रबी की फसल में शुमार मटर एक आम दलहन है. जिसकी डिमांड देश भर के विभिन्न राज्यों में साल भर रहती है. वहीं, किसानों ने पारंपरिक खेती के इतर सब्जियों की बागवानी की तरफ भी रुख किया है, ऐसे में ग्रामीण इलाकों के किसान मटर की खेती भी करना पसंद करते हैं. सर्दियों के मौसम में मटर की अच्छी पैदावार होती है. इससे किसानों को डबल फायदा भी होता है. एक तो खेतों में फसल चक्र के दृष्टिकोण से किसानों के लिए मुनाफे का सौदा है और वहीं, खेती में मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाने में भी मददगार है.
मटर की किस्में
मटर के बीज दो तरह के होते हैं, पीबी-89 और आर्केल. इनमें पीबी-89 को उत्तम किस्म का माना जाता है. सरकार पीबी-89 को किसानों के घर तक पहुचां रही है. राष्ट्रीय बीज निगम की आधिकारिक वेबसाइट पर पीबी-89 किस्म के एक किलो बीज का पैकेट 32 फीसदी छूट के साथ 175 रुपये में मिल रहा है. जबकि आर्केल किस्म के बीज का एक किलो का पैकेट 42 फीसदी छूट के साथ 127 में पर उपलब्ध है.
कौन सी हैं मटर के दो किस्में?
पीबी-89: पंजाब में उगने वाली एक उन्नत किस्म का बीज है. इस किस्म की फलियां जोड़े में उगती हैं. बिजाई के लगभग 90 दिनों के बाद तैयार हो जाती है. इसके बीज काफी व मीठे होते हैं. वहीं, इसकी औसतन उपज 60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है.
आर्केल: यह एक तरह की यूरोपियन किस्म है. इसके सबसे बड़ी खासियत है कि यह मटर जल्दी पककर तैयार हो जाती है. साथ ही इस मटर के दाने भी ज्यादा होते हैं. इसकी फलियों को बुवाई के करीब 60 दिनों बाद तोड़ना शुरू कर सकते हैं.
क्यों है किसानों की पहली पसंद?
मटर की खेती कम समय में अच्छा मुनाफा देती है, जिसके चलते किसानों में इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है. मटर की बुआई के लिए सितम्बर माह के अंत से अक्टूबर तक की जाती है. मटर की खेती से जहां एक ओर कम समय में अधिक पैदावार मिलती है. तो वहीं ये खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में भी मददगार होती है. मटर का उपयोग सब्जी के साथ–साथ दलहन के रूप में भी किया जाता है.
हर सब्जी का साथी
मटर भारतीय रसोई में हर घर की पसंद होती है. इसकी खासियत यह है कि यह ज्यादतर सब्जियों के साथ मिलकर उसके स्वाद को बढ़ाती है. देश के हर राज्य में विभिन्न पकवानों में मटर का इस्तेमाल होता है. साथ ही इसकी फसल जल्दी खराब नहीं होती.