MP: हाथों की लकीरें मिटने से नहीं हो पा रही E-KYC, सिस्टम की 'मशीन' में अटका गरीबों का राशन

MP सरकार कहती है कि ऐसे लोग नॉमिनी के जरिए राशन ले सकते हैं, लेकिन फिलहाल हकीकत यही है कि भिंड के मीना और बाई जैसे लोग अपने हिस्से के अनाज से महरूम हैं और भूख के सामने सिस्टम खड़ा हो गया है जिसका हल जल्द निकालना बेहद जरूरी है.

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घरों में झाड़ू-बर्तन करके पेट पालती हैं मीना खान.(Photo:ITG) घरों में झाड़ू-बर्तन करके पेट पालती हैं मीना खान.(Photo:ITG)

रवीश पाल सिंह / हेमंत शर्मा

  • भिंड/भोपाल,
  • 18 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:34 PM IST

सोचिए…जिन हाथों ने ज़िंदगीभर दूसरों के घरों में झाड़ू-बर्तन किए, उन्हीं हाथों की लकीरें आज मिट चुकी हैं. जिन उंगलियों से पहचान होती थी, वे अब सिस्टम में 'फेल' हो चुकी हैं. नतीजा, पात्र होने के बावजूद कई गरीब, बुजुर्ग और दिव्यांग सरकार के मुफ्त राशन से वंचित हो रहे हैं. हालांकि, सरकार का दावा है कि ऐसे लोगों के लिए विकल्प मौजूद हैं, लेकिन  फिलहाल सच्चाई यही है कि उनके हक का अनाज उनसे दूर है. 

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भिंड की मीना खान, चेहरा झुर्रियों से भरा, उम्र ढल चुकी है, मगर पेट पालने के लिए अब भी दूसरों के घरों में चौका-बर्तन करती हैं.  लेकिन बर्तन मांजते-मांजते उसकी हथेलियों की लकीरें ही मिट गईं और अब उसी वजह से उसे राशन भी नहीं मिल रहा. 

'आजतक' से बात करते हुए मीना खान ने बताया, '' घर में कमाने वाला कोई नहीं है. हम झाड़ू बर्तन करते हैं. पूरी जिंदगी ऐसे ही निकल गई. अब बुढ़ापा आ गया तो कोई सहारा देने वाला नहीं है. बर्तन मांज मांजकर खराब हो गए. 3 महीने से गेहूं नहीं मिले हैं, क्योंकि सरकारी राशन की दुकान में अंगूठा नहीं लग रहा. मंगलवार को जनसुनवाई में शिकायत भी की थी. कुछ नहीं हुआ. दो बार कागज दिए थे. कोई सुनवाई नहीं हुई. परेशान रहते हैं. स्थिति खराब हो जाएगी. कुछ खाने को नहीं मिलेगा.''

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मीना अकेली नहीं है, नयापुरा की दिव्यांग युवती बाई भी इसी समस्या से जूझ रही है. बाई खुद से बिस्तर से उठ भी नहीं सकती, लेकिन उसका भी राशन तीन महीने से बंद है, क्योंकि मशीन उसके हाथों को पहचान नहीं पा रही. 

मां सज्जी कहती हैं, "दो लड़के, तीन लड़कियां, दो शादीशुदा, एक अपाहिज. 6 साल से बच्चे कमाते हैं, पेंशन से चलता है. 3 महीने से गल्ला नहीं, आधार अपडेट नहीं. लैट्रिन कपड़ों में करती है, ले जाएं कहां? फिंगर नहीं आते, खून चालू नहीं. शुरू से मिलता था, अब मना करते हैं. कचहरी गए, कार्ड बने, सुनवाई नहीं."

भिंड जिले के खाद्य अधिकारी सुनील कुमार ने आजतक से कहा, "जिले में 9 लाख लोग योजना से जुड़े, 8.3 लाख की केवाईसी हो चुकी, 71,000 शेष हैं. 50,000 मृत या पलायन कर गए. कुछ बुजुर्गों के फिंगर नहीं लगते, आधार मोबाइल से लिंक नहीं. इन्हें चिन्हित कर अपडेट हो रहा है. भोपाल से आयरिस केवाईसी मशीन मांगी गई है, आंखों की पुतलियां स्कैन होगी. कब आएगी, कब तक होगा, राम ही जाने."

सवाल यही है कि मशीन कब आएगी? और तब तक इन गरीबों का पेट कैसे भरेगा? सिस्टम की तकनीकी खामियों और सुस्ती के बीच सबसे बड़ी कीमत वही चुका रहे हैं, जिनका जीवन पहले से ही संघर्षों से भरा है. 

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वहीं, इस बारे में  मध्यप्रदेश के खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने कहा, "बायोमेट्रिक न मैच होने पर राशन नहीं ले पाने वालों के लिए नॉमिनी व्यवस्था है. परिवार के सदस्य से केवाईसी से राशन ले सकते हैं, अधिकारियों को दिशा-निर्देश जारी हैं." सरकार का दावा है कि नॉमिनी से राशन मिल सकता है, लेकिन भिंड की मीना और बाई जैसे लोग अनाज से वंचित हैं. भूख के सामने सिस्टम खड़ा है, हल जरूरी है.

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