पाकिस्तान के पत्रकार हामिद मीर ने इंडिया टुडे के अपने ऑपिनियन लेख में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और राहुल गांधी के बीच समानताओं का जिक्र करते हुए कहा है कि विदेश में पढ़े दोनों नेताओं की संसद सदस्यता जा चुकी है. उन्होंने लिखा है कि जहां एक तरफ इमरान खान सही उर्दू बोल सकते हैं लेकिन इसे ठीक से पढ़ नहीं सकते, वहीं दूसरी तरफ, रिपोर्ट्स के मुताबिक, राहुल गांधी संसद में हिंदी पढ़ने के लिए रोमन लिपि का इस्तेमाल करते हैं.
इमरान और राहुल द्वारा आटे की माप के लिए किलो के बजाए लीटर शब्द के इस्तेमाल को लेकर हामिद मीर लिखते हैं, 'अपने कार्यकाल और शहबाज शरीफ के कार्यकाल में आटे की कीमतों की तुलना करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री खान ने कहा था कि जनता को फिलहाल आटे को लेकर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि इसकी कीमत दोगुनी हो गई है. एक किलो आटा, हमारे समय, 50 रुपये का था और आज, यह प्रति लीटर 100 रुपये से अधिक हो गया है.'
उन्होंने राहुल गांधी के एक भाषण का जिक्र करते हुए लिखा, 'राहुल ने दिल्ली में जनता को संबोधित किया जहां उन्होंने 2014 में आटे की कीमतों की तुलना 2022 में कीमतों से की. उन्होंने कहा था कि आटा 22 रुपये प्रति लीटर था और अब यह 40 रुपये प्रति लीटर हो गया है. किसी ने कमेंट किया कि दोनों नेता एक ही किताब से पढ़ते हैं.'
'इमरान ठीक से उर्दू नहीं पढ़ सकते और राहुल...'
मीर ने आगे लिखा, 'उनमें और भी कई बातें समान हैं. इमरान सही उर्दू बोल सकते हैं लेकिन इसे ठीक से पढ़ नहीं सकते. भारतीय मीडिया में आई कुछ खबरों के मुताबिक, राहुल संसद में हिंदी पढ़ने के लिए रोमन लिपि का इस्तेमाल करते हैं. इमरान ऑक्सफोर्ड से पढ़े हैं और राहुल कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़े हैं. इमरान को पिछले साल पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने संसद की सदस्यता के अयोग्य घोषित कर दिया था. राहुल को हाल ही में गुजरात की एक अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद संसद से अयोग्य घोषित किया गया है.'
उन्होंने सवाल किया कि इमरान खान को अयोग्य ठहराए जाने के बाद भी पाकिस्तान की अदालत से उपचुनाव लड़ने की अनुमति मिली थी. क्या राहुल गांधी को भारत की कोर्ट से इस तरह की राहत मिलेगी?
'भारत और पाकिस्तान के लोकतंत्र में तुलना नहीं की जा सकती'
इसके साथ ही मीर ने लिखा कि इमरान खान की राजनीति की तुलना राहुल गांधी की राजनीति से की जा सकती है लेकिन भारत के लोकतंत्र की तुलना पाकिस्तान के लोकतंत्र से नहीं की जा सकती. भारत ने केवल एक आपातकाल देखा है जो राहुल गांधी की दादी ने लगाया था और भारत की मीडिया ने केवल कुछ समय ही सेंसरशिप को झेला. लेकिन पाकिस्तान चार मार्शल लॉ देख चुका है जो 33 सालों तक चला.
उन्होंने आगे लिखा, 'पाकिस्तानी अदालतें हमेशा सैन्य तानाशाहों के हुक्म के आगे झुकती रही हैं. पाकिस्तान में केवल एक बहादुर जज, जस्टिस वकार सेठ हुए जिन्होंने आखिरी सैन्य तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ के खिलाफ 2019 में ऐतिहासिक फैसला सुनाया. मुशर्रफ के खिलाफ फैसले को लागू कर हमेशा के लिए राजनीति में सेना के दखल को रोकने का यह सुनहरा मौका था.'
हामिद मीर ने लिखा कि इमरान खान की सरकार ने अदालत के फैसले को खारिज कर सैन्य तानाशाह को फांसी की सजा सुनाने वाले जज को हटाने के लिए सर्वोच्च न्यायिक परिषद से सपंर्क किया. उन्होंने लिखा कि इमरान खान ने तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा की मदद से मुशर्रफ को बचा लिया.
इमरान खान और राहुल गांधी में बड़ा अंतर क्या?
मीर लिखते हैं, 'इमरान खान और राहुल गांधी में बड़ा अंतर क्या है? इमरान को अभी भी विश्वास है कि वो सेना की मदद से सत्ता में वापस आ सकते हैं. राहुल सेना की मदद से सत्ता में आने के बारे में सोच भी नहीं सकते. यहां, मुझे यह स्वीकार करना होगा कि वास्तव में इमरान खान और राहुल गांधी के बीच कोई तुलना नहीं है. हम खान की तुलना केवल पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से कर सकते हैं, जिन्हें 2017 में जीवन भर के लिए संसदीय सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था.'