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Afghanistan: बंदूक चलाने वाले तालिबानी ऑफिस में क्लर्क बनकर परेशान, फिलिस्तीन जाकर लड़ने को तैयार

अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को खदेड़कर सत्ता में काबिज होने वाले तालिबानी लड़ाके इन दिनों बेहद परेशान हैं. कई दिनों से किसी जंग में शामिल नहीं हुए इन लड़ाकों के दिन बेहद बुरे गुजर रहे हैं. वो चाहते हैं कि उन्हें फिलिस्तीन भेजा जाए, ताकी वह वहां जंग में शामिल हो सकें.

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सांकेतिक तस्वीर (Credit: Time)
सांकेतिक तस्वीर (Credit: Time)

जिनके हाथ कभी बंदूक की गोलियां बरसाते हुए नहीं थकते थे, वो हाथ अब कलम चला-चलाकर ऊब चुके हैं. जो लड़ाके दुश्मनों की तलाश में दिनभर अफगानिस्तान के शहरों की खाक छाना करते थे, वे अब फाइल संभाल-संभालकर परेशान हो चुके हैं. ये हाल इन दिनों अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को खदेड़ने वाले तालिबानी लड़ाकों का है. कई दिनों से किसी जंग में शामिल नहीं हुए इन लड़ाकों के दिन बेहद बुरे गुजर रहे हैं. इन्हें अपना पसंदीदा काम (बंदूक चलाना) छोड़कर दफ्तरों में 9 से 5 वाली डेस्क जॉब करना पड़ रहा है.

ऐसे ही एक पूर्व तालिबानी लड़ाके और वर्तमान में आपदा प्रबंधन मंत्रालय के प्रवक्ता मुल्ला जनान ने बताया कि वह लंबे समय से ऑफिस का काम करते हुए बोर हो गए हैं. मुल्ला जनान बेहद क्रूर तालिबानी लड़ाकों में शामिल रह चुके हैं. वह पूर्व में दक्षिणी हेलमंद प्रांत में हुई जंगों का नेतृत्व भी कर चुके हैं. मुल्ला जनान ने कहा,'15 साल से ज्यादा समय तक मैंने गुरिल्ला युद्ध लड़ा, लेकिन आज मुझे कागजों के नीरस ढेर के बीच काम करना पड़ रहा है. इस शांत जीवन से मुझे घुटन महसूस होने लगी है.'

दफ्तर में नहीं जंग में रहने की ट्रेनिंग मिली

ब्रिटिश मीडिया से बात करते हुए 38 साल के मुल्ला जनान ने बताया,'2021 में तालिबान की सरकार बनने के बाद मुझे डेस्क जॉब दी गई. ये काम बिल्कुल भी रोमांचक नहीं है. मैंने कभी नहीं सोचा था कि इस तरह का उबाऊ काम करना पड़ेगा. मैं मीटिंग, कागजी कार्रवाई और प्रशासनिक काम के बीच बुरी तरह से फंसा हुआ हूं. जिस काम की मैंने ट्रेनिंग ली है, उससे मैं बहुत दूर चला गया हूं. मुझे जंग में रहने और लड़ाका बनने की ट्रेनिंग मिली है न की डेस्क पर बैठकर काम करने की. कभी-कभी में खुद से सवाल करता हूं कि आखिर मैं कर क्या रहा हूं.'

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फिलिस्तीन जाकर लड़ना चाहते हैं लड़ाके

जंग से दूर क्लर्क का काम करने वाले मुल्ला जनान अकेले तालिबानी नहीं है, जो इस लाइफस्टाइल से तंग आ चुके हैं. तालिबान के भूतपूर्व पैदल सैनिक मुल्ला अहमद गुल भी इस रूटीन से परेशान हैं. उन्हें भी इस समय क्लर्क का काम दिया गया है. अहमद गुल ने बताया,'मैं दफ्तर की नौकरी से ऊब चुका हूं. इस समय मैं जिहाद से दूर हूं. अगर मुझे फिलिस्तीन जाकर लड़ने का मौका मिलता है, तो यह अच्छा रहेगा.'

'दफ्तर में बैठना मेरे बस की बात नहीं'

इसी तरह एक और तालिबानी मुल्ला दोस्त मोहम्मद भी ऑफिस का काम करके ऊब गए हैं. मुल्ला दोस्त मोहम्मद के मुताबिक,'दफ्तर में बैठना मेरे बस की बात नहीं है. मैं जंग चाहता हूं. तालिबान के गुरिल्ला लड़ाकों के लिए ये सरकारी काम करना आसान नहीं है. कुछ लोग जंग लड़ने के लिए तरस रहे हैं.'

तालिबानी कब्जे के बाद अब हैं ये हालात

बता दें कि दो दशक तक चली लंबी लड़ाई के बाद अगस्त 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था. हालांकि, अफगानिस्तान में फिलहाल शांति है, लेकिन देश अब भी अस्थिर है और छिटपुट हमले होते रहते हैं. सत्ता कब्जाने के बाद तालिबान ने महिलाओं पर सबसे ज्यादा प्रतिबंध लगाए, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा की गई. यहां 12 साल से ज्यादा उम्र की लड़कियों को किसी भी स्कूल में जाने की मनाही है.

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