किसी भी बड़ी खबर को देखने के लिए दशकों से 'आज तक' सबसे पसंदीदा और भरोसेमंद चैनल रहा है. यही कारण है जब भी देश या दुनिया में कोई बड़ी घटना होती है, आज तक के पत्रकार पूरी टीम के साथ उस खबर को अपने दर्शकों तक सबसे पहले और विस्तार से पहुंचाने में कोई कमी नहीं छोड़ते हैं.
ऐसा ही कुछ 7 अक्टूबर को हुआ जब इजराल के इतिहास में उस पर सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ. इस हमले के कुछ घंटे के भीतर ही इजराइल के सैकड़ो सैनिक और आम नागरिक हमास के गोलियों का शिकार बन गए.
यह खबर इजरायल और भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सबसे बड़ी खबर बन गई. हर बार की तरह इस बार भी इंडिया टुडे ग्रुप के तीन संवाददाता गाजा और इजरायल के बीच शुरू हुए इस युद्ध को कवर करने के लिए इजरायल के अलग-अलग इलाकों में पहुंचने लगे.
गाजा जाने के लिए मैं उत्सुक थाः गौरव सावंत
जहां तक मेरी बात है मैं गाजा जाने के लिए उत्सुक ही नहीं बल्कि बेकरार था लेकिन गाजा को इजरायली सेना ने घेराबंद कर दी थी. किसी भी व्यक्ति को ना ही वहां जाने की इजाजत थी और ना ही वहां से बाहर निकलने की. जाहिर है ऐसी स्थिति मैं गाजा नही जा सका. लेकिन आज तक ने फैसला किया कि वह मुझे इजरायल के अलावा दक्षिणी लेबनान भेजेंगे.
लेबनान का वीजा लेकर दूसरे ही दिन मैं लेबनान पहुंचा और देश का एक मात्र ऐसा पत्रकार बना जिसने हिज्बुल्लाह और इजरायल के बीच युद्ध की विस्तार से कवरेज की. लेबनान एक ऐसा देश है जहां हिज्बुल्लाह की मर्जी के बिना पता भी नहीं हिल सकता. इसलिए लेबनान पहुंचकर मैं सबसे पहले हिज्जबुल्लाह के लड़ाकों से मिला. ताकि लेबनान की सीमावर्ती इलाके में जाने की इजाजत मिल सके.
पूरा दक्षिणी लेबनान आम नागरिकों से खाली हो रहा था. और मैं वहां के चप्पे चप्पे पर हिज्जबुल्लाह और इजरायली सेना के बीच हो रहे युद्ध की पल-पल की अपडेट दर्शकों तक पहुंचा रहा था.
जब मैंने इजरायल की तरफ से दक्षिणी लेबनान में हिजबुल्ला के ठिकान पर गिराए गए मिसाइल हमले से तबाही की खबर देश-दुनिया तक पहुंचाई. इसके बाद ही अंतरराष्ट्रीय मीडिया के पत्रकार भी उस जगह को कवर करने के लिए आने लगे.
दक्षिणी लेबनान के शिवा इलाके में रायटर्स और अल-जजीरा की टीम भी पहुंची. इजरायल ने उन पर भी बम से हमला किया, जिससे उनकी गाड़ी तबाह हो गई. इसमें एक पत्रकार की मौत भी हो गई. वहीं, पांच अन्य घायल भी हो गए.
ऐसा मंजर सिर्फ दक्षिणी लेबनान में ही नहीं था. बल्कि आज तक के अल साहब की कवरेज के कुछ घंटे बाद इजरायल ने वहां पर भी आर्टिलरी से गोलीबारी की. यह मंजर काफी भयानक था. लेकिन हमारी रणनीति यही थी कि जितना जल्दी हो सके दक्षिण लेबनान के उन इलाकों से रिपोर्टिंग करके तुरंत बाहर निकला जाए. यह रणनीति कहीं ना कहीं बेहतर साबित हुई. दक्षिणी लेबनान में पिछले 15 दिनों से हिज्बुल्लाह और इजरायल की सेना के बीच युद्ध जारी है. जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में यह और भीषण होगा.
