Nobel Prize 2025: आर्थराइटिस, डायबिटीज का इलाज खोजने वाले वैज्ञानिकों को मिला मेडिसिन का नोबेल

Nobel In Medicine: 2025 नोबेल चिकित्सा पुरस्कार मैरी ई. ब्रंकॉ, फ्रेड रैम्सडेल और शिमोन सकागुची को 'पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस' की खोज के लिए. रेगुलेटरी टी-सेल्स (Tregs) और फॉक्सपी3 जीन से ऑटोइम्यून बीमारियों का इलाज संभव. शरीर की रक्षा प्रणाली को नियंत्रित करने वाली यह खोज कैंसर, ट्रांसप्लांट में क्रांति लाएगी. पुरस्कार राशि 8.5 करोड़ रुपये.

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बाएं से- मैरी ई. ब्रंकोव, फ्रेड रैम्सडेल और शिमोन साकागुची. (Photo: X/The Nobel Prize) बाएं से- मैरी ई. ब्रंकोव, फ्रेड रैम्सडेल और शिमोन साकागुची. (Photo: X/The Nobel Prize)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 06 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 3:34 PM IST

 नोबेल पुरस्कार की घोषणा ने दुनिया को एक बार फिर चमत्कार से रूबरू करा दिया. 2025 का नोबेल पुरस्कार फिजियोलॉजी या मेडिसिन (चिकित्सा) में अमेरिका की मैरी ई. ब्रंकॉ, अमेरिका के फ्रेड राम्सडेल और जापान के शिमोन सकागुची को दिया गया है. यह पुरस्कार उनकी 'पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस' (शरीर के बाहरी हिस्सों में इम्यून सिस्टम की सहनशीलता) से जुड़ी खोजों के लिए है.

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यह खोज शरीर की रक्षा प्रणाली को समझने में क्रांति लाई है, जो ऑटोइम्यून बीमारियों जैसे रूमेटॉइड आर्थराइटिस, टाइप-1 डायबिटीज और ल्यूपस के इलाज का रास्ता खोलेगी. स्टॉकहोम के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट ने सोमवार को घोषणा की.

BREAKING NEWS
The 2025 #NobelPrize in Physiology or Medicine has been awarded to Mary E. Brunkow, Fred Ramsdell and Shimon Sakaguchi “for their discoveries concerning peripheral immune tolerance.” pic.twitter.com/nhjxJSoZEr

— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 6, 2025

इम्यून टॉलरेंस क्या है? शरीर की रक्षा प्रणाली का रहस्य

हमारा शरीर इम्यून सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता) से हमेशा खतरे से लड़ता है – जैसे वायरस या बैक्टीरिया से. लेकिन कभी-कभी यह सिस्टम गलती से अपने ही अंगों पर हमला कर देता है, जिसे ऑटोइम्यून बीमारी कहते हैं. पुराने वैज्ञानिकों को लगता था कि इम्यून सेल्स (रोगाणु से लड़ने वाली कोशिकाएं) शरीर के अंदर ही 'सहिष्णु' (टॉलरेंट) बन जाती हैं, जिसे सेंट्रल इम्यून टॉलरेंस कहते हैं.

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लेकिन विजेताओं ने दिखाया कि शरीर के बाहरी हिस्सों (पेरिफेरल) में भी एक खास तंत्र काम करता है, जो इम्यून सिस्टम को नियंत्रित रखता है. इससे शरीर के अंग सुरक्षित रहते हैं.

यह खोज 1990 के दशक से शुरू हुई. विजेताओं ने पाया कि 'रेगुलेटरी टी सेल्स' (Tregs) नामक कोशिकाएं इम्यून सिस्टम को ब्रेक लगाती हैं. अगर ये कोशिकाएं कमजोर हों, तो शरीर के अंगों पर हमला होता है. यह खोज कैंसर, ट्रांसप्लांट और एलर्जी के इलाज में भी मदद करेगी.

तीन वैज्ञानिकों की टीम वर्क

शिमोन सकागुची (जापान)

शिमोन सकागुची को रेगुलेटरी टी सेल्स की खोज के लिए जाना जाता है. 1995 में उन्होंने दिखाया कि CD4+ CD25+ कोशिकाएं इम्यून सिस्टम को दबाती हैं. यह कोशिकाएं शरीर को अपने ही ऊतकों से लड़ने से रोकती हैं. सकागुची की खोज से पता चला कि Tregs इम्यून टॉलरेंस बनाए रखने में मुख्य भूमिका निभाती हैं. उनके काम ने ऑटोइम्यून रोगों की समझ बदल दी. आज Tregs को इंजीनियर करके दवाएं बन रही हैं.

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मैरी ई. ब्रंकॉ और फ्रेड राम्सडेल (अमेरिका)

मैरी ब्रंकॉ और फ्रेड राम्सडेल ने फॉक्सपी3 (FOXP3) जीन की खोज की, जो Tregs कोशिकाओं का 'मास्टर स्विच' है. 2001 में उन्होंने पाया कि FOXP3 में म्यूटेशन से IPEX सिंड्रोम होता है – एक दुर्लभ बीमारी जहां बच्चे का इम्यून सिस्टम अपने ही शरीर पर हमला करता है. इससे बाल रोग, डायबिटीज और आंतों की समस्या होती है. उनके काम ने साबित किया कि FOXP3 Tregs कोशिकाओं को सक्रिय रखता है. यह खोज पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस को समझने में मील का पत्थर साबित हुई.

तीनों ने मिलकर दिखाया कि सेंट्रल टॉलरेंस के अलावा पेरिफेरल टॉलरेंस भी जरूरी है. उनकी खोजें अब दवाओं में इस्तेमाल हो रही हैं, जैसे ऑटोइम्यून बीमारियों के लिए Tregs थेरेपी.

नई दवाओं का दौर

यह पुरस्कार ऑटोइम्यून बीमारियों से जूझ रहे करोड़ों लोगों के लिए उम्मीद है. दुनिया में 50 मिलियन से ज्यादा लोग इन बीमारियों से प्रभावित हैं. Tregs थेरेपी से ट्रांसप्लांट रिजेक्शन कम होगा. कैंसर में Tregs को नियंत्रित करके इम्यून सिस्टम को मजबूत किया जा सकता है.

नोबेल समिति ने कहा कि यह खोज इम्यून सिस्टम को नियंत्रित रखने का तरीका बताती है. पुरस्कार राशि 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (करीब 8.5 करोड़ रुपये) है, जो तीनों में बंटेगी. दिसंबर में स्टॉकहोम में समारोह होगा.

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