प्रशांत किशोर तो वोटकटवा भी नहीं बन सके, क्या 'संन्यास' का वादा निभाएंगे?

प्रशांत किशोर ने जिस तेजी से बिहार की राजनीति में अपनी जगह बनाई थी उसके हिसाब से लग रहा था कि वो कम से कम तीसरी शक्ति के रूप में तो सामने आएंगे ही. पर नेताओं को रणनीति की पाठ पढ़ाने वाला यह सितारा राजनीति की अंधी गैलरी में क्या गलती कर दिया कि जनता ने उसे नकार दिया?

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बिहार चुनाव नतीजों ने प्रशांत किशोर के दावों की हवा निकाल दी. (Photo: ITG) बिहार चुनाव नतीजों ने प्रशांत किशोर के दावों की हवा निकाल दी. (Photo: ITG)

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:08 PM IST

बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के साथ ही प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (जेएसपी) की उम्मीदें धराशायी हो गईं हैं. शुरुआती रुझानों के अनुसार, जेएसपी को एक भी सीट नहीं मिली है जबकि एग्जिट पोल्स ने 0-5 सीटों का अनुमान लगाया गया था. सबसे खास बात यह रही कि प्रशांत किशोर के जो सबसे मजबूत उम्मीदवार थे वो भी कहीं टक्कर देते हुए नहीं देखे जा रहे हैं. विधानसभा उपचुनावों में 10 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल करने वाले प्रशांत किशोर से एक उम्मीद यह भी थी कि वो कम से कम वोटकटवा बनकर तो सामने आएंगे ही. पर ऐसा नहीं हो सका.

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जनसुराज की सभाओं में प्रशांत किशोर को सुनने के लिए उमड़ने वाली भीड़ इस बात की तस्दीक करते रहे कि वो एनडीए और महागठबंधन दोनों को ही नुकसान पहुंचा सकते हैं. पर परिणामों को देखकर तो ऐसा लग रहा है कि प्रशांत किशोर ने कोई जमीन तैयार ही नहीं की थी, केवल हवा में उड़ रहे थे. सवाल यह उठता है कि क्या वो चुनाव प्रचार के दौरान किया अपना वादा निभाएंगे?

जेडीयू के 25 सीट से अधिक आने पर प्रशांत किशोर ने किया था संन्यास का वादा

प्रशांत किशोर ने चुनाव प्रचार के दौरान एक नेशनल टीवी के जर्नलिस्ट से दावा किया था कि इस बार के विधानसभा चुनावों में जनता दल यूनाइटेड को 25 सीट से ज्यादा नहीं मिलने वाला है. उन्होंने अपनी बात जोर देते हुए कहा था कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो वो संन्यास ले लेंगे. पत्रकार के दुबारा पूछने पर उन्होंने कहा यह रिकॉर्डिंग रख लीजिए अगर मेरी पार्टी सत्ता में आती है तो भी अगर जेडीयू के 25 सीट से अधिक आते हैं तो मैं संन्यास ले लूंगा.

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मतलब साफ था कि वो अपनी बात से पूरी तर मुतमईन थे. हालांकि राजनीति में ऐसी बातें होती रहती हैं. बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने एक बार ऐसे ही वादा करके अपना वादा निभा चुके हैं. इसलिए प्रशांत किशोर पर उनका प्रेशर जरूर रहेगा. प्रशांत किशोर ने अभी कुछ दिन पहले अपने एक वक्तव्य में यह भी कहा कि वो अगले 5 साल और जनता के बीच संघर्ष करेंगे. लेकिन इसके पहले यह किशोर को यह देखना जरूर चाहिए कि उन्हें इतनी बुरी हार का क्यों सामना करना पड़ा?