अशरफ बानी की आंखों-देखी रिपोर्ट
लेबनान मेरे लिए एक ऐसा देश था जहां मैं पहले कभी नहीं गया था. इसलिए ना ही किसी चीज से वाकिफ था और ना ही किसी से जान-पहचान. लेकिन हां, मेरे एक जानकार लेबनान में रहते हैं. जाहिर है दिल्ली से उड़ान भड़ने से पहले उस मित्र को व्हाट्सअप मैसेज किया. जिसका जवाब मुझे लेबनान पहुंचने के बाद ही मिला.
बेरुत एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही मेरे लिए सबसे बड़ी समस्या स्थानीय भाषा थी. अरबी भाषा मैं पढ़ तो सकता हूं लेकिन समझ नहीं सकता. इसलिए बेरुत एयरपोर्ट के बाहर निकलते ही मुझे किसी ऐसे टैक्सी ड्राइवर की तलाश थी जो अंग्रेजी में बात कर सके. बहरहाल ऐसा एक ड्राइवर मिला. उससे अंग्रेजी में बात करके मैंने कहा कि मुझे दक्षिणी लेबनान जाना है. उसने मेरे पास बुलेट प्रूफ जैकेट देखकर समझ लिया कि मैं युद्ध की कवरेज के लिए यहां आया हूं.
मेरी खुशकिस्मती थी कि वह साउथ लेबनान के इलाके से वाकिफ था और सीधे एयरपोर्ट से मुझे टायर (Tyre) सिटी छोड़ दिया. वहां पर लेबनीज आर्मी की एक पोस्ट थी जिसने आगे जाने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि यहां से आगे जाने के लिए लेबनान की आर्मी से इजाजत लेनी होती है. हमने उसका भी जुगाड़ किया.
दूसरे दिन मैं लेबनान के सीमावर्ती इलाकों में गोला बारूद के बीच अकेले रिपोर्टिंग करता रहा. दक्षिणी लेबनान में सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि यहीं पर हिजबुल्ला के ठिकाने हैं. इन ठिकानों पर रुक-रुक कर इजरायल की तरफ से रॉकेट और मोर्टार दागे जा रहे थे. हिज्बुल्ला की तरफ से भी इजरायली ठिकानों पर हमले किए जा रहे थे. सीमा से सट्टा पूरा दक्षिणी लेबनान आम जनता से खाली हो चुका था.
पूरे इलाके में डर का माहौल था. लोग डर के मारे घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों की तरफ चले गए थे. हर तरफ सिर्फ गोली की आवाज ही सुनाई दे रही थी. इस सबके बीच हम दक्षिणी लेबनान के सीमावर्ती इलाकों से पल-पल की खबरें और हर होने वाली घटना को देश और दुनिया तक पहुंचा रहे थे. इसी बीच एक दिन खबर मिली कि इजरायली सेना ने हिज्जबुल्लाह के एक ठिकाने पर मिसाइल से हमला किया है. ज्यों ही मैं वहां पहुंचा तो देखा कि कई घर इजरायली हमले के कारण दबी हैं. स्टोरी कवर करने के बाद मैं जब वहां से निकल रहा था तो देखा कि अल-जजीरा और रायटर्स की टीम भी उसकी रिपोर्टिंग के लिए पहुंच गई है.
दुर्भाग्य से उनकी किस्मत अच्छी नहीं थी. उनकी टीम इजरायल की तरफ से चलाए गए एक रॉकेट का निशाना बन गई. उनकी गाड़ी पूरी तरह तबाह हो गई. इस हमले में एक पत्रकार की मौत भी हो गई. जबकि 6 अन्य घायल हो गए. इसके बाद मेरी रिपोर्टिंग उन पत्रकारों की आपबीती पर केंद्रित हुई. और मैं यह सोचता रहा कि अगर यह बम तीन घंटे पहले इजरायल की तरफ से आया होता तो शायद इसका शिकार मैं भी हो सकता था.