मची है. कभी झारखंड से हैदराबाद जा रहे हैं तो कभी बिहार से दिल्ली होते हुए हैदराबाद जा रहे हैं. आश्चर्य है. बहुमति साबित एनडीए को करना है और भाग रहे हैं विपक्षी. उधर राहुल गांधी भाग रहे हैं यात्रा में. इधर भाग रहे हैं हैदराबाद. विपक्ष में भागमभाग की स्थिति बनी हुई है. भागने से क्या होगा? अगर कांग्रेस के विधायकों ने मन बना लिया है कि पार्टी छोड़नी है तो वे विधानसभा में आकर बैठ जाएंगे. तब कांग्रेस क्या कर लेगी. 

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वहीं, कांग्रेस नेता राजेश राठौर ने कहा कि हमारे विधायक एक साथ हैं. कोई टूट नहीं है. अगर टूट की संभावना सबसे व्यापक है तो वो जेडीयू में है. जिसका कारण बीजेपी है. 

'पॉलिटिकल टूरिस्ट पैलेस बना हैदराबाद'

फिलहाल, हैदराबाद एक पॉलिटिकल टूरिस्ट पैलेस बन गया है. दो दिन तक झारखंड के 37 विधायक हैदराबाद में रुककर गए हैं. रविवार को जब झारखंड के विधायकों की वापसी हुई तो एक घंटे बाद ही बिहार से 16 विधायक हैदराबाद आ गए हैं. अन्य विधायकों के भी आने की आशंका जताई जा रही है. कांग्रेस नेता आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी के लोग हमारे विधायकों से संपर्क कर रहे हैं और पार्टी में टूट की कोशिश कर रहे हैं. खरीद-फरोख्त के प्रयास हो रहे हैं. 12 फरवरी तक विधायकों को हैदराबाद में ही रोका जाएगा.

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'कांग्रेस के तीन विधायक नहीं गए हैदराबाद'

जानकारों का कहना है कि बिहार में कांग्रेस के 19 विधायक हैं और यह लंबे समय से चर्चा रही है कि कांग्रेस विधायकों में टूट हो सकती है. जब-जब बिहार में कोई सियासी गतिविधि बढ़ती है. चाहे सरकार समीकरण बदलें या नई सुगबुगहाट की स्थिति हो, कांग्रेस के विधायकों को लेकर चर्चा तेज हो जाती है. इस समय 16 विधायक हैदराबाद में हैं. तीन विधायक ऐसे हैं, जो बाड़ेबंदी में नहीं गए हैं. इनमें अररिया से एमएलए अब्दुल रहमान, मनिहारी से मनोहर सिंह, विक्रम से सिद्धार्थ सौरभ का नाम शामिल है.

'12 फरवरी को नई सरकार की अग्नि परीक्षा'

12 फरवरी को फ्लोर टेस्ट होना है. सरकार के सामने पहली अग्निपरीक्षा स्पीकर अवध बिहारी चौधरी को हटाना है. चौधरी आरजेडी कोटे से विधायक हैं. उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. लेकिन चर्चा है कि जिस तरह से तेजस्वी यादव दावा कर रहे हैं कि विधानसभा के अंदर खेला होगा. अगर वाकई उनकी नजर जेडीयू, बीजेपी या सत्तापक्ष से जुड़े अन्य दल के विधायकों पर है तो उन परिस्थितियों में सत्तापक्ष का बैकअप प्लान हो सकता है कि वो कांग्रेस से जुड़े विधायकों को अपने पक्ष में कर ले. 

'तो बड़ा उलटफेर हो सकता है'

महागठबंधन के सूत्रों ने दावा किया कि जब सदन राजद के अवध बिहारी चौधरी की जगह एक नया स्पीकर चुनेगा तो बीजेपी-जदयू गठबंधन की मुश्किलें बढ़ाए जाने की तैयारियां चल रही हैं. चौधरी ने अब तक पद छोड़ने से इनकार कर दिया है. नई सरकार के तुरंत बाद एनडीए विधायकों ने चौधरी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया है. उन्होंने कहा कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और कांग्रेस के शीर्ष नेता पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं. सूत्र कहते हैं कि मांझी एनडीए से एक और मंत्री पद मांग रहे हैं, जबकि विपक्षी खेमे से सीएम पद का ऑफर दिया गया है. जदयू में कई असंतुष्ट विधायक हैं, जो बीजेपी के साथ अपना भविष्य नहीं देखते हैं. यदि वे मांझी के लोगों के साथ पाला बदल लेते हैं तो इससे बड़ा उलटफेर हो सकता है.

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