मंगलवार के पहलगाम में हुए आतंकी हमलों से पूरा देश गमगीन है. हमले के दो आतंकियों के तार पाकिस्तान से जुड़ रहे हैं जिसे देखते हुए भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है. भारत ने पाकिस्तान के साथ राजनयिक संबंधों को सीमित करने के साथ-साथ पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते को स्थगित कर दिया है. 1960 में हुए इस समझौते के तहत ही पाकिस्तान को भारत से होकर गुजरने वाली नदियों- सिंधु, झेलम और चेनाब का पानी मिलता है.
पाकिस्तान पीने के पानी, सिंचाई और बिजली उत्पादन जैसे कामों के लिए इन नदियों के पानी का इस्तेमाल करता है और भारत की घोषणा ने उसे भारी परेशानी में डाल दिया है. सिंधु जल समझौते को स्थगित करने के फैसले पर पाकिस्तान के रिसर्चर और मेसाच्यूसेट्स (अमेरिका) स्थित Tufts यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हसन फुरकान खान ने पाकिस्तान के अखबार डॉन में एक लेख लिखा है.
इस लेख में वो लिखते हैं कि सिंधु नदी प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है जिसे लेकर माना जाता रहा था कि यह कभी भी अनिश्चितता का शिकार नहीं हो सकती. सिंधु, झेलम और चेनाब का पानी पाकिस्तान की कृषि, उसके शहरों और ऊर्जा प्रणाली की रीढ़ है. इस समय, पाकिस्तान के पास इन नदियों के जल का कोई विकल्प नहीं है.
पाकिस्तान की सिंचाई प्रणाली दुनिया के सबसे बड़े सिंचाई सिस्टम्स में से एक है और यह लगभग पूरी तरह से पश्चिमी नदियों यानी सिंधु और इसकी सहायक नदियों के पानी पर निर्भर है. नदी में पानी के आधार पर किसान अपने खेतों में बुवाई की प्लानिंग करते हैं. पाकिस्तान के नहर प्रोग्राम भी इन नदियों के पानी की धारणाओं के आधार पर ही बनाए गए हैं. अब अगर इन नदियों के पानी में थोड़ा भी व्यवधान आता है तो पाकिस्तान की जल प्रणाली कमजोर पड़ने लगेगी.
पाकिस्तान में गेहूं की बुवाई, मछली पालन, बिजली उत्पादन पर पड़ेगा असर
भले ही भारत की घोषणा से पाकिस्तान पहुंचने वाले नदियों के पानी की कुल मात्रा में तुरंत बदलाव न हो लेकिन पानी के आने में छोटे-छोटे बदलाव भी बड़ी दिक्कतें पैदा कर सकते हैं. अगर गेहूं बुवाई के दौरान भारत पानी देर से या कम छोड़े या फिर शुष्क सर्दियों के महीनों में पानी के कम प्रवाह को और कम कर दे तो पाकिस्तान के किसान गेहूं बुवाई से चूक सकते हैं, गेहूं की पैदावार भी गिरेगी और गेहूं की महंगाई बढ़ जाएगी.
मीठे पानी के कम प्रवाह के कारण सिंधु डेल्टा पहले से ही सिकुड़ रहा है. अगर भारत की तरफ से आने वाली नदियों के पानी को लेकर अनिश्चितता बढ़ेगी तो तट के आसपास की आजीविका और मछली पालन पर असर हो सकता है.
नदी के पानी में कोई भी कमी या फिर बदलाव पाकिस्तान में जल आवंटन को लेकर विवाद बढ़ा देगी. इससे पाकिस्तान के अंदर ही तनाव बढ़ने का खतरा है, खासकर पंजाब और सिंध के बीच, जहां जल-बंटवारे की बहस पहले से ही राजनीतिक रूप से गर्म है.
इसके बाद आती है ऊर्जा की बारी. पाकिस्तान की एक तिहाई बिजली हाइड्रोपावर यानी जलविद्युत से आती है. यह जलविद्युत तरबेला, मंगला और अन्य जलाशयों से बहने वाले पानी से पैदा की जाती है. अगर ऊपरी इलाकों यानी भारत की तरफ से आने वाली नदियों का प्रवाब कम हो जाता है या फिर गलत समय पर पानी आ जाता है तो इससे उत्पादन क्षमता में कमी आ सकती है.
पाकिस्तान में पहले से ही पानी की कमी रही है और ऐसे में सिंधु जल संधि का पानी बेहद जरूरी है. अब इस सिस्टम पर भी अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं जिससे पाकिस्तान का जल संकट गहराने लगा है.
नदियों के पानी को पाकिस्तान जाने से कैसे रोकेगा भारत?
सिंधु, झेलम और चेनाब बड़ी नदियां हैं जिनमें अपार जल भरा है. मई और सितंबर के बीच जब बर्फ पिघलती है तब ये नदियां उफान पर होती हैं. भारत ने इन नदियों पर बगलिहार और किशनगंगा बांध बना रखा है लेकिन दोनों ही बांधों की क्षमता इतनी नहीं है कि वो उफान के दौरान इन नदियों के पानी को पाकिस्तान में जाने से पूरी तरह रोक लें.
लेकिन शुष्क मौसम में सर्दियों के वक्त जब नदी का पानी कम हो जाता है तब पाकिस्तान के लिए समस्या पैदा हो सकती है. नदियों में कम पानी होने पर आसानी से उन्हें पाकिस्तान में प्रवेश करने से रोका जा सकता है और यह पड़ोसी मुल्क के लिए खतरे वाली बात है.
पाकिस्तान के रिसर्चर ने लिखा है कि अगर भारत सिंधु जल समझौते को तोड़ने का विकल्प चुनता है तो उसके लिए नदियों पर नए इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम करना आसान हो जाएगा. इसके बाद भारत पाकिस्तान में नदियों के प्रवाह और पानी की मात्रा को अच्छे से नियंत्रित कर सकेगा. लेकिन यह तत्काल नहीं होने वाला. किसी भी बड़े पैमाने के बांध बनाने या नदी का रास्ता बदलने के प्रोजेक्ट में सालों लग जाएंगे.