1-तेजस्वी के खिलाफ चुनाव न लड़कर अपना भरोसा खत्म कर दिया

जनसुराज के मटियामेट होने का सबसे बड़ा कारण प्रशांत किशोर का तेजस्वी यादव को 'चैलेंज' देकर पीछे हट जाना रहा.इस  घटना के बाद से आम लोगों को उनकी राजनीति को व्यवसाय की तरह लेने वाले लगने लगे. किशोर 'बिहार को नया सूरज' देने का दावा कर रहे थे पर खुद को वैकल्पिक लीडर के रूप में स्थापित करने का सुनहरा मौका गंवा दिया. 9 अक्टूबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, पंडित ने 51 नंबर शुभ बताया, राघोपुर से लड़ सकता हूं. यह चैलेंज तेजस्वी के 'परिवारवाद' और 'खोखले वादों' (जैसे हर घर नौकरी) पर था. किशोर ने कहा, तेजस्वी की हालत राहुल गांधी जैसी होगी; मैं उनके गढ़ में उतरूंगा. अगर यह मुकाबला हुआ होता तो बिहार में प्रशांत किशोर की उसी तरह चर्चा हुई होती जैसे 2014 में बनारस से नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपनी उम्मीदवार की घोषणा करके अरविंद केजरीवाल छा गए थे.

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2- मोदी और शाह के खिलाफ जुबान न खोलकर अपनी भद पिटाई

नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे केंद्रीय नेताओं को सीधे निशाने पर लेने से बचते रहे.जनता को लगा कि किशोर बीजेपी की बी टीम के रूप में काम कर रहे हैं. क्योंकि विपक्ष का हर नेता मोदी और शाह के खिलाफ जहर उगल रहा था. प्रशांत किशोर को अरविंद केजरीवाल की राह पर चलते हुए शाह और मोदी को हर समस्या का कारण बताना चाहिए था. हो सकता है कि इस रणनीति से कुछ फायदा पहुंचता. पर जैसी लहर बिहार में मोदी और नीतीश कुमार की चल रही थी उसमें शायद यह रणनीति भी काम नहीं आती. 

3-अशोक चौधरी और सम्राट चौधरी के खिलाफ माहौल नहीं बना सके

प्रशांत किशोर ने एनडीए के दिग्गज नेताओं बीजेपी नेता सम्राट चौधरी (उपमुख्यमंत्री) और जेडीयू नेता अशोक चौधरी (मंत्री) के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए. पर किशोर अपने इन आरोपों को केवल प्रेस कॉन्फ्रेंस तक ही सीमित रख सके. उन्होंने पॉजिटिव राजनीति को ही मुख्य फोकस में रखा. जनता के बीच जिस तरह उन्होंने विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य पर चर्चा की उसी शिद्दत से अगर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाये होते शायद बात कुछ और होती.

4-जाति की राजनीति नहीं करेंगे की बात कर जाति और धर्म के नाम पर टिकट दिया 

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प्रशांत किशोर ने कहा कि वे 'जाति की राजनीति नहीं करेंगे' पर किया इसका ठीक उलट. उन्होंने ही टिकट वितरण में जाति और धर्म के नाम पर उम्मीदवारों का चयन किया. किशोर ने 2022 में जेएसपी लॉन्च करते हुए दावा किया था कि उनकी पार्टी 'पारदर्शिता, विकास और जाति-रहित राजनीति' का प्रतीक बनेगी. इस विरोधाभास ने केवल किशोर की साख पर ही सवाल नहीं खड़े किए बल्कि बिहार की राजनीति की कड़वी हकीकत को भी उजागर किया.

5-शराबबंदी का विरोध करके फंस गए

प्रशांत किशोर ने शराबबंदी का विरोध कर के महिलाओं का अपना दुश्मन बना लिया . आरजेडी तक ने शराबबंदी को लेकर बीच का रास्ता अपनाया और कहा कि वो सत्ता में आने पर इसका रिव्यू करेंगे. पर किशोर खुलकर कहते रहे कि सत्ता में आने पर वो पहले 24 घंटे के अंदर ही शराबबंदी को खत्म कर देंगे. 2016 से लागू नीतीश कुमार की शराबबंदी नीति जो महिलाओं की सुरक्षा और परिवारिक सुख-शांति का प्रतीक बन चुका है. जाहिर है कि इसके खिलाफ किशोर का जाना उनके लिए राजनीतिक आत्मघाती कदम बन गया. युवा पुरुषों को लुभाने की कोशिश में उन्होंने बिहार की 50% महिला वोटरों को नाराज कर लिया.

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